दिसम्बर 1545 में जब हुमायूँ ने कांधार पर अधिकार कर लिया तो वह कांधार बैरामखां के संरक्षण में देकर अपनी बुआ खानजादः बेगम के साथ काबुल के लिए रवाना हुआ ताकि मिर्जा कामरान से निबटा जा सके किंतु कबलचाक नामक स्थान पर अचानक ही खानजादः बेगम का निधन हो गया।
हुमायूँ के इतिहास में आगे बढ़ने से पहले हमें खानजादः बेगम के इतिहास पर एक दृष्टि डालनी चाहिए। जब तक वह जीवित रही, मुगलिया राजनीति के प्रमुख आधार स्तम्भ के रूप में भूमिका निभाती रही। खानजादः बेगम का जन्म ई.1478 में फरगना के तुर्को-मंगोल शासक उमर शेख मिर्जा की बड़ी पुत्री के रूप में हुआ था। बाबर और खानजादः बेगम दोनों की माँ एक ही थी जो कुतलुग निगार खानम के नाम से जानी जाती थी और उमर शेख की पहली तथा प्रधान बेगम थी।
खानजादः बेगम बाबर से पांच साल बड़ी थी। बाल्यकाल से ही खानजादः बेगम तथा बाबर के बीच प्रगाढ़ प्रेम था। चूंकि खानजादः बेगम की माता कुतलुग निगार खानम मंगोल साम्राज्य के शासक यूनुस खाँ की पुत्री थी जो मध्य-एशिया में महान् मंगोल के नाम से जाना जाता था। इसलिए कुतलुग निगार खानम मध्य-एशिया की राजनीति को अच्छी तरह से समझती थी और यही समझदारी खानजादः बेगम तथा बाबर को भी प्राप्त हुई थी। इस कारण बाबर मध्य-एशिया के राजनीतिक विषयों पर अपनी बड़ी बहिन खानजादः बेगम से विचार-विमर्श किया करता था।
खानजादः बेगम ने मध्य-एशिया में स्थित अपने पिता के छोटे से राज्य से लेकर अपने भाई एवं भतीजों को भारतीय उपमहाद्वीप के विशाल क्षेत्रों पर शासन करते हुए अपनी आंखों से देखा था। बादशाह बनने के बाद बाबर ने खानजादः बेगम को पादशाह बेगम की उपाधि दी थी। बाबर ने अपनी पुस्तक बाबरनामा में खानजादः बेगम का उल्लेख बहुत प्रेम एवं आदर के साथ अनेक प्रसंगों में किया है। गुलबदन बेगम ने भी अपनी पुस्तक हुमायूंनामा में खानजादः बेगम का उल्लेख कई बार किया है। गुलबदन उसे आकः जानम कहा करती थी।
जब बाबर समरकंद का शासक था, तब ई.1500 में बाबर पर उज्बेगों ने आक्रमण करने आरम्भ किए। ई.1501 में यह संघर्ष अपने चरम पर पहुंच गया। उज्बेग नेता शैबानी खाँ ने पूरे छः माह तक समरकंद पर घेरा डाले रखा। बाबर को आशा थी कि उसका चाचा सुल्तान हुसैन मिर्जा बायकरा बाबर की सहायता करेगा जो कि ग्रेटर खुरासान का शासक था किंतु बाबर के चाचा ने बाबर की कोई सहायता नहीं की।
इस बीच बाबर की लगभग सारी सेना नष्ट हो गई तथा शैबानी खाँ किसी भी समय समरकंद में घुसकर बाबर तथा उसके पूरे परिवार को बंदी बना सकता था। कुछ लेखकों के अनुसार शैबानी खाँ ने बाबर को बंदी बना लिया तथा उसके समक्ष यह शर्त रखी कि यदि बाबर अपनी बड़ी बहिन खानजादः बेगम शैबानी खाँ को सौंप दे तो शैबानी खाँ बाबर को समरकंद से जीवित ही निकलने दे सकता है।
पराजित बाबर ने अपनी बड़ी बहिन का विवाह शैबानी खाँ से कर दिया तथा स्वयं बिना कोई हथियार, बिना कोई सम्पत्ति, बिना कोई घोड़ा लिए समरकंद से बाहर आ गया। शैबानी खाँ ने बाबर के परिवार को भी जीवित ही समरकंद से बाहर जाने की अनुमति दे दी। इसके बाद बाबर बदख्शां, काबुल, कांधार, गजनी, दिल्ली तथा आगरा पर विजय प्राप्त करता हुआ अफगानिस्तान और हिंदुस्तान का बादशाह बना था। अबुल फजल तथा हेनरी बेवरीज ने इस विवाह को शैबानी खाँ तथा खानजादः बेगम के प्रेम-प्रसंग का परिणाम बताया है जो कि पूरी तरह मनगढ़ंत लगता है।
ई.1500 में बाबर की मौसी मिहिर निगार खानम को शैबानी खाँ ने पकड़ लिया तथा उससे बलपूर्वक विवाह कर लिया था। जब ई.1501 में शैबानी खाँ ने मिहिर निगार खानम की बहिन की पुत्री खानजादः बेगम से विवाह करने का निर्णय लिया तो शैबानी खाँ ने खानजादः की मौसी मिहिर निगार खानम को तलाक दे दिया क्योंकि मौसी और भांजी के एक ही पुरुष से विवाह को तब के मध्य-एशिया में इस्लाम के नियमों के विरुद्ध माना जाता था। खानजादः बेगम तथा शैबानी खाँ के दाम्पत्य से एक पुत्र भी हुआ था किंतु वह शैशव अवस्था में ही मर गया था। जब एक बार बाबर ने ईरान के शाह की सहायता से समरकंद पर पुनः अधिकार कर लिया तो खानजादः बेगम ने यह कहकर बाबर का पक्ष लिया कि समरकंद पर पहला अधिकार तो बाबर का ही है। इस बात से नाराज होकर शैबानी खाँ ने खानजादः बेगम को तलाक दे दिया और उसे दण्डित करने के लिए उसका विवाह सैयद हादा से करवा दिया जो एक नीचे ओहदे का कर्मचारी था।
ई.1511 में जब ईरान के शाह ईस्माल तथा शैबानी खाँ के बीच मर्व का युद्ध हुआ तो खानजादः का पूर्व पति शैबानी खाँ तथा वर्तमान पति सैयद हादा दोनों ही उस युद्ध में मारे गए। ईरान के शाह ईस्माइल ने शैबानी खाँ के हरम की औरतों को पकड़ लिया। पकड़ी गई औरतों में खानजादः बेगम भी सम्मिलित थी। शाह इस्माइल ने खानजादः बेगम को अपने सिपाहियों के संरक्षण में अपने मित्र बाबर के पास भेज दिया। उस समय बाबर कुंदूज में निवास कर रहा था।
इस प्रकार ई.1511 में खानजादः बेगम का उज्बेगों से पीछा छूट गया और वह फिर से तुर्को-मंगोल परिवार में अर्थात् बाबर के पास आ गई। उस समय खानजादः बेगम 33 साल की हो चुकी थी। शाह इस्लाइल की इस उदारता के लिए बाबर ने अपने अमीर, शाह के दरबार में भेजकर शाह का धन्यवाद किया तथा उसे उपहार भी भिजवाए। बाबर ने अपनी बहिन खानजादः बेगम का तीसरा विवाह मुहम्मद महदी ख्वाजा से किया जो बाबर के सबसे विश्वस्त अमीरों में से माना जाता था और जिसने पानीपत तथा खानवा के युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और जो बाद में भारत छोड़कर पुनः अफगानिस्तान चला गया था।
जिस समय खानजादः बेगम का महदी ख्वाजा से विवाह हुआ, उस समय महदी ख्वाजा की एक बहिन केवल दो वर्ष की थी। उसका नाम सुल्तानम बेगम था। खानजादः बेगम ने अपनी इस ननद का पालन-पोषण किया तथा जब वह बड़ी हो गई तो ई.1537 में उसका विवाह बाबर के पुत्र मिर्जा हिंदाल से करवा दिया। इस प्रकार मिर्जा हिंदाल खानजादः बेगम का भतीजा और नंदोई दोनों था। इस विवाह के अवसर पर खानजादः बेगम ने इतने बड़े शाहीभोज का आयोजन किया जो बरसों तक मुगल राज्य में चर्चा का विषय बना रहा। बाबर के किसी अन्य बेटे के विवाह का आयोजन इतना भव्य और विशाल नहीं हुआ था।
गुलबदन बेगम के अनुसार खानजादः बेगम ने बाबर के बेटों के परस्पर विवादों में अनेक अवसरों पर हस्तक्षेप किया था और उनमें समझौता करवाया था किंतु अब खानजादः बेगम मुगलिया राजनीति के रंगमंच से प्रस्थान कर चुकी थी और बाबर के बेटों की दर्द भरी दास्तान का सबसे क्रूर अध्याय आरम्भ होने वाला था!
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता