Saturday, July 27, 2024
spot_img

कोहिनूर हीरे की यात्रा

कोहिनूर हीरे की यात्रा के बारे में कुछ जानकारी हमने पिछली कड़ी में दी थी। कोहिनूर हीरे की यात्रा भगवान श्रीकृष्ण से भी पहले आरम्भ होती है। जिस समय मुसलमानों का भारत में प्रवेश हुआ, उस समय यह हीरा हिन्दू राजाओं के पास रहता था किंतु मुसलमानों ने इसे बलपूर्वक हिन्दुओं से छीन लिया।

तुर्क सुल्तानों से कोहिनूर हीरा मुगलों के पास आया और उनसे नादिरशाह छीनकर ईरान ले गया। कोहिनूर हीरे की यात्रा ईरान पहुंचकर थमी नहीं। ईरान से यह हीरा अफगानिस्तान और पंजाब होते हुए लंदन पहुंच गया! भारत में कोहिनूर हीरा जिस किसी के पास रहा उसे संकटों का सामना करना पड़ा।

दक्षिण भारत के गोलकुण्डा क्षेत्र से निकला कोहिनूर हीरा जिसके भी पास रहा उसे दुर्भाग्य के हवाले करता रहा। 20 जून 1747 को खून में लथपथ नादिरशाह की पगड़ी में लगा हुआ कोहिनूर अब पुनः नए मालिक की प्रतीक्षा में था। नादिरशाह के हत्यारों में नादिरशाह का भतीजा अली कुली भी शामिल था।

वह आदिल शाह के नाम से ईरान के तख्त पर बैठकर कोहिनूर का स्वामी बन गया किंतु केवल एक वर्ष बाद ही आदिलशाह के भाई इब्राहीम खाँ एवं नादिरशाह के पोते शाहरुख ने आदिलशाह को मार डाला और पूरी ईरानी सल्तनत टुकड़ों में बिखरकर चूर-चूर हो गई। कोहिनूर हीरे की यात्रा जारी रही।

अफगानिस्तान के सूबेदार अहमदशाह अब्दाली ने अपने क्षेत्रों को स्वतंत्र कर लिया तथा कोहिनूर हीरा भी उसके हाथों में पहुंच गया। ई.1748 में अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर अभियान किया किंतु उसका इतिहास आगे बताएंगे। इस आलेख को हम कोहिनूर हीरे तक सीमित रखेंगे। अहमदशाह अब्दाली के पास यह हीरा ई.1772 में उसकी मृत्यु होने तक रहा।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

अहमदशाह अब्दाली जीवन भर मध्य एशिया तथा भारत में विभिन्न युद्धों में उलझा रहा किंतु उसने लम्बी जिंदगी पाई तथा कोहिनूर हीरा उसके एवं उसके पुत्रों के पास ई.1830 तक रहा। ई.1830 में अहमदशाह अब्दाली का वंशज शाहशुजा दुर्रानी अफगानिस्तान से जान बचाकर भागा। उसने पंजाब के शासक महाराजा रणजीतसिंह को कोहिनूर हीरा भेंट किया तथा उनसे शरण मांगी। इस प्रकार कोहिनूर हीरे की यात्रा उसे एक बार फिर से भारत ले आई।

जब ई.1839 में महाराजा रणजीतसिंह की मृत्यु हुई तो उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा कि यह हीरा उड़ीसा के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर को भेंट कर दिया जाए किंतु उनके उत्तराधिकारियों ने महाराजा की इस इच्छा का सम्मान नहीं किया तथा हीरा सिक्खों के पास ही रहा।

लाल किले की दर्दभरी दास्तान - bharatkaitihas.com
TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

29 मार्च 1849 को ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने पंजाब पर अधिकार कर लिया। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने सिक्खों पर दबाव बनाकर उन्हें एक संधि करने पर विवश किया जिसके अनुसार यह हीरा अंग्रेजों को सौंप दिया गया। लॉर्ड डलहौजी ने यह हीरा हाथ में आते ही इंग्लैण्ड की यात्रा की तथा यह हीरा स्वयं ले जाकर महारानी विक्टोरिया को भेंट किया। इस प्रकार कोहिनूर हीरे की यात्रा ने उसे लंदन पहुंचा दिया। इंग्लैण्ड के लोगों ने लॉर्ड डलहौजी की इस कार्यवाही को खुली डकैती बताया तथा इस बात पर आपत्ति की कि लूट का माल महारानी को भेंट किया जाए।

लॉर्ड डलहौजी ने इस पंजाब के राजा दिलीपसिंह की तरफ से महारानी को दी गई भेंट बताया किंतु इस पर अंग्रेज आलोचकों ने कहा कि यदि यह महाराजा दिलीपसिंह की तरफ से भेंट थी तो स्वयं महाराजा के हाथों से महारानी को दी जानी चाहिए थी। इस पर लॉर्ड डलहौजी ने ई.1851 में महाराजा दिलीपसिंह की इंगलैण्ड यात्रा का प्रबंध किया। उस समय महाराजा दिलीपसिंह की आयु केवल 13 वर्ष थी।

महाराजा दिलीपसिंह ने स्वयं महारानी के महल में उपस्थित होकर यह हीरा अपने हाथों से महारानी को भेंट किया। जब यह हीरा इंग्लैण्ड की महारानी को भेंट किया गया था तब इसका वजन 186.6 कैरेट था किंतु ई.1852 में इसे पुनः तराशा गया और इसका वजन 105.6 कैरेट रह गया। इस कार्य पर इंग्लैण्ड की सरकार ने आठ हजार पाण्ड खर्च किए। अब इस हीरे को इंग्लैण्ड की महारानी के मुकुट में जड़ा गया। इसके चारों ओर दो हजार छोटे-छोटे हीरे लगाए गए।

इस प्रकार कोहिनूर भारत से इंगलैण्ड चला गया। इतिहास गवाह है कि इस घटना के केवल 6 साल बाद ही भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध भारी विप्लव हुआ जिसमें अंग्रेजों की सत्ता भारत से नष्ट होते-होते बची। इसके बाद से ही अंग्रेजी साम्राज्य सिकुड़ने लगा।

भले ही कोहिनूर हीरा इंग्लैण्ड की महारानी के मुकुट की शोभा बढ़ा रहा था किंतु इंग्लैण्ड के बड़े राजनीतिज्ञों का मानना था कि इंग्लैण्ड की महारानी के मुकुट में जड़ा हुआ सबसे कीमती हीरा स्वयं भारत है। इसकी कीमत क्या है, इसका पता हमें तब लगेगा जब भारत रूपी हीरा इंग्लैण्ड की रानी के राजमुकुट में नहीं रहेगा।

जब कोहिनूर हीरा इंगलैण्ड पहुंचा तब महारानी विक्टोरिया का राज्य इतना बड़ा था कि उसमें कहीं न कहीं सूरज उगा रहता था। इसलिए यह कहावत चल पड़ी थी कि अंग्रेजों के राज्य में सूरज नहीं डूबता! किंतु कोहिनूर की स्वामिनी बन जाने के बाद महारानी विक्टोरिया की सत्ता सिमटने लगी और ई.1947 के अंत तक दुनिया के अधिकांश देश इंग्लैण्ड के हाथों से निकल गए।

कोहिनूर तो आज भी इंग्लैण्ड के संग्रहालय में मौजूद है किंतु इंग्लैण्ड की रानी के मुकुट में जड़ा हुआ सबसे कीमती हीरा भारत अब उसके पास नहीं है।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source