नादिरशाह लाल किले से कोहिनूर हीरे के साथ-साथ मुगलों का दुर्भाग्य भी बांध कर ले गया ! इसी दुर्भाग्य के चलते शीघ्र ही खोरासान में नादिरशाह का कत्ल हो गया!
कोहिनूर हीरे के स्वामियों के बारे में कहा जाता था कि जिस किसी के पास भी यह हीरा होता था, वह परम दुर्भाग्य को प्राप्त हो जाता था। अब हीरा नादिरशाह के पास था और वह दोनों हाथों से बटोरी गई भारत की अपार दौलत लेकर तुरंत ईरान लौट जाना चाहता था।
नादिरशाह ने न केवल लाल किले की सारी दौलत लूट ली थी अपितु उसने मुहम्मदशाह रंगीला से काश्मीर से लेकर सिन्ध तक का विशाल क्षेत्र छीन लिया और मुहम्मदशाह की शहजादी जहान अफरूज बानो बेगम का अपने पुत्र से जबर्दस्ती विवाह कर दिया। नादिरशाह ने विभिन्न प्रकार का काम करने वाले दस हजार भारतीय कारीगरों एवं गुलामों को भी अपने साथ ले जाने के लिए रस्सियों से बंधवा लिया।
इस प्रकार नादिरशाह ने बादशाह मुहम्मदशाह से उसकी चल एवं अचल सम्पत्ति, उसकी शहजादी एवं भूमि, उसका तख्ते-ताउस एवं पगड़ी, उसके कारीगर एवं गुलाम, दासियां एवं वेश्याएं, गायिकाएं एवं नृत्यांगनाएं सभी कुछ छीन लिए।
जिन मुगलों ने विगत दो सौ साल में भारतीयों को कंगाल बना दिया था, उन्हीं मुगलों को नादिरशाह ने लंगोटी लगाकर छोड़ दिया था। नादिरशाह का बाप अफगानिस्तान में भेड़ें चराया करता था किंतु नादिरशाह संसार के सबसे बड़े खजाने का मालिक बन गया था। यह सारी सम्पत्ति 700 हाथियों, 4000 ऊँटों एवं 12 हजार घोड़ों पर लाद दी गई। मई 1739 में नादिरशाह ने दिल्ली छोड़ दी।
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जब वह ईरान लौटा तो उसने ईरान के समस्त नागरिकों का तीन साल का कर माफ कर दिया तथा कर वसूली के कर्मचारियों को घर बैठे वेतन देने की घोषणा कर दी किंतु कुछ ही समय बाद नादिरशाह ने तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य पर हमला किया जिसके लिए उसे फिर से धन की आवश्यकता होने लगी तो उसने ईरान की जनता पर बेतहाशा कर लगा दिए। इससे ईरान में नादिरशाह के विरुद्ध विद्रोह उठ खड़े हुए।
ई.1747 में नादिरशाह ने तुर्किस्तान में रहने वाले कुर्द लोगों पर भयानक अत्याचार किए तथा उनके कटे हुए सिरों की मीनारें बनवाईं ताकि वह जन्नत में निवास कर रही तैमूर लंगड़े की रूह को प्रसन्न कर सके। इससे नाराज होकर ईरान के बहुत से सेनापतियों ने नादिरशाह का कत्ल करने की योजना बनाई।
जून 1747 में नादिरशाह ने खोरासान पर आक्रमण किया। वहाँ वह इंसानी जिस्मों से खूनी खेल खेलने लगा। नादिरशाह के बहुत से सैन्य अधिकारी दूसरे देशों की मुसलमान प्रजा के साथ इतनी क्रूरता किए जाने को उचित नहीं समझते थे। पिएरे लुई बेजिन नामक एक लेखक ने लिखा है- ’20 जून 1747 को पंद्रह सेनापतियों ने नंगे खंजर हाथों में लेकर एक साथ नादिरशाह के तम्बू में प्रवेश किया।’ उनमें से प्रत्येक सेनापति नादिरशाह का कत्ल स्वयं करना चाहता था। इसलिए उन्होंने बेखबर सो रहे नादिरशाह के शरीर में ताबड़तोड़ खंजर भौंकने का निश्चय किया। जब ये मुस्लिम अमीर अपने स्वामी नादिरशाह के तम्बू में घुसे तो नादिरशाह जाग गया और क्रोध से चिल्लाया- ‘कौन है यहाँ, मेरी तलवार लाओ।’
उसकी गर्जना सुनकर हत्यारे सैनिकों का खून भय से जम गया। इनमें से कुछ हत्यारे तो भय से कांपते हुए तम्बू से बाहर निकल गए किंतु दो सेनापतियों ने हिम्मत करके नादिरशाह पर वार किए। मुहम्मदकुली खाँ नामक एक अमीर ने अपनी तलवार का भरपूर वार नादिरशाह पर कर दिया।
नादिरशाह घायल होकर धरती पर गिर पड़ा। इसके बाद दूसरे अमीरों की हिम्मत जाग गई और दो अमीरों ने भी अपनी तलवारें घुमाकर धरती पर पड़े नादिरशाह पर दे मारीं। तम्बू से बाहर गए हुए अमीर भी लौट आए। उन्होंने भी तड़ातड़ वार करने आरम्भ कर दिए। नादिरशाह अपने ही खून में लथपथ हो गया।
नादिरशाह ने अब भी प्रतिरोध करने के लिए खड़े होने का प्रयास किया तथा चिल्लाकर बोला- ‘तुम लोग मुझे क्यों मारना चाहते हो? तुम लोग मुझे जीवित छोड़ दो और मेरे पास जो भी है, उसे तुम ले लो।’
नादिरशाह की कमजोर और भय से कांपती हुई आवाज सुनकर हत्यारे अमीरों को जोश चढ़ गया। उनका भय बिल्कुल जाता रहा और सलह खाँ नामक एक सेनापति ने अपनी तलवार से नादिरशाह का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया।
इस प्रकार नादिरशाह का कत्ल हो गया तथा धरती के सबसे धनी सुल्तान की धरती से विदाई हो गई। कोहिनूर अब भी उसकी पगड़ी में लगा था जो हत्यारे अमीरों की ठोकरों में पड़ी हुई थी। कौन जाने यह कोहिनूर हीरे का बदला था या भारत की उस निरीह जनता की आहों ने असर दिखाया था जिनके शताब्दियों के खून-पसीने की कमाई को नादिरशाह 700 हाथियों, 4000 ऊँटों एवं 12 हजार घोड़ों पर लादकर ईरान ले आया था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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