जिस क्षण यह अनश्वर आत्मा अर्थात् जीवात्मा देह छोड़ देता है, उसी क्षण से मृत्यु के बाद की संभावनाएं आरंभ हो जाती हैं। भारतीय अध्यात्म और दर्शन देह त्याग के बाद के जीवन की भांति-भांति की संभावनाओं को व्यक्त करते हैं।
रामकथा में यह प्रसंग आता है कि जब भगवान शरभंग ऋषि के आश्रम पहुंचते हैं तो शरभंग ऋषि भगवान से कहते हैं कि मैं तो ब्रह्माजी के पास जा रहा था किंतु जब मैंने सुना कि आप आ रहे हैं तो मैं आपके दर्शनों के लिये रुक गया। इसके बाद शरभंग ऋषि योगानल से देह को भस्म कर देते हैं और जीवात्मा उसी समय तेज पुंज के रूप में बदल कर ऊर्ध्वगामी हो जाता है।
राम चरित मानस में यह प्रसंग भी आता है कि जब दशानन रावण ने जटायु को बुरी तरह घायल कर दिया और भगवान श्रीराम, सीताजी को खोजते हुए जटायु तक पहंुचे तब जटायु ने भगवान राम के अंक में देह त्याग किया। देह त्यागने के तुरंत पश्चात् महात्मा जटायु ने चार भुजा धारी विष्णु रूप में प्रकट होकर भगवान की स्तुति की।
जीवात्मा का कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में बने रहना ही मृत्यु के बाद का जीवन है। आदि काल से धरती के विभिन्न भागों में विकसित हुई सभ्यताओं की यह मान्यता रही है कि मृत्यु के बाद सब कुछ समाप्त नहीं हो जाता। किसी एक स्थान से जीवात्माएं आती हैं और फिर कुछ काल के लिये कहीं चली जाती हैं।
जीवात्मा की शांति
धरती से चली गयी जीवात्माओं के कल्याण की कामना से धरती के निवासी तर्पण, पिण्डदान और श्राद्ध जैसी धार्मिक क्रियाएँ करते हैं। महाभारत में भगवान वेदव्यासजी ने लिखा है कि महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद पाण्डवों ने राजा धृतराष्ट्र तथा अपने कुल के अन्य व्यक्तियों को साथ लेकर कौरव वंश के जो वीर युद्ध में हताहत हुए थे, उनका श्राद्ध किया। इसी प्रकार ऋषि वाल्मीकि लिखते हैं कि जब चित्रकूट में भगवान श्रीराम को अपने पिता के स्वर्गारोहण की सूचना मिली तो उन्होंने तीर्थ के जल से पिता का श्राद्ध किया।
अधिकांश मनुष्यों का विश्वास है कि मृत व्यक्तियों के नाम से धरती पर किया गया दान पुण्य उन जीवात्माओं को तब तक प्राप्त होता है जब तक कि उनका अंतिम रूप से मोक्ष न हो जाये, चाहे वे जीवात्माएं जिस किसी लोक में हों, जिस किसी अवस्था में हों।
राम चरित मानस में ही प्रसंग आता है कि जब भगवान राम ने दशानन रावण का वध कर दिया तब सारे देव गण भगवान की स्तुति के लिये आये, उनमें राजा दशरथ भी थे। अर्थात् देह त्याग के बाद भी दशरथजी की जीवात्मा किसी देवलोक में अपनी पुरानी स्मृति की अवस्था में ही बनी रही।
इस प्रकार हमारे धार्मिक ग्रंथों के सारे दृष्टांत देह त्याग के बाद के जीवन की विभिन्न प्रकार की संभावनाओं की ओर संकेत करते हैं।
-डॉ. मोहन लाल गुप्ता