Saturday, December 7, 2024
spot_img

अंग्रेजों का आक्रमण

भले ही अचानक आक्रमण करके अंग्रेजों से दिल्ली खाली करवा ली गई थी किंतु अंग्रेज जाति इतनी आसानी से न तो दिल्ली छोड़कर जाने वाली थी और न भारत! जल्दी ही दिल्ली पर अंग्रेजों का आक्रमण हुआ।

अठ्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की भारत भर में फैली सेनाओं ने विद्रोह का झण्डा उठाया था। इस कारण अंग्रेजों के लिए क्रांति को दबाना कठिन हो गया किंतु इस कठिन समय में राजस्थान के राजाओं ने अंग्रेजों का साथ दिया। इससे अंग्रेज अधिकारियों एवं उनके परिवारों की रक्षा हो गई। इसी प्रकार बर्मा, अफगानिस्तान, हिमालय की तराई एवं पंजाब में नियुक्त सेनाओं में विदा्रेह नहीं हुआ था। इस कारण अंग्रेजों ने इन स्थानों की सेनाओं को अम्बाला में एकत्रित करना आरम्भ किया ताकि दिल्ली पर आक्रमण किया जा सके। दिल्ली पर हमला करने से पहले ही बड़े अंग्रेज अधिकारी हैजे से मर गए!

1857 की क्रांति 29 मार्च 1857 को कलकत्ता के निकट बैरकपुर से आरम्भ हुई थी। उसके बाद मेरठ, लखनऊ, कानपुर, बिठूर, झांसी, जगदीशपुर, दानापुर, नीमच, नसीराबाद, ऐरनपुरा, कोटा, देवली, आउवा, रामगढ़ आदि विभिन्न स्थानों पर क्रांति फूट पड़ी थी। क्रांति के इस चरण में अंग्रेज भाग रहे थे और अपनी जान बचा रहे थे किंतु जैसे ही अंग्रेजों को दिल्ली से बाहर निकाल दिया गया क्रांति का दूसरा चरण आरम्भ हो गया।

पाठकों को स्मरण होगा कि 11 मई 1857 को अंग्रेजों ने दिल्ली से भागकर यमुना के पश्चिमी तट पर स्थित रिज पर बने फ्लैगस्टाफ-टॉवर के पास शरण ली थी, तभी कम्पनी सरकार के कर्मचारियों ने टेलिग्राफ के माध्यम से दिल्ली के बाहर स्थित छावनियों के अंग्रेज अधिकारियों को दिल्ली में हुए विद्रोह की सूचना भेज दी थी। इसलिए दिल्ली की तरफ अन्य सैनिक छावनियों से अंग्रेज सेनाएं अपेक्षाकृत अधिक शीघ्रता से भेजने की योजनाएं बनाई जाने लगीं किंतु इस कार्य में कई बाधाएं थीं।

इस काल में कम्पनी सरकार की राजधानी कलकत्ता में थी। इसलिए अंग्रेजों की सबसे बड़ी पलटन कलकत्ता के निकट बैरकपुर में रहती थी। इस काल में बंगाल आर्मी एशिया की सबसे बड़ी एवं आधुनिक सेना थी किंतु उसके 1 लाख 39 हजार सिपाहियों में से 1 लाख 32 हजार सिपाहियों ने अपने ब्रिटिश स्वामियों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था। इस कारण बंगाल आर्मी को निशस्त्र करने के लिए बर्मा से अंग्रेजी सेनाएं बुलाई गई थीं।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

बंगाल आर्मी के विद्रोह के कारण कलकत्ता से दिल्ली को किसी तरह की सैनिक सहायता भेजी जानी संभव नहीं थी। कम्पनी सरकार ने इस विद्रोह से पहले ही बंगाल आर्मी की ट्रांसपोर्ट यूनिट को खर्चा बचाने के चक्कर में भंग कर दिया था। इस कार्य से अंग्रेजों की मुसीबत और बढ़ गई।

अंग्रेजों की कुछ बड़ी सेनाएं अफगानिस्तान में थी और माना जाता था कि अंग्रेजी सेनाओं के सबसे जांबाज सेनापति अफगानिस्तान के बॉर्डर पर ही नियुक्त थे। ई.1848 में लगभग पूरा पंजाब अंग्रेजों के अधीन आ गया था, इस कारण हिमालय की तराई के ठण्डे स्थानों पर भी बहुत सी गोरी पलटनें पड़ी हुई थीं किंतु उन्हें दिल्ली तक पहुंचाना आसान नहीं था।

मोटर गाड़ी का आविष्कार होने में अभी 30 वर्ष का समय शेष था। इसलिए सेना के परिवहन के लिए घोड़ों की पीठ ही एकमात्र साधन था किंतु पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण बहुत से स्थानों पर तो सड़कें भी उपलब्ध नहीं थीं। पंजाब की नदियां भी इस कार्य में बड़ी रुकावट थीं।

इस कारण अंग्रेजों के पास तात्कालिक रूप से जो सीमित संभावनाएं मौजूद थीं, उनमें यही किया जा सकता था कि दिल्ली के आसपास से सेनाएं भिजवाकर दिल्ली के क्रांतिकारी सैनिकों को घेर लिया जाए ताकि उन्हें अनाज और रसद की कमी हो जाए। जब दूर की सेनाएं भी दिल्ली पहुंच जाएं तो विद्रोही सैनिकों पर सशस्त्र कार्यवाही आरम्भ की जाए।

लाल किले की दर्दभरी दास्तान - bharatkaitihas.com
TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

इतनी सारी मुसीबतों के होते हुए भी अंग्रेजों ने बहुत तेजी से फैसले लिए। सबसे पहले 17 मई 1857 को अम्बाला तथा मेरठ की गोरी पलटनों को दिल्ली के लिए रवाना किया गया। जब अम्बाला की सेना करनाल पहुंची तो सेना में हैजा फैल गया जिसके कारण सेना को करनाल में ही रुक जाना पड़ा। 27 मई को इस सेना का जनरल जॉर्ज एन्सन हैजे से मर गया। अपने जनरल की मृत्यु से अंग्रेजी सेना के मनोबल पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। इसी बीच अन्य छावनियों में भी विद्रोह हो जाने के समाचार मिलने लगे। इनमें नौशेरा, फिलोर, फीरोजपुर, नसीराबाद, हांसी, हिसार, मुरादाबाद, आगरा, अलीगढ़, मैनपुरी, इटावा, एटा, नीमच, देवली, माउण्ट आबू की छावनियां प्रमुख थीं।

यहाँ तक कि जब अम्बाला में ठहरी हुई गोरी पलटन के उच्च अधिकारी हैजे से जूझ रहे थे, तब अम्बाला छावनी के भारतीय सिपाहियों ने भी क्रांति का झण्डा उठा लिया और वे अपने हथियार लेकर दिल्ली की तरफ रवाना हो गए। अंग्रेज जनरल चुपचाप उन्हें जाते हुए देखते रहे। हैजे का प्रकोप कम होने पर अम्बाला वाली सेना ने मेजर जनरल हेनरी बरनार्ड के नेतृत्व में फिर से दिल्ली की तरफ बढ़ना आरम्भ किया।

वे अंग्रेज अधिकारी एवं उनके परिवार भी इस सेना के साथ हो लिए जो 11 मई 1857 को दिल्ली से प्राण बचाकर भाग आए थे। मेरठ से आ रही एक गोरी पलटन 7 जून 1857 को अलीपुर नामक स्थान पर अम्बाला वाली सेना से मिल गई। इस सेना का नेतृत्व ब्रिगेडियर आर्कडेल विल्सन कर रहा था। इन सेनाओं में गोरी पलटनों के साथ-साथ गोरखाओं की भी एक पलटन शामिल थी।

8 जून 1857 को ये दोनों अंग्रेजी सेनाएं एक साथ यमुना के पश्चिमी तट से लगभग 10 किलोमीटर दूर बड़ली की सराय नामक स्थान पर पहुंचीं। इस समय देश के विभिन्न स्थानों से आई हुई बहुत सी क्रांतिकारी सेनाएं इसी स्थान पर डेरा डाले हुए थीं। क्रांतिकारी सैनिकों की संख्या बहुत अधिक थी किंतु उनमें किसी तरह की संगठनात्मक रचना नहीं थी।

अतः अंग्रेज सेनाओं ने इन क्रांतिकारी सेनाओं पर तत्काल आक्रमण कर दिया। अंग्रेजों का आक्रमण इतना प्रबल था कि क्रांतिकारियों की सेनाओं को बड़ली की सराय से पीछे भागकर दिल्ली में घुस जाना पड़ा और अंग्रेजों ने यमुना के पश्चिमी तट पर स्थित रिज पर अधिकार कर लिया जो कि दिल्ली के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित थी।

रिज से दिल्ली का काबुल गेट केवल सवा किलोमीटर दूर था तथा हिन्दू राव हाउस साफ दिखाई देता था। रिज पर अधिकार हो जाने से अंग्रेजों की स्थिति काफी मजबूत हो गई। पहाड़ी की बगल में यमुना से निकलने वाली एक नहर भी बहती थी जिससे अंग्रेजों को पानी की कमी नहीं रही।

अभी अंग्रेज रिज पर बैठकर आगे की योजनाएं ही बना रहे थे कि बंगाल आर्मी की 10 घुड़सवार सेनाएं तथा 15 पैदल सेनाएं भी दिल्ली पहुंचकर क्रांतिकारियों के साथ हो गईं। उन्होंने 19 जून को अंग्रेजों पर हमला किया किंतु ऊंचाई पर होने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें अपने निकट नहीं आने दिया।

23 जून 1857 को प्लासी के युद्ध के ठीक सौ वर्ष पूरे हुए। भारतीय लोगों में यह विश्वास प्रचलित था कि जिस दिन अंग्रेजों को भारत पर शासन करते हुए सौ साल हो जाएंगे, उसी दिन भारत से उनकी सत्ता समाप्त होगी। अतः 23 जून को क्रांतिकारी सैनिकों ने अंग्रेजों पर बड़ा हमला बोला। अंग्रेजों ने इस हमले को विफल कर दिया।

30 जून को गाजियाबाद के निकट हिण्डन नदी के पुल पर अंग्रेजों और क्रांतिकारी सैनिकों के बीच एक संक्षिप्त संघर्ष हुआ। इस युद्ध में क्रांतिकारी सैनिकों का नेतृत्व बहादुरशाह जफर के पुत्र अबू बकर ने किया किंतु क्रांतिकारियों की सेना पराजित हो गई।

इस बीच दिल्ली में गर्मी बहुत बढ़ गई तथा अंग्रेजी सेना में फिर से हैजा फैल गया। 5 जुलाई 1857 को जनरल बर्नार्ड की हैजे से मृत्यु हो गई। मेजर जनरल रीड भी हैजे की चपेट में आ गया। अतः अंग्रेजी सेना की कमान आर्कडेल विल्सन के हाथों में आ गई। उसे मेजर जनरल बना दिया गया। हैजे के कारण कुछ समय के लिए अंग्रेजों का आक्रमण टल गया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source