Friday, April 19, 2024
spot_img

53. मिर्जा हिन्दाल ने हुमायूँ की पीठ में तीसरी छुरी मारी!

जब हुमायूँ ने शेर खाँ की तरफ बढ़ना आरम्भ किया तब शेर खाँ ने हुमायूँ को पत्र लिखकर आग्रह किया कि आप मेरे विरुद्ध कार्यवाही नहीं करें। मैं आपका पुराना गुलाम हूँ। आप मुझे रहने के लिए कोई स्थान दे दें ताकि मैं वहाँ निवास कर सकूं। मैं आपको 10 लाख रुपया वार्षिक कर के रूप में भेज दिया करूंगा।

शेर खाँ का पत्र पहुंचने के तीन दिन बाद बंगाल का सुल्तान मुहम्मद खाँ घायल अवस्था में हुमायूँ के शिविर में उपस्थित हुआ। गुलबदन बेगम ने लिखा है कि बंगाल का सुल्तान युद्ध में घायल होकर हुमायूँ की शरण में आया। सुल्तान मुहम्मद खाँ ने हुमायूँ से कहा कि आप शेर खाँ की बात का विश्वास न करें। वह दगा करेगा। उसने हर आदमी के साथ आज तक दगा ही की है।

विद्या भास्कर ने अपनी पुस्तक शेरशाह सूरी में लिखा है कि सुल्तान महमूद हुमायूँ के सामने लाया गया किंतु हुमायूँ ने उसका उचित आदर और स्वागत नहीं किया। हुमायूँ ने बंगाल के सुल्तान के साथ साधारण उदारता का परिचय भी नहीं दिया, इससे सुल्तान महमूद को बड़ी मार्मिक वेदना हुई। मानसिक चिंता और अपमान से कुछ ही दिनों में उसका देहांत हो गया। हुमायूँ ने उसकी सेना को अपने अधीन कर लिया।

जिस जगह पर हुमायूँ का शिविर लगा हुआ था, उससे लगभग 24 किलोमीटर दूर शेर खाँ ने अपनी सेना के बीस हजार घुड़सवारों को शिविर लगाने भेजा ताकि जब मुगल सेना शेर खाँ की तरफ आगे बढ़े तो शेर खाँ के सैनिक मुगल सेना को पीछे से आकर तंग करें।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

हुमायूँ के शिविर से कुछ दूरी पर एक गांव स्थित था। एक दिन हुमायूँ के कुछ सैनिक उस गांव में कुछ सामान खरीदने गए। वहाँ उन्होंने कुछ घुड़सवारों को घूमते हुए देखा। इस पर हुमायूँ के सैनिकों ने गांव वालों से पूछा कि ये लोग कौन हैं? गांव वालों ने हुमायूँ के सैनिकों को बताया कि ये शेर खाँ के सैनिक हैं। शेर खाँ स्वयं भी इस गांव से कुछ दूरी पर एक शिविर में ठहरा हुआ है। शेर खाँ का नाम सुनते ही हुमायूँ के सैनिक भयभीत हो गए और तुरंत ही उस गांव से निकल कर अपने शिविर में लौट आये।

हुमायूँ ने अपने सेनापतियों को शेर खाँ के विरिुद्ध अभियान करने के आदेश दिए तथा स्वयं भी एक सेना लेकर गौड़ के लिए चल दिया। गुलबदन बेगम ने लिखा है कि जब शेर खाँ ने सुना कि बादशाह हुमायूँ आ रहा है तो शेर खाँ तेज गति से चलता हुआ झारखण्ड से गढ़ी चला गया ताकि हुमायूँ को गौड़ पहुंचने से रोका जा सके।

बंगाल और बिहार के बीच में एक दर्रा है जिसके एक ओर गंगाजी तथा दूसरी ओर एक पहाड़ी स्थित है। इस स्थान को उन दिनों तेलिया गढ़ी कहते थे किंतु गुलबदन बेगम ने इसे गढ़ी लिखा है। संभवतः इस स्थान पर कोई पुरानी गढ़ी अर्थात् लघु दुर्ग था।

गढ़ी पर शेर खाँ के अमीर खवास खाँ का अधिकार था किंतु शेर खाँ ने अपने पुत्र जलाल खाँ को आदेश दिया कि वह गढ़ी पहुंचकर गढ़ी को मजबूत करे तथा उसमें मोर्चा बांधे। इसके बाद शेर खाँ स्वयं भी उसी गढ़ी में आ गया। दोनों ओर के गुप्तचर दोनों ओर हो रही गतिविधियों के समाचार अपने-अपने स्वामी को पहुंचा रहे थे। शेर खाँ ने अपने अधिकांश सैनिकों को रोहतास के दुर्ग में नियुक्त किया है और स्वयं गढ़ी चला गया है, यह बात हुमायूँ को ज्ञात हो गई। इसलिए हुमायूँ भी रोहतास की ओर न जाकर गढ़ी की ओर बढ़ा।

जब हुमायूँ गढ़ी के निकट पहुंचा तो दोनों पक्षों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में हुमायूँ का सेनापति जहांगीर बेग बुरी तरह घायल हो गया किंतु शेर खाँ को अपनी पराजय स्पष्ट दिखाई देने लगी। इसलिए रात के अंधेरे का लाभ उठाकर शेर खाँ तथा उसका पुत्र जलाल खाँ गढ़ी छोड़कर जंगलों में भाग गए। हुमायूँ गढ़ी से आगे बढ़कर गौड़ पहुंचा। हुमायूँ नौ महीने तक गौड़ दुर्ग पर घेरा डालकर पड़ा रहा। अंत में गौड़ पर भी हुमायूँ का अधिकार हो गया। हुमायूँ ने गौड़ दुर्ग का नाम बदलकर जिन्नताबाद रख दिया। जब हुमायूँ गौड़ में था, तब उसे सूचना मिली कि मिर्जा हिंदाल ने बगावत कर दी है तथा बहुत से मुगल सेनापति एवं बेग हुमायूँ का पक्ष त्यागकर मिर्जा हिंदाल की तरफ चले गए हैं।

पाठकों को स्मरण होगा कि मिर्जा हिंदाल हुमायूँ का सबसे छोटा सौतेला भाई था जिसका पालन-पोषण हुमायूँ की माता माहम बेगम ने किया था। गुलबदन बेगम मिर्जा हिंदाल की सगी बहिन थी। मिर्जा हिंदाल बदख्शां में हुमायूँ के संरक्षण में रहा करता था और हुमायूँ उसे बदख्शां का गवर्नर बनाकर स्वयं आगरा आ गया था किंतु बाबर की मृत्यु से पहले ही हिंदाल भी भारत आ गया था और बाबर की मृत्यु के बाद बादशाह हुमायूँ ने मिर्जा हिंदाल को मेवात का राज्य दे दिया था किंतु हिंदाल मेवात से संतुष्ट नहीं था और अपने लिए अधिक उपाजाऊ एवं बड़े समृद्ध क्षेत्र चाहता था।

मिर्जा हिंदाल का यह विद्रोह अपने बड़े भाई हुमायूँ की पीठ में छुरी भौंकने जैसा था। उससे पहले हुमायूँ का भाई मिर्जा कामरान भी हुमायूँ के साथ छल करके पंजाब पर अधिकार कर चुका था और हुमायूँ का बहनोई मिर्जा जमां तथा उसके पुत्र भी हुमायूँ का पक्ष छोड़कर गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के पक्ष में जा चुके थे। अपने ही परिवार के लोगों द्वारा हुमायूँ की पीठ में भौंकी गई यह तीसरी छुरी थी।

गुलबदन बेगम ने लिखा है कि खुसरू बेग, जाहिद बेग और सैयद अमीर मिर्जा हिंदाल की तरफ हो गए। उन्होंने हिंदाल को बताया कि मुहम्मद सुल्तान मिर्जा, उसके पुत्र उलूग मिर्जा एवं शाह मिर्जा ने फिर से सिर उठाया है। वे सदैव एक स्थान पर रहते हैं। शेखों का रक्षक शेख बहलोल, मुहम्मद सुल्तान मिर्जा की तरफ हो गया है तथा शाही युद्ध-भण्डार की सामग्री तहखाने में छिपाकर चुपके से छकड़ों में लादकर बागी मिर्जाओं और शेर खाँ को भिजवाता है। इस पर मिर्जा हिंदाल ने नूरूद्दीन मुहम्मद को भेजकर तहखानों और छकड़ों की जांच करवाई तो खुसरू बेग, जाहिद बेग और सैयद अमीर की बात सही पाई गई। इस पर हिंदाल ने शेख बहलोल को मार दिया।

कुछ लेखकों के अनुसार हुमायूँ ने हिंदाल को आदेश भिजवाए कि वह अपने सैनिक लेकर हुमायूँ की सहायता के लिए आए किंतु हिन्दाल ने हुमायूँ से सम्पर्क समाप्त कर दिया। हिन्दाल के इस व्यवहार से हुमायूँ को बड़ी चिन्ता हुई। उसने वास्तविकता का पता लगाने के लिय शेख बहलोल को आगरा भेजा। हिन्दाल के कर्त्तव्य-भ्रष्ट हो जाने के कारण हुमायूँ की सेना में रसद की कमी हो गई। इधर शेर खाँ ने आगरा जाने वाले मार्गों पर नियन्त्रण कर लिया। इन परिस्थितियों में बंगाल से वापसी-यात्रा की तैयारी करने के अतिरिक्त हूमायू के पास कोई चारा नहीं बचा।

थोड़े ही दिनों में हुमायूँ को सूचना मिली कि हिन्दाल ने आगरा पर अधिकार करके शेख बहलोल की हत्या कर दी है। इस पर हुमायूँ ने बंगाल से शीघ्र ही प्रस्थान करने का निश्चय किया। वह बंगाल का शासन जहाँगीर कुली खाँ को सौंपकर गौड़ से आगरा के लिए चल दिया। वह गंगाजी के किनारे-किनारे चलता हुआ मुंगेर पहुंचा तथा अपने परिवार को नावों पर सवार करके हाजीपुर पटना पहुंच गया। यहीं पर हुमायूँ को समाचार मिला कि शेर खाँ भारी सेना लेकर आ रहा है। हुमायूँ के पास अपनी शाही सेना तो थी ही, इसके साथ ही हुमायूँ के आदेश से जौनपुर से बाबा बेग, चुनार से मीरक बेग और अवध से मुगल बेग अपनी-अपनी सेनाएं लेकर हुमायूँ की सेवा में आ गए। गुलबदन बेगम ने लिखा है कि इन सेनाओं के आने से उस क्षेत्र में अनाज महंगा हो गया।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source