Friday, March 29, 2024
spot_img

52. शेर खाँ ने राजा चिंतामणि के साथ घिनौना व्यवहार किया!

जब हुमायूँ ने चुनार दुर्ग पर अधिकार कर लिया तो शेर खाँ को हुमायूँ का मार्ग रोकने के लिए एक सुदृढ़ दुर्ग की आवश्यकता हुई। उसकी दृष्टि रोहतास दुर्ग पर पड़ी। उस काल में चुनार के किले को बंगाल का पहला नाका और रोहतासगढ़ को बंगाल का दूसरा नाका कहते थे।

रोहतास दुर्ग बिहार में बहने वाली सोन नदी के तट पर स्थित कैमूर पहाड़ी पर बना हुआ है। जनश्रुतियों के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण अयोध्या के राजा महाराज हरिश्चन्द्र के पुत्र राजा रोहिताश्व ने करवाया था। इस कारण यह दुर्ग भारत के प्राचीनतम दुर्गों में से एक है। इस दुर्ग में महाराज रोहिताश्व का एक अत्यंत प्राचीन मंदिर भी स्थित था जिसे मुगल बादशाह औरंगजेब ने तुड़वाया था।

रोहतासगढ़ से 7वीं शती ईस्वी के बंगाल के महासामंत शशांक का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है जो थानेश्वर के सम्राट हर्षवर्द्धन का समकालीन था तथा जिसने हर्षवर्द्धन के भाई राज्यवर्धन को मारा था। हुमायूँ के काल में रोहतासगढ़ को भारत के सुदृढ़तम किलों में गिना जाता था। यह दुर्ग पूर्व से पश्चिम में चार मील और उत्तर से दक्षिण में पाँच मील के विस्तार में है। भारत में इतना बड़ा दुर्ग और कोई नहीं है। उस काल में इस दुर्ग में चौदह द्वार थे।

बहुत समय तक रोहतास दुर्ग कुशवाहा राजाओं के अधिकार में रहा। उसके बाद खारवार राज्य के अंतर्गत रहा। ई.1539 में रोहतास दुर्ग पर राजा चिंतामणि का शासन था। इतिहास की पुस्तकों में राजा चिंतामणि को नृपति भी कहा गया है। राजा चिन्तामणि शेर खाँ का मित्र था। हुमायूँ का मार्ग रोकने के लिए शेर खाँ ने इस दुर्ग को अपना केन्द्र बनाने का निश्चय किया। शेर खाँ जानता था कि वह लड़कर रोहतास के दुर्ग पर अधिकार नहीं कर सकता। इसलिए शेर खाँ ने यहाँ भी वैसा ही षड़यंत्र करने की योजना बनाई जैसा षड़यंत्र उसने चुनार की बेवा लाड मलिका के साथ किया था।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

शेर खाँ ने रोहतास के राजा चिन्तामणि के पास अपना दूत भेजकर उससे प्रार्थना की कि चुनार दुर्ग पर मुगलों ने अधिकार कर लिया है और मेरे परिवार को किसी सुरक्षित स्थान की आवश्यकता है। अतः आप कुछ समय के लिए रोहतास दुर्ग मुझे दे दें ताकि मेरा परिवार वहाँ रह सके। जब हुमायूँ पूरब से वापस आगरा लौट जाएगा, तब मैं रोहतास का दुर्ग आपको लौटा दूंगा। राजा चिंतामणि ने शेर खाँ को अपना मित्र समझ कर संकट की इस घड़ी में शेर खाँ की सहायता करने का निश्चय किया तथा रोहतास दुर्ग शेर खाँ के परिवार को रहने के लिए दे दिया।

शेर खाँ से कहा गया कि वह केवल अपने परिवार की महिलाओं को उनकी दासियों के साथ दुर्ग में रहने के लिए भेज दे। उनके साथ पुरुष न भेजे जाएं। आपके परिवार की महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी राजा चिंतामणि के सैनिक करेंगे। शेर खाँ ने राजा चिंतामणि की यह शर्त स्वीकार कर ली और अपने परिवार को रोहतास दुर्ग में भेज दिया।

शेर खाँ के सैनिक कई सौ डोलियाँ कंधों पर उठाकर रोहतास दुर्ग पहुंचे। दुर्ग के द्वार पर शेर खाँ के सैनिकों को रोक दिया गया और डोलियों की जांच करके उन्हें दुर्ग के भीतर लिया जाने लगा। आगे की डोलियों में कुछ बूढ़ी औरतें थीं। इन डोलियों को दुर्ग में प्रवेश दे दिया गया किंतु इनके पीछे की डोलियों में शेर खाँ के सशस्त्र सैनिक बैठे हुए थे। वे डोलियों से कूदकर बाहर आ गए। इस समय दुर्ग का द्वार खुला हुआ था और राजा चिंतामणि के बहुत कम सैनिक शेर खाँ के परिवार की डोलियों की जांच एवं पहरे के काम पर नियुक्त थे।

इसलिए शेर खाँ के सशस्त्र सैनिकों ने राजा चिंतामणि के सैनिकों को संभलने का अवसर दिए बिना ही उनका कत्ल कर दिया। शेर खाँ स्वयं भी एक सेना लेकर दुर्ग के बाहर पहाड़ी में छिपा हुआ था। उसने भी दुर्ग में घुसकर दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

शेर खाँ का यह कृत्य अत्यंत घिनौना था और विश्वासघात की पराकाष्ठा था। भारत के इतिहास में ऐसे विश्वासघात बहुत कम मिलते हैं किंतु शेर खाँ ने शत्रु पर विजय पाने की लालसा में यह कलंक अपने माथे पर ले लिया। शेर खाँ ने रोहतास दुर्ग के चौदह दरवाजों में से दस दरवाजे बंद करवा दिए तथा चार दिशाओं में केवल चार दरवाजे रखकर उन पर कड़े पहरे लगाए ताकि कोई भी व्यक्ति धोखे से दुर्ग में प्रवेश न कर सके।

बहुत से इतिहासकार लिखते हैं कि रोहतास दुर्ग का निर्माण शेरशाह सूरी ने करवाया था किंतु यह बात सही नहीं है। रोहतास दुर्ग भारत के सबसे प्राचीन किलों में से था। बहुत से इतिहासकारों ने लिखा है कि शेरशाह सूरी ने रोहतास दुर्ग की चारदीवारी का निर्माण करवाया। यह बात भी बिल्कुल गलत है। भारत के इस विशालतम दुर्ग की चारदीवारी युगों से अस्तित्व में थी। शेरशाह ने उस चारदीवारी के दस दरवाजों को बंद करवाकर उसे मजबूत बनाने का कार्य किया था।

चुनार पर अधिकार करने के बाद हुमायूँ ने बनारस पर भी अधिकार कर लिया और उधर शेर खाँ ने रोहतास दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार दोनों पक्ष अपनी-अपनी स्थिति मजबूत करके एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रख रहे थे।

जब हुमायूँ बनारस से आगे बढ़ा तो शेर खाँ झारखण्ड चला गया तथा हुमायूँ के अगले कदम की प्रतीक्षा करने लगा। कुछ पुस्तकों में लिखा है कि शेर खाँ ने हुमायूँ को संदेश भिजवाया कि आप मेरे विरुद्ध कार्यवाही नहीं करें। मैं आपका पुराना गुलाम हूँ। आप मुझे रहने के लिए कोई स्थान दे दें ताकि मैं वहाँ निवास कर सकूं। मैं आपको 10 लाख रुपया वार्षिक-कर के रूप में भेज दिया करूंगा।

जब शेर खाँ के सैनिकों ने बंगाल के सुल्तान महमूद से गौड़ का दुर्ग खाली करवाया था तब बंगाल का सुल्तान महमूद उत्तरी बंगाल की ओर भाग खड़ा हुआ था। कुछ समय बाद में उसने हुमायूँ की शरण में जाने की योजना बनाई। जब शेर खाँ को ज्ञात हुआ कि बंगाल का सुल्तान महमूद बादशाह हुमायूँ की शरण में जाना चाहता है तो शेर खाँ ने अपनी सेना को आदेश दिए कि वह बंगाल के सुल्तान का पीछा करे और उसे हुमायूँ तक नहीं पहुंचने दे।

मार्ग में एक स्थान पर बंगाल तथा शेर खाँ की सेनाओं में पुनः संघर्ष हुआ जिसमें बंगाल का सुल्तान बुरी तरह घायल हुआ किंतु युद्ध के मैदान से जीवित ही निकल भागने में सफल रहा और पटना के पास हाजीपुर नामक स्थान पर पहुंच गया। इस समय हुमायूँ भी हाजीपुर में शिविर लगाए हुए था। 

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source