Friday, March 29, 2024
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184 वेश्याओं के यहाँ जाने वालों के नाम रजिस्टर में लिखवाता था अकबर!

अकबर ने हिन्दू राजाओं पर मजबूती से शिकंजा कसकर उन्हें अपने अधीन कर लिया तथा उन्हीं से अपने राज्य-विस्तार का कार्य करवाया। अकबर ने उनका विश्वास जीतकर उन्हें अपने राज्य का मुख्य प्रहरी बना लिया। इस कारण अकबर को अपने प्रतिद्वंद्वी शहजादों एवं अमीरों पर भी नकेल कसने में सहायता मिल गई।

कुछ लोगों ने अकबर द्वारा हिन्दू राजाओं को शासन में कनिष्ठ भागीदारी दिए जाने को अकबर की धार्मिक उदारता का प्रमाण मानकर अकबर की भूरि-भूरि प्रशंसा की है जिनमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू भी सम्मिलित हैं। जबकि कुछ इतिहासकारों ने इसे हिन्दू अस्मिता के लिए बहुत खतरनाक बताया है।

अकबर के कुछ कार्यों ने भारतीय समाज को गहराई तक प्रभावित किया। जब बड़ी संख्या में हिन्दू राज्य अकबर के अधीन हो गए तो उसने भारत की सामाजिक व्यवस्था में सुधार लाने के लिए कुछ नए कानूनों का निर्माण किया। ई.1582 में अकबर ने एक बहुत बड़े दरबार का आयोजन किया जिसमें उसने प्रजा के कल्याण के लिये कई घोषणाएं कीं।

अकबर ने आज्ञा दी कि राज्य में गुलामी की प्रथा बन्द कर दी जाये तथा युद्ध-बंदियों को भी गुलाम न बनाया जाये। उसने कोतवालों को आदेश दिये कि वे गुलामों का क्रय-विक्रय बंद कर दें। इस आज्ञा के बाद गुलामों को मुक्त कर दिया गया। राज्य से न केवल गुलामी की प्रथा को हटा दिया गया अपितु गुलाम शब्द का प्रयोग निषिद्ध कर दिया गया। इसके स्थान पर ‘चेला’ शब्द का प्रयोग होने लगा।

अकबर ने अपने राज्य में बारह वर्ष की आयु के पूर्व विवाह न करने की आज्ञा प्रसारित की। बादशाह ने आज्ञा दी कि बादशाह की स्वीकृति के बिना, प्रान्तीय गवर्नर किसी भी व्यक्ति को प्राणदण्ड न दें। मध्यकालीन मुस्लिम शासन पद्धति में इसे अकबर का एक क्रांतिकारी कदम समझा जाना चाहिए। क्योंकि उस काल में शासकों द्वारा किसी मनुष्य के प्राण ले-लेना बहुत ही साधारण बात थी। बात-बात पर लोगों के सिर काट लिए जाते थे। अकबर ने अपने मंत्रियों, अधिकारियों एवं प्रांतपतियों को आज्ञा दी कि जहाँ तक सम्भव हो, छोटे पक्षियों की रक्षा की जाये क्योंकि इनको मारने से किसी का पेट नहीं भरता तथा अकारण जीव हिंसा होती है।

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अकबर ने आज्ञा प्रसारित की कि उसके महल में प्रतिदिन दान-दक्षिणा दी जाये। उसने यह भी आदेश प्रसारित किया कि सल्तनत के समस्त मार्गों पर सरायें बनवाई जायें, दीन-दुखियों की देखभाल की जाए और अस्पतालों की स्थापना की जाए।

जन-सामान्य की भलाई के साथ-साथ अकबर ने अपनी सल्तनत में महिलाओं की दशा सुधारने की ओर भी ध्यान दिया। इस तरह का प्रयत्न उससे पहले किसी भी मुस्लिम शासक ने नहीं किया था। उस काल में विधवा स्त्रियां बड़ी संख्या में सती होती थीं। सती होने वाली स्त्रियों में वे छोटी-छोटी लड़कियां भी होती थीं जिनके बालविवाह किए जाते थे और जिनके पति किसी बीमारी एवं युद्ध आदि के कारण मर जाते थे। हजारों ऐसी स्त्रियां भी होती थीं जिन्होंने विवाह के बाद एक बार भी अपनी ससुराल का मुंह नहीं देखा था।

ई.1591 में अकबर ने अपनी सल्तनत में ‘जबरन सती प्रथा’ का निषेध कर दिया। उसने आज्ञा प्रसारित करवाई कि कोई भी विधवा स्त्री, उसकी इच्छा के विरुद्ध सती न कराई जाए और जो स्त्रियाँ गौने के पहले विधवा हो जायें उन्हें कदापि सती नहीं होने दिया जाए। कहा जाता है कि जोधपुर के मोटाराजा उदयसिंह की पुत्री के पति जयमल की मृत्यु चौसा में हो गई। इस पर मोटाराजा उदयसिंह ने अपनी पुत्री को सती करने के आदेश दिए। जब अकबर को यह बात ज्ञात हुई तो वह एक तेज घोड़े पर सवार होकर घटना स्थल पर पहुंचा और उसने उस लड़की को सती किए जाने से पहले ही वहाँ पहुंचकर बचा लिया। जब लड़की के पीहर वालों ने हो-हल्ला किया तो अकबर ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

अकबर ने विधवा विवाह को राज्य की ओर से स्वीकार्य मान लिया तथा एक-पत्नी प्रथा को प्रोत्साहित किया। अकबर ने आदेश जारी किया कि एक पुरुष के एक समय में एक ही पत्नी होनी चाहिये। कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के जीवन काल में दूसरा विवाह तभी कर सकता था जब उसकी पहली पत्नी वन्ध्या हो। हालांकि अकबर के स्वयं के हरम में पांच हजार स्त्रियां रहती थीं। चूंकि इस्लाम में कानूनन चार विवाह करने की स्वीकृति है। इसलिए मुल्ला-मौलवियों ने एक विवाह के नियम को इस्लाम के विरुद्ध बताया और इस नियम का विरोध किया।

ई.1592 में अकबर ने घोषणा की कि 16 वर्ष की आयु के पहले किसी बालक का और 18 वर्ष की आयु के पहले किसी बालिका का विवाह न किया जाये। बादशाह ने आज्ञा जारी की कि कोई व्यक्ति बलपूर्वक अथवा अनैतिक प्रलोभन देकर किसी लड़की से विवाह नहीं कर सकेगा। अकबर ने वेश्याओं तथा भ्रष्ट-स्त्रियों को नगर छोड़कर चले जाने की आज्ञा दी। दाखिली सेना (पुलिस) को आदेश दिया गया कि जो लोग वेश्याओं के यहाँ जायें अथवा उन्हें अपने यहाँ बुलायें उन पर कड़ी निगाह रखी जाये और उनका नाम रजिस्टर में लिखा जाये।

अकबर ने अपने राज्य में सब लोगों को अपनी इच्छानुसार धर्म अथवा मजहब का पालन करने एवं धर्म-परिवर्तन करने की स्वतन्त्रता दे दी। अकबर ने सल्तनत में शराब के विक्रय तथा उत्पादन का निषेध कर दिया परन्तु अनुज्ञा-धारकों की दुकानों पर औषधि के लिए शराब मिल सकती थी। अकबर ने अपनी राजधानी से भिखमंगों को भी दूर करने का प्रयत्न किया।

इतिहासकारों द्वारा वर्णित अकबर के सुधारों को पढ़कर बड़ा आश्चर्य होता है। विशेषकर तब, जबकि अकबर स्वयं जीवन भर उन सुधारों की भावनाओं के ठीक विपरीत काम करता रहा था। कहा जाता है कि अकबर ने अपने प्रांतपतियों को आज्ञा दी कि वे किसी को भी प्राणदण्ड न दें जबकि स्वयं अकबर अपने विरोधियों को हाथी के पैरों तले कुचलवाता रहा था और अपने शत्रुओं के सिर काटकर उनकी मीनारें चिनवाता रहा था!

कहा जाता है कि अकबर ने अपनी प्रजा को आदेश दिया कि केवल एक ही पत्नी रखी जाए तथा वेश्याओं के यहाँ जाने वालों के नाम रजिस्टर में लिखे जाएं जबकि अकबर के हरम में पांच हजार स्त्रियां थीं। उसने तिब्बत से लेकर तूरान तक, पंजाब से लेकर पुर्तगाल तक और गुजरात से लेकर गोआ तक की औरतों से निकाह और मुताह किए थे। उसके हरम में हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई आदि विभिन्न धर्मों एवं मजहबों की औरतें थीं। अकबर ने अपनी प्रजा को भी न केवल इस्लामी परम्परा के अनुसार चार बीवियां रखने को स्वीकृति दे रखी थी अपितु मुताह के माध्यम से कितनी ही लौण्डियाओं (गुलाम स्त्रियों) को अपनी बीवी बनाने का आदेश जारी कर रखा था। ऐसी स्थिति में वह अपनी प्रजा को एक विवाह करने का आदेश कैसे दे सकता था!

कहा जाता है कि अकबर ने अपनी प्रजा के नाम आदेश जारी किया कि जहाँ तक संभव हो छोटे पक्षियों का शिकार नहीं किया जाए क्योंकि इनसे किसी का पेट नहीं भरता। जबकि अकबर जीवन भर जंगलों में जाकर शिकार खेलता रहा था जिनका उद्देश्य किसी का पेट भरना नहीं था, अपितु अपना मनोरंजन करना था।    

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