भारत के राजनेता चौबीसों घण्टे केवल अपने वोट बैंक की परवाह करते हैं। उनकी सारी नीतियां अपने वोट बैंक को मजबूत बनाने पर केन्द्रित रहती हैं। भारत के लोकतंत्र की यह एक बड़ी भारी त्रासदी है। देश पीछे की ओर जा रहा है और सरकारें इस बात का प्रचार कर रही है कि देश आगे की ओर जा रहा है।
देश में अनुसूचित जातियों और जनजातियों को आरक्षण, अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण, महिलाओं को आरक्षण, विकलांगों को आरक्षण, खिलाड़ियों को आरक्षण, पूर्व सैनिकों को आरक्षण, सांस्कृतिक कोटा, अल्पसंख्यकों को आरक्षण, रिश्वत लेकर की जा रही भर्ती, मृतक राजकर्मचारियों के आश्रितों की अनुकम्पा भर्ती, दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों के आश्रितों को नौकरी और सिफारिश से सरकारी नौकरियों में बढ़े चले आ रहे लोगों के कारण सरकारी दफ्तरों का दृश्य विचित्र हो गया है। सरकारी दफ्तर इतनी कम क्षमता के लोगों से भर गये हैं जिनसे जनता समय पर काम होने की आशा नहीं कर सकती। सरकारी कार्यालयों में दिन पर दिन घूसखोरी और कामचोरी का बोलबाला बढ़ता चला जा रहा है।
भारत के नेता इस बात को अच्छी तरह समझ रहे हैं कि विभिन्न माध्यमों से भर्ती हो रहे कम प्रतिभा युक्त लोगों से सरकारी कार्यालायों का काम नहीं चलाया जा सकता। यही कारण है कि एक तरफ तो वे अपना वोट बैंक पक्का रखने के लिये कम प्रतिभा के लोगों को सरकारी नौकरियों में भरे जा रहे हैं और दूसरी ओर प्रतिभावान लोगों को सरकारी नौकरियों में बनाये रखने के लिये उनकी सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ा रहे हैं।
भारत सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों में सेवानिवृत्ति की आयु पहले किसी समय 55 साल थी जो बाद में बढ़कार 58 और फिर 60 कर दी गई। कुछ विभागों मंे तो यह 62 साल कर दी गई है और कुछ विभागों में सेवानिवृत्ति की आयु 62 या 65 साल करने के लिये कर्मचारी आंदोलन कर रह हैं।
बहुत से राजनेता सरकार में प्रतिभावान युवाओं को नौकरी पर लेने की बजाय सेवानिवृत्त होने वाले अपने चहेते कर्मचारियों एवं अधिकारियों को एक्सटेंशन देकर उन्हें कार्यालयों में बनाये रखने का प्रयास करते हैं। केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के विभिन्न कार्यालयों में 62 से 65 साल तक के बूढ़े लोग काम कर रहे हैं। कुछ लोगों को अनुबंध पर रखा गया है और कुछ लोगों को ठेकेदार के माध्यम से निश्चित वेतन पर नौकरियां दी गई हैं।
हैरानी होती है यह देखकर कि एक तरफ तो देश में बेरोजगारी का प्रतिशत बढ़ रहा है, मोटर साइकिलों पर बैठे बेरोजगार लड़के, सड़कों पर औरतों की चैनें छीन रहे हैं, और दूसरी ओर सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाई जा रही है। देश में नक्सलवालद बढ़ रहा है और सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने के लिये नित नये तरीके खोजे किये जा रहे हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा तो भारत में हालात तेजी से बिगड़ सकते हैं। देश का लगभग 33 प्रतिशत भूभाग नक्सलवाद की चपेट में जा चुका है। युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी और हताशा उन्हें नक्सलवाद जैसे हिंसक रास्तों पर धकेल देगी।
देश की आबादी 135 करोड़ पहुंच चुकी है। भारत सरकार के अधिकृत आंकड़े देश में 22 प्रतिशत लोगों के गरीब होना स्वीकार करते हैं किंतु कुछ गैर सरकारी संगठनों के दबाव में भारत सरकार के योजना आयोग ने स्वीकार किया है कि देश में 38 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। इसका अर्थ है कि देश के 10 करोड़ घरों में दोनों समय का चूल्हा नहीं जलता। करोड़ों नौजवानों को नौकरी नहीं है और सरकारें आरक्षण के नाम पर युवाओं को भ्रमित कर रही हैं।
ऐसे में क्या यह सही नहीं होगा कि सरकारी सेवाओं में कार्यरत लोगों की सेवानिवृत्ति की आयु पहले की तरह 55 साल की जाये! क्या यह प्राकृतिक न्याय नहीं होगा कि कम प्रतिभाओं वाले नौजवानों को सरकारी नौकरियों में भरने की प्रवृत्ति त्यागकर उन्हें प्रतिभावान बनाने की ओर ध्यान दिया जाये तथा पूरी तरह सक्षम बनाकर ही सरकारी नौकरियों में भर्ती किया जाये! अनुबंध पर कर्मचारी रखने की प्रवृत्ति बंद की जाये।
सरकारी नौकरियों में आये दिन वेतन बढ़ाने, हर दस साल में वेतन आयोग बैठाने और हर छः माह में महंगाई भत्ता बढ़ाने की बजाय, महंगाई पर अंकुश लगाने के प्रयास किये जायें। वस्तुओं की कीमतों को स्थिर रखा जाये। निजी क्षेत्र के नौजवानों को मिल रहे मोटे-मोटे पैकेजों को बंद करके देश की संस्कृति, परम्परा और आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप तर्क संगत वेतन दिये जायें। उसके लिये कानून बनें।
आज के वैज्ञानिक युग में तकनीक का जिस तरह तेजी से विकास हो रहा है उसमें अधिक आयु के कर्मचारी के लिये दक्षता प्रदर्शन की अधिक गुंजाइश नहीं बचती। आज का पढ़ा-लिखा नौजवान अधिक आयु के कर्मचारियों की अपेक्षा अधिक क्षमता, ऊर्जा और कौशल के साथ कार्य करने में सक्षम है। उसे बेरोजगार रखकर, या अल्प वेतन पर अनुबंधों पर रखकर अर्द्ध-बेरोजगार बनाने की बजाय उसे समय पर नौकरी दी जाये तो देश का अधिक भला होगा। देश में अपराध घटेंगे। प्रतिभावान युवाओं की ऊर्जावान टीम देश के लोगों की अधिक सेवा कर सकेगी।
अतः सरकारी सेवाओं में सेवानिवृत्ति की आयु फिर से 55 साल की जाये। सेवानिवृत्त लोगों को अनुबंध पर रखने की बजाय, रिक्त पदों पर युवाओं की भर्ती की जाये। जिन सेवानिवृत्त कर्मचारियों को फिर से अनुबंध पर रखा गया है, उन्हें तुरंत हटाया जाये। सोचिये वह समाज कैसा होगा जिसमें 60 से 65 साल की आयु के दादा और नाना तो नौकरी करें और 22-25 साल के नौजवान बेरोजगार घूमें।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता