स्वामी श्रद्धानंद का वास्तविक नाम महात्मा मुन्शीराम था। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले स्वामी श्रद्धानन्द कांग्रेस के लिए कार्य करते थे तथा देश भर में आर्य समाज के सिद्धांतों का प्रचार करते हुए लोगों को वेदों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते थे।
ई.1901 में मुंशीराम विज ने वैदिक धर्म तथा भारतीयता की शिक्षा देने के लिए हरिद्वार के कांगड़ी गांव में गुरुकुल विद्यालय की स्थापना की। वर्तमान में इस संस्था का नाम गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय है। महात्मा मुंशीराम विज ने गुरुकुल के छात्रों से 1500 रुपए एकत्रित कर गांधीजी को भिजवाए ताकि वे अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन चला सकें। कहा जाता है कि स्वामी श्रद्धानन्द ने ही सबसे पहले गांधीजी को महात्मा की उपाधि से विभूषित किया।
जब स्वामी श्रद्धानन्द ने कांग्रेस के कुछ प्रमुख नेताओं को मुस्लिम-तुष्टीकरण करते हुए देखा तो उन्हें लगा कि यह नीति आगे चलकर राष्ट्र के लिए विघटनकारी सिद्ध होगी। इस कारण कांग्रेस से उनका मोहभंग हो गया और उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। उस काल में बहुत से कट्टरपंथी मुस्लिम तथा ईसाई हिन्दुओं का मतान्तरण कराने में लगे हुए थे।
कुछ समय बाद स्वामीजी ने हिन्दू धर्म छोड़कर जा चुके लोगों को पुनः अपने मूल धर्म में लाने के लिये शुद्धि-आन्दोलन चलाया। असंख्य व्यक्तियों को आर्य समाज के माध्यम से पुनः हिन्दू धर्म में लाया गया। किया। स्वामी श्रद्धानन्द ने स्वयं के आर्यसमाजी होने पर भी सनातनी विचारधारा के पंडित मदनमोहन मालवीय तथा पुरी के शंकराचार्य स्वामी भारतीकृष्ण तीर्थ को गुरुकुल में आमंत्रित कर छात्रों के बीच उनका प्रवचन कराया।
23 दिसम्बर 1926 को नया बाजार स्थित उनके निवास स्थान पर अब्दुल रशीद नामक एक युवक ने धर्म-चर्चा के बहाने उनके कक्ष में प्रवेश करके गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। उनकी हत्या पर गांधी एवं नेहरू आदि किसी भी कांग्रेसी नेता ने दुःख व्यक्त नहीं किया।
आर्य समाज के अथक प्रयासों से भारत में कई स्थानों पर अनाथालयों, विधवा-आश्रमों तथा गौ-शालाओं आदि की स्थापना हुई। इस प्रकार धार्मिक, सामाजिक, शैक्षणिक और राजनैतिक क्षेत्र में आर्य समाज ने जो अद्भुत सफलता प्राप्त की उसकी तुलना किसी भी अन्य सुधार आन्दोलन से नहीं की जा सकती।
मुख्य लेख : उन्नीसवीं एवं बीसवीं सदी के समाज-सुधार आंदोलन
राजा राममोहन राय और उनका ब्रह्मसमाज
आत्माराम पाण्डुरंग और प्रार्थना समाज
स्वामी श्रद्धानंद का शुद्धि आंदोलन