लॉर्ड माउंटबेटन योजना को बदलने के लिए एक और चाल चली गई। बंगाल का मुख्यमंत्री सुहरावर्दी जो बंगाल में सीधी कार्यवाही का खलनायक था, गांधीजी के पास एक प्रस्ताव लेकर आया। उसकी योजना यह थी कि कांग्रेस मान जाए कि पूर्ण बंगाल को एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया जाए।
अर्थात् स्वतंत्र भारत की तरह न केवल स्वतंत्र पाकिस्तान की स्थापना की जाए अपितु स्वतंत्र बंगाल की भी स्थापना की जाए। गांधीजी इसके लिए तैयार हो गए।
इस दौर की राजनीति में गांधीजी न केवल कांग्रेस के सर्वमान्य नेता थे अपितु सम्पूर्ण हिन्दू समाज के भी नेता थे किंतु वे अपने मुस्लिम प्रेम के कारण जिस प्रकार के ऊट पंटाग निर्णय ले रहे थे, उन्हें देखकर हैरानी होती है। संभवतः गांधीजी को लग रहा था कि जैसे ही स्वतंत्र बंगाल की मांग सामने आएगी, भारत से पाकिस्तान के अलग होने की संभावना पर विराम लग जाएगा किंतु राजनीति को किंचिंत् भी समझने वाला नौसीखिया भी बता सकता है कि गांधीजी द्वारा स्वतंत्र बंगाल की मांग को समर्थन दिया जाना किसी भी तरह व्यावहारिक नहीं था।
यदि स्वतंत्र बंगाल की स्थापना हो जाती तो स्वतंत्र पंजाब की मांग को भी नैतिक समर्थन प्राप्त हो जाता। ऐसी स्थिति में देशी राज्यों के राजा भी अपने-अपने राज्यों को स्वतंत्र देश घोषित कर देते। इस प्रकार भारत खण्ड-खण्ड होकर बिखर जाता।
ऐसा नहीं था कि केवल गांधीजी जी सुहरावर्दी की चाल में फंसे, बाबू शरत्चन्द्र बोस और दूसरे बंगाली कांग्रेसी भी इस चाल में फंस गए और स्वतंत्र बंगाल की योजना बनने लगी किंतु हिन्दू महासभा के नेता श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने इस योजना के पीछे काम कर रहे षड़यंत्र का रहस्योद्घाटन कर दिया। डॉ. मुखर्जी का कहना था कि यह स्वतंत्र बंगाल की योजना पूरे बंगाल को पाकिस्तान में सम्मिलित करने का षड़्यंत्र है।
उन्होंने बताया कि- ‘पहले बंगाल को एक स्वतंत्र देश बनाया जाएगा और जब यह स्वतंत्र देश अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने में असफल होगा तो वहाँ के बहुसंख्यक मुसलमान इसे पूरा का पूरा पाकिस्तान के हाथों में दे देंगे।’
डॉ. मुखर्जी द्वारा मुस्लिम लीग के षड़यंत्र का रहस्योद्घाटन कर दिए जाने के बाद गांधीजी ने सुहरावर्दी के समक्ष शर्त रखी कि गांधीजी इस योजना को तभी आशीर्वाद देना स्वीकार करेंगे जब बंगाल विधान सभा के तीन चौथाई सदस्य बहुमत से इस योजना को पारित कर देंगे। इसके साथ ही गांधीजी यह शर्त भी लगाना चाहते थे कि भविष्य में कभी भी कोई भी निश्चय तब तक मान्य नहीं होगा, जब तक स्वतंत्र बंगाल की विधान सभा के तीन चौथाई हिन्दू सदस्य उस निर्णय के पक्ष में नहीं होंगे।
मुस्लिम लीग ने कहा कि स्वतंत्र बंगाल की विधान सभा के निर्णय तीन चौथाई मत से स्वीकार हुआ करेंगे किंतु गांधीजी की मांग का आशय यह नहीं था, वे तो हिन्दुओं के तीन-चौथाई बहुमत की बात कर रहे थे। कांग्रेसी नेताओं को मुस्लिम लीग के इस षड़यंत्र का भी पता चल गया कि बंगाल की मुस्लिम लीग सुहरावर्दी की सहायता से बंगाल विधान सभा के अछूत जाति के सदस्यों को मुस्लिम लीग की योजना के पक्ष में करने में लगी है। इस प्रकार मुस्लिम लीग की यह चाल भी असफल हुई।
सुहरावर्दी की इस योजना के पीछे एक खतरनाक मनोविज्ञान काम कर रहा था। वास्तव में पाकिस्तान का असम्भव-सपना सम्भव बनाने में सुहरावर्दी का सबसे अधिक योगदान था। उसने ही बंगाल में ‘लड़ कर लेंगे पाकिस्तान’ का आह्वान किया था। उसने ही कलकत्ता में ‘सीधी कार्यवाही दिवस‘ की योजना बनाई थी और अत्यंत क्रूरता-पूर्वक कार्यान्वित की थी। जिन्ना तो केवल जुबानी-नेतागिरी कर रहा था, धरती पर उसका कार्यान्वयन तो सुहरावर्दी और उसके जैसे लोग कर रहे थे किंतु अब जब पाकिस्तान बनने का समय आ गया तो सुहरावर्दी को अपने पैरों के तले धरती खिसकती हुई अनुभव हुई थी।
मुहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली, चौधरी मुहम्मद अली तथा अब्दुल रब निश्तर जैसे नेता जो अब तक दिल्ली में राजनीति करते रहे थे, वे पाकिस्तान बनने के बाद पश्चिमी-पाकिस्तान के कराची अथवा किसी अन्य नगर में बैठकर राजनीति करने वाले थे ।
पूर्वी बंगाल और उसके नेताओं की स्थिति द्वितीय श्रेणी के नेताओं जैसी होने जा रही थी। इसलिए उसने गांधीजी को दी गई योजना के माध्यम से भावी पूर्वी-पाकिस्तान की, भावी पश्चिमी-पाकिस्तान से मुक्ति का मार्ग ढूंढने का प्रयास किया था।
मोसले ने इस ओर संकेत करते हुए लिखा है- ‘सुहरावर्दी ने स्वतंत्र बंगाल की मांग कबूल करवाने की आखिरी कोशिश की क्योंकि उसे पता था कि पाकिस्तान में उसे वह जगह नहीं मिलने वाली थी, जो वह चाहता था। जिन्ना ने पूर्वी बंगाल के लिए नाजीमुद्दीन को चुन लिया था। सुहरावर्दी भारत में ही रहने की सोच रहा था।’
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता