आगरा का ताजमहल, शाहजहाँ द्वारा बनवाई गई सर्वाधिक शानदार इमारत है। यह शाहजहाँ की प्रिय बेगम अर्जुमंद बानो का मकबरा है जो अपनी 14वीं संतान को जन्म देते समय मृत्यु को प्राप्त हो गई थी। शाहजहाँ ने अर्जुमंद बानो को ‘मुमताज महल’ की उपाधि दी थी जिसका अर्थ होता है- ‘महल का सबसे सुंदर आभूषण।’
उन्नीस वर्ष की आयु में मुमताज का विवाह शाहजहाँ से हुआ था। इस विवाह के बाद वह उन्नीस साल और जीवित रही तथा इस अवधि में उसने चौदह बार गर्भ धारण किया। 17 जून 1631 को बुरहानपुर में शाहजहाँ की चौदहवीं संतान गौहरा बेगम को जन्म देते समय मुमताज महल की मृत्यु हो गई। शाहजहाँ ने गौहरा बेगम को अपने लिए अभिशप्त माना तथा उसका मुँह तक देखने से मना कर दिया।
शाहजहाँ ने मुमताज का शव बुरहानपुर के जैनाबाद बाग में दफ़्न करवाया। उसके शव को सुरक्षित रखने के लिए मिस्र देश में ममी बनाने की तीन प्रसिद्ध विधियों में से एक विधि का सहारा लिया गया ताकि शव में से कभी बदबू नहीं आ सके तथा उसका शव कयामत तक सुरक्षित रह सके।
मुमताज के शोक में डूबा हुआ शाहजहाँ, लगभग एक साल तक बुरहानपुर में ही रहा तथा इस दौरान वह अपने डेरे से एक बार भी बाहर नहीं निकला। ई.1631 में शाहजहाँ ने मुमताज महल की कब्र के लिए आगरा में एक मकबरा बनवाना आरम्भ किया जिसे उसने ताजमहल नाम दिया।
जब ताजमहल परिसर की चाहर-दीवारियां बन गईं तब दिसम्बर 1631 में मुमताज के शव को बुरहानपुर की कब्र से बाहर निकाला गया। इस शव को पूरे लाव-लश्कर के साथ शानदार शाही जुलूस के रूप में बुरहानपुर से आगरा तक लाया गया। 12 जनवरी 1632 को मुमताज का शव निर्माणाधीन ताजमहल के परिसर में दफना दिया गया। जब 8 साल बाद ई.1640 में ताजमहल बनकर पूरा हो गया, तब मुमताज महल के शव को एक बार फिर कब्र से बाहर निकाला गया तथा इस बार उसे ताजमहल के एक तहखाने में दफनाया गया।
ताजमहल के ऊपर की मंजिल में मुमताज महल की नकली कब्र बनाई गई ताकि यदि दुश्मन कभी ताजमहल को नष्ट करें तो मुमताज महल, अपने तहखाने और अपने ताबूत में सुरक्षित रहकर आराम से कयामत के दिन का इंतजार कर सके। शाहजहाँ की मृत्यु के बाद उसका शव भी इसी मकबरे में दफनाया गया। कहते हैं कि इस भवन के निर्माण में बहुत बड़ी मात्रा में महंगे रत्न लगाए गए जिनसे मुगल सल्तनत का कोष रीत गया। इस मकबरे को मुगल स्थापत्य का अंतिम पड़ाव माना जा सकता है।
यह श्वेत संगमरमर से निर्मित सुंदर भवन है जिसकी गणना विश्व के सुंदरतम भवनों में होती है।
चाहरदीवारी
सम्पूर्ण ताजमहल तीन ओर से एक चारदीवारी से घिरा हुआ है जो लाल बलुआ पत्थर से बनी है। नदी की ओर वाली भुजा पर कोई दीवार नहीं है। इन दीवारों के भीतर, बागों से लगे हुए, स्तंभ सहित तोरण वाले गलियारे हैं। यह हिंदू मन्दिरों की शैली है। दीवार में बीच-बीच में गुम्बद वाली गुमटियाँ भी हैं। परिसर के चारों कोनों पर चार चौड़े-चौड़े मेहराबदार मण्डप हैं। चाहरदीवारी के भीतर एक वर्गाकार बाग है जिसके उत्तरी सिरे पर ऊँची कुर्सी पर सफेद संगमरमरी मकबरा स्थित है जिसे ताजमहल कहते हैं।
ताज महल का मुख्य दरवाजा
तीन ओर की चाहर-दीवारी में से एक दीवार में मुख्य दरवाज़ा बना हुआ है जिसका निर्माण भव्य स्मारक की तरह किया गया है। यह संगमरमर एवं लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। इसका मेहराब ताजमहल के मेहराब की नकल है। इसके पिश्ताक एवं मेहराबों पर सुलेखन से अलंकरण किया गया है। इसमें ‘बास रिलीफ’ एवं पैट्रा ड्यूरा पच्चीकारी से पुष्प आदि आकृतियां बनाई गई हैं। मेहराबी छत एवं दीवारों पर यहाँ की अन्य इमारतों के समान ज्यामितीय अंकन किए गए हैं।
ईवान
मकबरे के मुख्य भवन के बाहर संगममर से निर्मित एक भव्य ‘ईवान’ अर्थात् ‘विशाल मेहराब रूपी द्वार’ है।
गुम्बद
मुख्य मकबरे के भवन के ऊपरी भाग में एक प्याजनुमा दोहरा गुम्बद (बल्बस डबल डोम) बना हुआ है। यह उच्च कोटि के सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इस इमारत का सर्वाधिक शानदार भाग है। इसकी ऊँचाई लगभग इमारत के आधार के बराबर अर्थात् 35 मीटर है और यह एक 7 मीटर ऊँचे बेलनाकार आधार पर स्थित है।
शिखर
गुम्बद का शिखर एक उलटे रखे हुए कमल से अलंकृत है। यह गुम्बद के किनारों को शिखर पर जोड़ता है।
शिखर कलश
मुख्य गुम्बद के शिखर पर एक कलश रखा हुआ है। यह शिखर-कलश सत्रहवीं एवं अठराहवीं सदी तक सोने का बना हुआ था। उन्नीसवीं सदी में स्वर्णकलश के स्थान पर कांसे का कलश रख दिया गया। यह शिखर-कलश हिन्दू वास्तुकला का अंग है तथा हिन्दू मन्दिरों के शिखरों पर अनिवार्यतः पाया जाता है। इस कलश पर द्वितीया का चंद्रमा बना हुआ है, जिसकी नोक स्वर्ग की ओर संकेत करती है। अपने नियोजन के कारण चन्द्रमा एवं कलश की नोक मिलकर एक त्रिशूल का आकार बनाते हैं जो कि भगवान शिव का प्रतीक है।
छतरियां
गुम्बद के चारों ओर लगी चार छोटी गुम्बदाकार छतरियों से गुम्बद को और भव्यता प्राप्त होती है। छतरियों के गुम्बद, मुख्य गुम्बद के आकार की प्रतिलिपियाँ ही हैं, केवल आकार का अंतर है। इनके स्तम्भाकार आधार, छत पर आंतरिक प्रकाश की व्यवस्था हेतु खुले हैं। संगमरमर के ऊँचे सुसज्जित गुलदस्ते, गुम्बद की ऊँचाई को और अधिक बल देते हैं।
मीनारें
मकबरे के चारों ओर चार मीनारें मूल आधार चौकी के चारों कोनों में, इमारत के दृश्य को एक चौखटे में बांधती हुई प्रतीत होती हैं। ये मीनारें 40-40 मीटर ऊँची हैं तथा बनावट में तिमंजिली हैं। मीनारों के कारण मकबरे का वास्तु-कलात्मक प्रभाव चारों ओर विस्तारित हो गया है। इन मीनारों को देखकर भ्रम होता है कि ये मस्जिद में अजान देने के लिए बनाई गई हैं। प्रत्येक मीनार दो-दो छज्जों द्वारा तीन समान भागों में बंटी है। मीनार के ऊपर अंतिम छज्जा है, जिस पर मुख्य इमारत के समान ही छतरी बनी हैं। इन पर वही कमलाकार आकृति एवं किरीट-कलश भी हैं। चारों मीनारें बाहर की ओर हलकी सी झुकी हुई हैं ताकि यदि कभी ये गिरें तो बाहर की ओर गिरें एवं मुख्य इमारत को कोई क्षति न पहुँचे।
मेहराब
ताजमहल की मेहराबों की बनावट में, पूर्ववर्ती भवनों की तुलना में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन दिखाई देता है। ताजमहल की लगभग समस्त मेहराबें पत्तियोंदार या नोंकदार हैं।
मुख्य कक्ष
मकबरे का मूल-आधार एक विशाल बहु-कक्षीय संरचना है। इसका मुख्य-कक्ष अष्टकोणीय एवं घनाकार बना हुआ है जिसकी प्रत्येक भुजा 55 मीटर है। यह रचना इमारत के प्रत्येक ओर पूर्णतः सममितीय है, जो कि इस इमारत को अष्टकोणीय बनाती है परन्तु कोने की चारों भुजाएं शेष चार भुजाओं से काफी छोटी होने के कारण, इसे वर्गाकार रचना कहना ही उचित होगा।
इस कक्ष के प्रत्येक फलक में एक प्रवेश-द्वार है। इनमें से केवल दक्षिण बाग की ओर का प्रवेशद्वार ही प्रयोग होता है। आंतरिक दीवारें लगभग 25 मीटर ऊँची हैं एवं एक आभासी आंतरिक गुम्बद से ढंकी हैं जिस पर सूर्य का चिह्न अंकित है। इस कक्ष में कुल आठ पिश्ताक बने हैं। बाहरी ओर प्रत्येक निचले पिश्ताक पर एक दूसरा पिश्ताक लगभग दीवार के मध्य तक जाता है।
मुख्य कक्ष के छज्जे एवं खिड़कियां
चार केन्द्रीय ऊपरी मेहराब छज्जा बनाते हैं एवं हरेक छज्जे की बाहरी खिड़की एक संगमरमर की जाली से ढंकी है। छज्जों की खिड़कियों के अलावा, छत पर बनीं छतरियों से ढंके खुले छिद्रों से भी प्रकाश आता है।
मुख्य कक्ष की सजावट
मुख्य कक्ष को बहुमूल्य पत्थरों एवं रत्नों की ‘लैपिडरी-आर्ट’ से सजाया गया है। साथ ही कक्ष की प्रत्येक दीवार ‘डैडो बास रिलीफ’ एवं ‘कैलिग्राफी’ से भी अलंकृत की गई है जो कि इमारत के बाहरी नमूनों को बारीकी से दिखाती है। आठ संगमरमर के फलकों से बनी जालियों का अष्टकोण, कब्रों को घेरे हुए है।
हरेक फलक की जाली पच्चीकारी के महीन कार्य से गठित है। शेष सतह पर बहुमूल्य पत्थरों एवं रत्नों की अति महीन जड़ाऊ पच्चीकारी की गई है, जो कि पुष्प, लता एवं फलों से सज्जित है। जैसे ही सतह का क्षेत्रफल बदलता है, बडे़ पिश्ताक का क्षेत्र छोटे से अधिक होता है और उसका अलंकरण भी इसी अनुपात में बदलता है। अलंकरण घटक रोगन या गचकारी से अथवा नक्काशी एवं रत्न जड़ कर निर्मित हैं।
मेहराब के दोनों ओर के स्पैन्ड्रल में अमूर्त प्रारूप प्रयुक्त किए गए हैं, विशेषकर आधार, मीनारें, द्वार, मस्जिद, और मकबरे की सतह पर। बलुआ-पत्थर की इमारत के गुम्बदों एवं तहखानों में पत्थर की नक्काशी से, विस्तृत ज्यामितीय नमूने बनाकर अमूर्त प्रारूप उकेरे गए हैं।
यहाँ ‘हैरिंगबोन’ शैली में पत्थर जड़ कर संयुक्त हुए घटकों के बीच का स्थान भरा गया है। लाल बलुआ-पत्थर इमारत में श्वेत, एवं श्वेत संगमरमर में काले या गहरे, जडा़ऊ कार्य किए हुए हैं। संगमरमर इमारत के गारे-चूने से बने भागों को रंगीन या गहरा रंग किया गया है।
इनकी डिजाइनों में अत्यधिक जटिल ज्यामितीय प्रतिरूप बनाए गए हैं। फर्श एवं गलियारे में विरोधी रंग की टाइलों या गुटकों को ‘टैसेलेशन’ नमूने में प्रयोग किया गया है। मकबरे की निचली दीवारों पर पादप रूपांकन मिलते हैं। ये श्वेत संगमरमर के नमूने हैं जिनमें सजीव ‘बास रिलीफ’ शैली में पुष्पों एवं बेल-बूटों का सजीव अलंकरण किया गया है।
संगमरमर को खूब चिकना करके और चमकाकर महीनतम ब्यौरे को भी निखारा गया है। ‘डैडो’ साँचे एवं मेहराबों के ‘स्पैन्ड्रल’ पर भी पीट्रा ड्यूरा के उच्चस्तरीय रूपांकन हैं। इन्हें ज्यामितीय बेलों, पुष्पों एवं फलों से सुसज्जित किया गया है। इनमें पीले एवं काले संगमरमर, जैस्पर तथा हरे पत्थर जडे़ गए हैं जिन्हें दीवार की सतह से मिलाने के लिए घिसाई की गई है।
ताजमहल की अत्यन्त सुन्दर खुदाई और जड़ाई भारतीय शिल्पकारों की स्थापत्य दक्षता का प्रमाण है। इस काल में पत्थर के शिल्पकार के छैनी-हथौड़े का स्थान, संगमरमर में पैट्रा ड्यूरा करने वाले कारीगरों एवं संगमरमर पर पॉलिश’ करने वाल कारीगरों के बारीक औजारों ने ले लिया था।
शाहजहाँ एवं मुमताज की कब्रें
मुख्य भवन में शाहजहाँ एवं मुमताज महल की नकली कब्रें स्थित हैं जो धरती से 22 फुट ऊँचाई पर बनाई गई हैं। बादशाह एवं बेगम की असली कब्रें इस कक्ष के ठीक नीचे बनी हुई हैं तथा वे पर्यटकों को दिखाई नहीं जातीं। शाहजहाँ एवं मुमताज महल की असली कब्रें तुलनात्मक रूप से साधारण हैं। इनके मुख मक्का की ओर हैं।
मुमताज महल की कब्र आंतरिक कक्ष के मध्य में स्थित है, जिसका आयताकार संगमरमर आधार 1.5 मीटर चैड़ा एवं 2.5 मीटर लम्बा है। आधार एवं ऊपर का शृंगारदान रूप, दोनों ही बहुमूल्य पत्थरों एवं रत्नों से जड़े हैं। इस पर मुमताज की प्रशंसा में सुलेख लिखा गया है। इसके ढक्कन पर एक उठा हुआ आयताकार लोज़ैन्ज है, जो कि एक लेखन पट्ट का आभास देता है।
शाहजहाँ की कब्र मुमताज की कब्र के दक्षिण ओर है। यह पूरे क्षेत्र में, एकमात्र दृश्य असम्मितीय घटक है। यह असम्मिती शायद इसलिये है, कि शाहजहाँ की कब्र यहाँ बननी निर्धारित नहीं थी। यह मकबरा केवल मुमताज के लिये बना था। यह कब्र मुमताज की कब्र से बड़ी है, परंतु वही घटक एक वृहत्तर आधार दर्शाती है, जिस पर बना कुछ बड़ा शृंगारदान, लैपिडरी एवं सुलेखन से सुसज्जित है।
ताजमहल में सुलेखन (कैलिग्राफी)
ताजमहल की दीवारों पर किए गए अलंकरण में सुलेखन, निराकार आकृतियां, ज्यामितीय आकृतियां तथा पादप रूपांकन प्रयुक्त किए गए हैं। ताजमहल में किया गया सुलेखन फ्लोरिड थुलुठ लिपि का है। ये सुलेख फारसी लिपिक अमानत खाँ द्वारा लिखे गए हैं। सुलेखन के लिए जैस्पर को श्वेत संगमरमर के फलकों में जड़ा गया है।
संगमरमर के सेनोटैफ पर किया गया कार्य अत्यंत नाजु़क, कोमल एवं महीन है। ऊँचाई का ध्यान रखा गया है। ऊँचे फलकों पर उसी अनुपात में बडा़ लेखन किया गया है ताकि नीचे से पढ़ने पर टेढा़पन ना प्रतीत हो। पूरे क्षेत्र में कु़रान की आयतें लिखी गई हैं। इन आयतों का चुनाव अमानत खाँ ने किया था।
ताजमहल के प्रवेश द्वार पर यह सुलेख अंकित किया गया है- ‘हे आत्मा! तू ईश्वर के पास विश्राम कर। ईश्वर के पास शांति के साथ रह तथा उसकी परम शांति तुझ पर बरसे।’
तहखाने में बनी मुमताज महल की असली कब्र पर अल्लाह के निन्यानवे नाम खुदे हैं जिनमें से कुछ हैं- ‘ओ नीतिवान, ओ भव्य, ओ राजसी, ओ अनुपम, ओ अपूर्व, ओ अनन्त, ओ तेजस्वी… आदि।’ शाहजहाँ की कब्र पर खुदा है- ‘उसने हिजरी के 1076 साल में रज्जब के महीने की छब्बीसवीं तिथि को इस संसार से नित्यता के प्रांगण की यात्रा की।’
लाल बलुआ पत्थर की मस्जिद
ताजमहल भवन के दोनों ओर लाल बलुआ पत्थर की दो इमारतें बनी हुई हैं। ये इमारतें मुख्य मकबरे की ओर मुंह किए हुए हैं। सफेद संगमरमर के मकबरे के विपरीत प्रभाव को दर्शाने के लिए इन इमारतों में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है। इनकी पीठ क्रमशः पूर्वी एवं पश्चिमी दीवारों से जुड़ी हुई हैं एवं दोनों इमातरें एक दूसरे की प्रतिबिम्ब जान पड़ती हैं।
पश्चिमी इमारत एक मस्जिद है एवं पूर्वी इमारत को ‘जवाब’ कहते हैं जिसका प्राथमिक उद्देश्य सम्पूर्ण दृश्य में वास्तु-संतुलन स्थापित करना है। यह आगन्तुक कक्ष की तरह प्रयुक्त होती थी। मस्जिद में एक मेहराब कम है तथा उसमें मक्का की ओर आला बना है। ‘जवाब’ के फर्श में ज्यामितीय नमूने बने हैं जबकि ‘मस्जिद’ के फर्श में नमाज़ पढ़ने हेतु 569 बिछौनों (जा-नमाज़) के काले संगमरमर के प्रतिरूप बने हैं। मस्जिद का मूल रूप दिल्ली की जामा मस्जिद के समान है। एक बड़े दालान या कक्ष पर तीन गुम्बद बने हैं।
चारबाग
ताजमहल के चारों ओर 300 वर्ग मीटर का चारबाग बना हुआ है। इस बाग में ऊँचा उठा हुआ पथ है जो इस चार बाग को 16 निम्न स्तर पर बनी क्यारियों में बांटता है। बाग के मध्य में एक उच्चतल पर बने तालाब में ताजमहल का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। यह मकबरे एवं मुख्य द्वार के बीच में बना हुआ है। बाग में वृक्षों की कतारें लगी हुई हैं एवं मुख्य द्वार से लेकर मकबरे तक फव्वारे लगाए गए हैं। इस उच्च तल के तालाब को ‘अल हौद अल कवथार’ कहते हैं, जो कि मुहम्मद द्वारा प्रत्याशित अपारता के तालाब को दर्शाता है।
चारबाग के बगीचे फारसी बागों से प्रेरित हैं। यह जन्नत की चार नदियों एवं पैराडाइज़ या फिरदौस के बागों की ओर संकेत करते हैं। यह शब्द फारसी शब्द पारिदाइजा़ से बना शब्द है, जिसका अर्थ है- ‘दीवारों से रक्षित बाग’। फारसी रहस्यवाद में मुगल कालीन इस्लामी पाठ्य में फिरदौस को एक आदर्श बाग बताया गया है। इसमें कि एक केन्द्रीय पर्वत या स्रोत या फव्वारे से चार नदियाँ चारों दिशाओं, उत्तर, दक्षिण, पूर्व एवं पश्चिम की ओर बहतीं हैं, जो बाग को चार भागों में बांटतीं हैं।
चारबाग शैली के मुगल उद्यानों के केन्द्र में मुख्य भवन स्थित होता है किंतु ताजमहल इस उद्यान के अंत में स्थित है।यमुना नदी के दूसरी ओर स्थित माहताब बाग या चांदनी बाग की खोज से, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने यह निष्कर्ष निकाला है, कि यमुना नदी भी इस बाग के प्रारूप का हिस्सा थी और उसे भी स्वर्ग की नदियों में से एक गिना जाना चाहिए था।
बाग के प्रारूप एवं उसके वास्तु-लक्षण जैसे कि फव्वारे, ईंटें, संगमरमर के पैदल पथ एवं काश्मीर के शालीमार बाग की तरह बनी ज्यामितीय ईंट-जड़ित क्यारियों से अनुमान होता है कि शालीमार बाग तथा ताजमहल के बाग का वास्तुकार संभवतः एक ही था अर्थात् अली मर्दान ने इन दोनों बागों की योजना बनाई थी।
बाग के आरम्भिक विवरणों में इसके पेड़-पौधों में, गुलाब, कुमुद या नरगिस एवं फलों-वृक्षों की अधिकता का उल्लेख है। ई.1908 में लॉर्ड कर्जन ने चारबाग को इंगलैण्ड की गार्डन शैली में ढाल दिया। वर्तमान में इस बाग का ईसाई स्वरूप दिखाई देता है तथापि मूल स्वरूप वही होने से यह आज भी चारबाग की तरह दिखाई देता है।
शाहजहाँ की अन्य बेगमों के मकबरे
ताजमहल की चाहरदीवारी के बाहर शाहजहाँ की अन्य बेगमों के मकबरे स्थित हैं। इनमें एक बडा़ मकबरा मुमताज महल की प्रिय दासी का भी है। इन मकबरों की अधिकतर इमारतें लाल बलुआ पत्थर से निर्मित हैं एवं उस काल के छोटे मकबरों की स्थापत्य कला को दर्शातीं हैं।
ताजमहल के वास्तविक शिल्पी
ताजमहल के शिल्पियों के सम्बन्ध में भारत में एक किंवदंती प्रचलित है कि शाहजहाँ ने ताजमहल बनाने वालों के हाथ कटवा दिए थे ताकि वे फिर कभी एसी सुंदर इमारत का निर्माण नहीं कर सकें। यह किंवदंती असत्य जान पड़ती है क्योंकि ताजमहल मूलतः मुस्लिम इमारत नहीं होकर हिन्दू भवन है जिसे शाहजहाँ ने आम्बेर के कच्छवाहा राजाओं से प्राप्त किया था। शाहजहाँ के काल में तो इसका केवल बाह्य अलंकरण किया गया है और उसके चारों ओर मीनारें, गुम्बद, ईवान एवं पिश्ताक आदि बनाकर इसे मुगलिया रूप दिया गया है।
भारत एवं पाकिस्तान में मुगलकालीन बहुत सी इमारतों में ताजमहल की झलक दिखाई देती है जिनसे ऐसा लगता है कि मुगल शिल्पकारों ने ताजहल का अनुकरण करने का भरपूर प्रयास किया किंतु वे ऐसी कृति नहीं बना पाए। अतः कहा जा सकता है कि ताजमहल के मूल निर्माता मुगल कालीन नहीं थे, वे मुगलों के पूर्ववर्ती थे। इस सम्बन्ध में संक्षिप्त चर्चा हम अगले अध्याय में करेंगे।
बैंगलोर के सैयद महमूद के पास उपलब्ध ग्रंथ दीवान-ए महन्दीस से पता चलता है कि ताजमहल का वास्तुकार उस्ताद अहदम लाहौरी था जिसे शाहजहाँ ने नादिर-उल-अस्र की उपाधि दी थी। ताजमहल का प्रधान मिस्त्री फारस का उस्ताद ईसा एफेंदी था। मोहम्मद हनीफ, अमनत खाँ, शीराजी, मोहम्मद शरीफ, मोहनलाल तथा मोहम्मद काजिम आदि शिल्पकारों ने भी इसके निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दीवान-ए महन्दीस का लेखक लुत्फुल्ला महन्दीस शाहजहाँ का समकालीन लेखक था।
फादर मानरिक ने लिखा है- ‘इस मकबरे की योजना गेरोनिमो वेरेनियो नामक वेनीशियन वास्तुकार ने बनाई थी।’ स्मिथ ने भी इस मत का समर्थन किया है और इसे पूरी तरह से यूरोपीय कृति बताया है।
सर जॉन मार्शल, हेवेल और पर्सी ब्राउन इस मत को नहीं मानते। पर्सी ब्राउन ने लिखा है- ‘यह मुगल-भवन-कला का विकसित रूप है जो परम्परा के अनुसार है तथा बाह्य प्रभावों से पूर्णरूपेण मुक्त है।’
पर्सी ब्राउन के अनुसार इसका निर्माण तो प्रायः मुसलमान कलाकारों द्वारा हुआ था परन्तु इसकी चित्रकारी हिन्दू कलाकारों द्वारा हुई थी। पच्चीकारी का कठिन काम कन्नौज के हिन्दू कलाकारों को सौंपा गया था। अनेक विद्वानों के अनुसार ताजमहल का मुख्य शिल्पकार एक तुर्क या ईरानी उस्ताद ईशा था जिसे बड़ी संख्या में हिन्दू कारीगरों का सहयोग प्राप्त था। ताजमहल की सजावट की प्रेरणा एतमादुद्दौला के मकबरे से ली गई प्रतीत होती है।
ताजमहल के निर्माण का विवरण बताने वाली एक पाण्डुलिपि के अनुसार, शाहजहाँ ने इसके निर्माण से संबंधित सलाह लेने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त की थी। बहुत से वास्तुकारों ने इसके भावी नमूने कागज पर उत्कीर्ण कर बादशाह के समक्ष प्रस्तुत किए। इस मकबरे के सम्बन्ध में शाहजहाँ की भी कुछ मौलिक कल्पनाएं थीं। अतः उसने कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए और इन तमाम सुझावों के आधार पर लकड़ी के कई नमूने तैयार किए गए तथा उनमें से एक नमूना स्वीकार किया गया। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि इसका डिजाइन कई वास्तुविदों ने मिलकर तैयार किया था।
मुगल स्थापत्य की सर्वश्रेष्ठ इमारत
आगरा का ताजमहल न केवल शाजहाँ काल की इमारतों में ही सर्वश्रेष्ठ है अपितु मुगल स्थापत्य कला का भी सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। इसे विश्व के सात आश्चर्यों में भी गिना जाता है। ताजमहल की प्रशंसा करते हुए एल्फिन्स्टन ने लिखा है- ‘सामग्री की सम्पन्नता, चित्र के वैचि×य तथा प्रभाव में इसकी समता करने वाला यूरोप अथवा एशिया में दूसरा मकबरा नहीं है।’
प्रसिद्ध इतिहासकार हेवेल ने लिखा है- ‘यह भारतीय स्त्री जाति का देवतुल्य स्मारक है। सुन्दर बाग और अनेक फव्वारों के मध्य स्थित ताजमहल एक काव्यमय रोमाण्टिक सौन्दर्य का सृजन करता है। वस्तुतः ताजमहल दाम्पत्य प्रेम का प्रतीक और कला-पे्रमियों का मक्का बन गया है।’
डॉ. बनारसी ने लिखा है- ‘चाहे ऐतिहासिक साहित्य का पूर्ण पु´ज नष्ट हो जाये और केवल यह भवन ही शाहजहाँ के शासनकाल की कहानी कहने को बाकी रह जाये तो इसमें संदेह नहीं, तब भी शाहजहाँ का शासनकाल सबसे अधिक शानदार कहा जायेगा।’
निर्माण के बाद ताजमहल का इतिहास
ई.1857 की सैनिक क्रांति के दौरान, ताजमहल को अंग्रेजों ने लूट लिया। उन्होंने इमारत के भीतर लगे बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न तथा लैपिज़ लजू़ली को खोद कर निकाल लिया। इससे ताजमहल बहुत खराब स्थिति में पहुंच गया। 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश वॉयसरॉय लॉर्ड कर्ज़न ने एक वृहत प्रत्यावर्तन परियोजना आरंभ की जिसके अंतर्गत ताजमहल का जीर्णोद्धार किया गया और इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया।
यह परियोजना ई.1908 में पूरी हुई। लॉर्ड कर्जन ने मकबरे के मुख्य आंतरिक कक्ष में एक बड़ा दीपक स्थापित करवाया जो काहिरा में स्थित एक मस्जिद जैसा है। इसी समय यहाँ के बागों को ब्रिटिश शैली में बदला गया। आज वे बाग उसी स्थिति में हैं।
ताजमहल पर सुरक्षा कवच
ई.1942 में सरकार ने मकबरे पर एक मचान सहित पैड बनाकर बल्लियों का सुरक्षा कवच तैयार कराया ताकि इसे जर्मन एवं जापानी हवाई हमलों से बचाया जा सके। ई.1965 एवं 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय भी ताजमहल के ऊपर सुरक्षा-कवच बनाया गया।
ताजमहल की प्रतिकृतियाँ
भारत के बहुत से भवनों में ताजमहल की झलक दिखाई देती है। इनमें दिल्ली स्थित हुमायूँ का मकबरा तथा औरंगाबाद स्थित बीबी का मकबरा प्रमुख हैं। चीन के शेनज़ेन शहर के पश्चिमी भाग में स्थित विंडो ऑफ द वल्र्ड थीम पार्क में ताजमहल की प्रतिकृति बनी हुई है।
ताजमहल से प्रेरित होकर बनी विश्व की अन्य इमारतों में अटलांटिक सिटी, न्यू जर्सी स्थित ट्रम्प ताजमहल और मिल्वाउकी, विस्कज़िन स्थित ट्रिपोली श्राइन टेम्पल शामिल हैं। बांग्लादेश में भी ताजमहल की अनुकृति बनाने का प्रयास किया गया। ब्रिटिश काल में अंग्रेज़ों ने अपनी तत्कालीन राजधानी कलकत्ता में इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया के सम्मान में विक्टोरिया मेमोरियल स्मारक बनवाया जो ताजमहल से काफ़ी हद तक प्रेरित है यह किन्तु ‘गोथिक’ स्थापत्यकला में ढाला गया है।
विश्व धरोहर
ई.1983 में इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर सूचि में सम्मिलित किया गया।
मेहताब बाग
आगरा स्थित मेहताब बाग, ताजमहल की सीध में, यमुना के दूसरे किनारे पर स्थित है। मेहताब बाग फूलों और अलग-अलग प्रकार के पेड़-पौधों से सम्पन्न है। यह 980 फुट गुणा 980 फुट क्षेत्र का वर्गाकार उद्यान है। इस बाग की खुदाई में एक अष्टकोणीय विशाल जलाशय प्राप्त हुआ है जिस पर कई फव्वारे लगे हुए थे। यह भी चारबाग शैली का उद्यान था जिसमें केन्द्रीय जलापूर्ति तंत्र से बाग की चार दिशाओं में चार नहरों द्वारा जल ले जाया जाता था जो कि कुरान में वर्णित जन्नत में बहने वाली चार नदियों की प्रतीक हैं।
यहाँ एक और ताजमहल बनाने की योजना थी जिसमें शाहजहाँ की कब्र लगनी थी किंतु औरंगज़ेब के विद्रोह के कारण वह योजना पूरी नहीं हो सकी। इस परिसर की खुदाई में बड़ी संख्या में अलंकृत पत्थर मिले हैं जो किसी भवन के कंगूरों की तरह दिखाई देते हैं। ये कंगूरे सफेद संगमरमर से निर्मित हैं।
इसी प्रकार परिसर से बड़ी मात्रा में सफेद संगमरमर पत्थर के ब्लाॅक मिले हैं। इस सामग्री से यह अनुमान होता है कि इस नए मकबरे के लिए सामग्री जुटाई जानी आरम्भ हो गई थी किंतु इससे पहले कि यह योजना आगे बढ़ पाती, औरंगजेब ने शाहजहाँ को बंदी बना लिया और यह योजना अधूरी रह गई।
संगमरमर के ये पत्थर कई सौ साल तक मिट्टी में पड़े रहने के कारण काले पड़ गए हैं जिससे यह किंवदंती चल पड़ी कि शाहजहाँ इस स्थान पर काला ताजमहल बनाना चाहता था। वास्तव में इसे भी सफेद इमारत ही होना था।