लाल किले की दर्द भरी दास्तान में मुगल बादशाह शाहजहाँ से लेकर बहादुरशाह जफर के काल में हुई रोचक ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन किया गया है।
भारत में दो लाल किले हैं। पहला लाल किला आगरा में है जिसका निर्माण मुसलमानों के भारत में आने से पहले तोमर राजपूतों ने लाल कोट के नाम से करवाया था।
लोदी सुल्तानों- सिकंदर लोदी तथा इब्राहीम लोदी एवं मुगल बादशाहों- बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ तथा औरंगज़ेब ने इस किले में थोड़े-बहुत समय के लिए निवास किया। सिकंदर लोदी, अकबर एवं शाहजहाँ ने इस किले का जीर्णोद्धार करवाया।
लोदियों एवं मुगलों के शासन काल में आगरा के लाल किले में शाही खजाना, बहुमूल्य रत्न, स्वर्ण एवं अन्य कीमती सम्पत्ति रहती थी। इस दुर्ग में मुगलों की टकसाल भी थी जिसमें सोने-चांदी के सिक्के ढाले जाते थे। इस किले में एक जेल भी थी जिसमें शाही परिवार के बंदियों को रखा जाता था।
दूसरा लाल किला दिल्ली में है जिसे ई.1638 से 1648 की अवधि में शाहजहाँ ने बनवाया। बहुत से लोग मानते हैं कि दिल्ली के लाल किले का निर्माण भी तोमरों ने करवाया था किंतु यह सही नहीं है।
राजा अनंगपाल अथवा उसके पूर्वजों ने दिल्ली में जिस लाल कोट नामक दुर्ग का निर्माण करवाया था, वह शाहजहाँ के लाल किले से 23 किलोमीटर दूर महरौली में स्थित था, जहाँ आज भी उसके खण्डहर बिखरे पड़े हैं। कुतुबमीनार का निर्माण उसी के ध्वंसावशेषों से करवाया गया।
लाल किले की दर्द भरी दास्तान अब पुस्तक रूप में उपलब्ध-
शाहजहाँ के दुर्भाग्य से शाहजहाँ के पुत्र औरंगजेब ने शाहजहाँ को आगरा के लाल किले में बंदी बनाकर रखा और दिल्ली का लाल किला औरंगजेब की राजधानी बना।
इस पुस्तक का लेखन यूट्यूब चैनल ‘ग्लिम्प्स ऑफ इण्डियन हिस्ट्री बाई डॉ. मोहनलाल गुप्ता’ के लिए लाल किले की दर्द भरी दास्तान नामक धारावाहिक के रूप में किया गया जिसमें शाहजहाँ द्वारा दिल्ली में लाल किला बनवाए जाने से लेकर भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति तक के इतिहास का वह भाग दिया गया है जो दिल्ली एवं आगरा के लाल किलों की छत्रछाया में घटित हुआ। इस काल में ये दोनों लाल किले भारत की सत्ता के प्रतीक बन गए थे।
इस धारवाहिक में प्रयुक्त ‘लाल किला’ किसी एक या दो भवनों का नाम नहीं है, अपितु मुगलिया सत्ता के अहंकार का प्रतीक है। मनुष्य को जब सत्ता मिलती है तब वह किसी तरह मदमत्त होकर दूसरे मनुष्यों को कीट-पतंग समझने लगता है और जब मनुष्य से सत्ता विदा ले लेती है, तब मनुष्य किस तरह कातर, विनम्र और परमुखापेक्षी हो जाता है, लाल किले की दर्द भरी दास्तां से अधिक यह बात और कौन समझ सकता है!
इस धारावाहिक को अपार लोकप्रियता मिली। देश-विदेश में रहने वाले लाखों दर्शकों ने इस धारावाहिक की कड़ियों को देखा तथा सराहा। इस धारावाहिक की लोकप्रियता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता था कि इसका प्रसारण वर्ष 2019-20 में प्रतिदिन प्रातः आठ बजे किया जाता था किंतु देश-विदेश में रहने वाले हजारों दर्शक प्रातः आठ बजने से पहले ही यूट्यूब चैनल चलाकर बैठ जाते थे। बहुत से दर्शक अपने पूरे परिवार के साथ इस धारवाहिक को देखते थे और अपने बच्चों के साथ, इस धारावाहिक में आए ऐतिहासिक तथ्यों पर चर्चा किया करते थे। इस धारावाहिक की कड़ियां आज भी यूट्यूब चैनल ‘ग्लिम्प्स ऑफ इण्डियन हिस्ट्री बाई डॉ. मोहनलाल गुप्ता’ पर उपलब्ध हैं।
मुझे प्रसन्नता है कि भारत के इतिहास की वे छोटी-छोटी हजारों बातें जो आधुनिक भारत के कतिपय षड़यंत्रकारी इतिहासकारों द्वारा इतिहास की पुस्तकों का हिस्सा बनने से रोक दी गईं किंतु तत्कालीन दस्तावेजों, पुस्तकों, मुगल शहजादों एवं शहजादियों की डायरियों आदि में उपलब्ध हैं, इस धारवाहिक के माध्यम से लाखों दर्शकों तक पहुंचीं। बहुत से दर्शकों की मांग थी कि इस धारवाहिक की कड़ियों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाया जाए।
उन दर्शकों की भावनाओं का सम्मान करते हुए, मैं इस धारावाहिक की कड़ियों को पुस्तक के रूप में आप सबके हाथों में सौंप रहा हूँ।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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