Saturday, December 7, 2024
spot_img

12. धरती एवं स्वर्ग को दैत्यों से मुक्त कराने के लिए भगवान ने वामन अवतार लिया!

इस धारावाहिक की पिछली कड़ियों में हमने भगवान श्री हरि विष्णु के चार अवतारों- मत्स्यावतार, कूर्मावतार, वाराह अवतार एवं नृसिंह अवतार की चर्चा की है। ये सभी अवतार मनुष्येतर रूप में अर्थात् जलचर, उभयचर एवं थलचर जीवों के रूप में थे जबकि इस कड़ी में हम भगवान श्री हरि के जिस अवतार की चर्चा करने जा रहे हैं, वह पूर्णतः मानव रूप का अवतार है किंतु यह अवतार भी मनुष्य के सामान्य आकार में न होकर वामन रूप में हुआ। यह अवतार मानव प्रजाति के उस क्रमिक विकास की ओर संकेत करता है कि धरती के प्रारम्भिक मनुष्य छोटे कद के थे।

हिन्दू ग्रंथों के अनुसार वामन भगवान श्री हरि विष्णु के पाँचवे तथा त्रेता युग के पहले अवतार थे। दक्षिण भारत में वामन को उपेन्द्र कहा जाता है। वामन ऋषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे। अदिति के पुत्र आदित्य कहलाते हैं। इन्द्र, सूर्य तथा समस्त देवता अदिति के ही पुत्र हैं। वामन बारहवें आदित्य माने जाते हैं। कहीं-कहीं ऐसी भी मान्यता मिलती है कि वामन, हनुमान के छोटे भाई थे।

कहीं-कहीं पर वामन को तीन पैरों वाला दर्शाया गया है। भगवान के इस रूप को त्रिविक्रम भी कहा जाता है। इस रूप में भगवान का एक पैर धरती पर, दूसरा आकाश अर्थात् देवलोक पर तथा तीसरा दैत्यराज बलि के सिर पर दर्शाया जाता है।

भागवत कथा के अनुसार दैत्यराज बली भक्तराज प्रह्लाद का पौत्र तथा दैत्यराज विरोचन का पुत्र था। दैत्यराज बली अत्यंत बलशाली था। उसने देवताओं को देवलोक से निकाल कर देवलोक में अपना निवास बना लिया था। कुछ ग्रंथों में यह भी मान्यता है कि दैत्यराज बली ने अपनी तपस्या से त्रिलोकी पर आधिपत्य प्राप्त किया था।

जब देवताओं से स्वर्ग छिन गया तब उनकी माता अदिति ने बारह वर्ष तक घनघोर तपस्या करके भगवान श्रीहरि विष्णु को प्रसन्न किया। भगवान श्रीहरि विष्णु ने ऋषि-पत्नी अदिति के समक्ष प्रकट होकर कहा- ‘हे देवी! तुम्हारे पुत्रों अर्थात् देवताओं के उद्धार के लिए मैं स्वयं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा।’

श्रवण मास की द्वादशी को अभिजीत नक्षत्र में भगवान श्रीहरि विष्णु ने अदिति के गर्भ से वामन के रूप में अवतार लिया। उनके ब्रह्मचारी रूप को देखकर सभी देवता और ऋषि-मुनि आनंदित हो उठे। महर्षि कश्यप ने ऋषियों के साथ मिलकर उनका उपनयन संस्कार किया। महर्षि पुलह ने बटुक रूपी वामन को यज्ञोपवीत दिया। महर्षि अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश दण्ड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊं, गुरु बृहस्पति ने जनेऊ तथा कमण्डल, माता अदिति ने कोपीन, देवी सरस्वती ने रुद्राक्ष माला तथा यक्षराज कुबेर ने बटुक रूपी भगवान वामन को भिक्षा-पात्र प्रदान किया। जब राजा बली ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया तो वामन रूपधारी विष्णु भी वहाँ पहुंच गए। वामन के तेज से यज्ञशाला प्रकाशित हो उठी। दैत्यराज बली ने वामन भगवान को एक उत्तम आसन पर बिठाकर उनका सत्कार किया और उनसे दक्षिणा मांगने के लिए आग्रह किया।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

तभी दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने वामन रूपधारी श्रीहरि विष्णु को पहचान लिया और उसने दैत्यराज को सावधान किया- ‘ये स्वयं भगवान विष्णु हैं, इनके छल में मत आओ।’

बली ने यह कहकर गुरु की अवहेलना की- ‘मैं याचक को खाली हाथ नहीं भेज सकता!’

इस पर वामन रूपी भगवान ने बली से कहा- ‘मुझे स्वयं के रहने के लिए तीन पग भूमि चाहिए।’

इस पर दैत्यराज बली को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने वामन से अनुरोध किया- ‘आप अपने लिए कुछ और बड़ी वस्तु मांगें!’

दैत्यराज के बार-बार अनुरोध करने पर भी वामन भगवान अपनी बात पर अडिग रहे तथा उससे अपने लिए तीन पग भूमि मांगते रहे। इस पर बली ने वामन का अनुरोध स्वीकार कर लिया।

जब दैत्यराज ने भूमिदान हेतु संकल्पबद्ध होने के लिए अपने कमण्डल से जल लेना चाहा तो देवगुरु शुक्राचार्य अपने शिष्य बली को संकट से बचाने के लिए लघु रूप धारण करके कमण्डल की टोंटी में बैठ गए और कमण्डल में से जल निकलने से रोक दिया। इस पर बली ने एक तिनका कमण्डल की टोंटी में घुसाया। यह तिनका दैत्यगुरु शुक्राचार्य की आंख में जाकर घुस गया जिससे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

दैत्यराज बली ने हाथ में जल लेकर वामन को तीन पग भूमि देने का संकल्प लिया। संकल्प पूरा होते ही वामन का आकार बढ़ने लगा और वे वामन से विराट हो गए। उन्होंने एक पग से पृथ्वी नाप ली, दूसरे पग से स्वर्ग नाप लिया तथा दैत्यराज से पूछा- ‘तीसरा पग कहाँ रखूं?’

इस पर बली ने अपना मस्तक आगे कर दिया और बोला- ‘प्रभु, सम्पत्ति का स्वामी सम्पत्ति से बड़ा होता है। तीसरा पग मेरे मस्तक पर रख दें।’ इस पर भगवान ने तीसरा पग उसके सिर पर रखकर उसे भी नाप लिया।

इस प्रकार भगवान श्रीहरि विष्णु ने दैत्यराज बली से स्वर्ग और धरती का राज्य छीन लिया। भगवान ने स्वर्ग अदिति के पुत्रों अर्थात् देवताओं को लौटा दिया तथा इन्द्र को फिर से स्वर्ग का अधिपति बना दिया। इसके बाद भगवान ने दैत्यराज बली से कहा- ‘अगले मन्वन्तर में तू ही स्वर्ग का अधिपति इन्द्र होगा। तब तक तू अपने दैत्यों को लेकर सुतल पाताल में चला जा और वहीं पर निवास कर। मैं स्वयं तेरा द्वारपाल बनकर तेरी रक्षा करूंगा।’

बली ने भगवान के आदेश का पालन किया और वह दैत्यों को लेकर स्वर्ग छोड़कर पाताल चला गया। आधुनिक काल में इस पाताल का आशय भारत के दक्षिण-पूर्व में स्थित बाली द्वीप से लिया जाता है। बाली द्वीप पर आज भी राक्षसों की हजारों छोटी-बड़ी एवं विशालाकाय मूर्तियां मंदिरों के बाहर लगी हुई हैं। 

कुछ अन्य पुराणों में आई कथा के अनुसार भगवान श्रीहरि विष्णु वामन का रूप धारण करके राजा बली के द्वार पर जाकर खड़े हो गए। वे चार महीने तक दैत्यराज बली के द्वार पर खड़े रहे। इस पर दैत्यराज बली को आश्चर्य हुआ और उन्होंने उस बालक को बुलाकर पूछा- ‘तुम कौन हो?’

वामन ने उत्तर दिया- ‘मैं अपूर्वाली हूँ, क्या तुम मुझे नहीं जानते?’

बली ने पूछा- ‘तुम कहां से हो?’

इस पर वामन ने कहा- ‘सारी सृष्टि मुझसे है।’

राजा बली ने पूछा- ‘तुम्हारे माँ बाप कौन हैं?’

इस पर भगवान वामन ने कहा- ‘मेरा कोई माँ, बाप नहीं है।’

बली ने पूछा- ‘मुझसे क्या चाहते हो?’

तब वामन ने कहा कि मुझे अपने रहने के लिए तीन पग भूमि चाहिए। इसके बाद की कथा एक जैसी ही है जिसका उल्लेख हमने ऊपर की पंक्तियों में किया है। कुछ ग्रंथों के अनुसार तब से बली पाताल लोक में रहता है। वह केवल चार महीने के लिए अपने राज्य अर्थात् दक्षिण भारत में आता है। उस समय भगवान विष्णु पाताल में चले जाते हैं। भगवान के पाताल में जाने पर धरती पर ‘देव-शयनी’ पर्व मनाया जाता है। इन चार महीनों में धरती पर विवाह आदि मंगल कार्य नहीं होते हैं। भगवान के पुनः धरती पर आने पर ‘देव-उठानी एकादशी’ मनाई जाती है। इसे देव-झूलनी एकादशी भी कहते हैं।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को वामन द्वादशी या वामन जयंती का आयोजन किया जाता है। इसी दिन भगवान का वामन अवतार हुआ था। धार्मिक पुराणों तथा मान्यताओं के अनुसार भक्तों को इस दिन व्रत-उपवास करके भगवान वामन की स्वर्ण प्रतिमा बनवा कर पंचोपचार सहित पूजा करनी चाहिए। जो लोग इस दिन श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक भगवान वामन की पूजा करते हैं, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

कुछ ग्रंथों में आई कथा के अनुसार वामन ने राजा बली के सिर पर अपना पैर रखकर उसे अमरत्व प्रदान कर दिया। इस कारण राजा बली को भारतीय संस्कृति में महान आदर दिया गया है। आज भी सम्पूर्ण भारत में जब ब्राह्मण-पुरोहित किसी यजमान को रक्षासूत्र बांधते हैं तो यह मंत्र उच्चारित करते हैं-

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वामनु बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।

इसका अर्थ है कि जिस प्रकार दानवों के राजा बली वचन से बांधे गए थे, मैं भी तुम्हें उसी से बांधता हूँ। हे रक्षासूत्र! तुम कभी भी चलायमान न होओ, चलायमान न होओ। अर्थात्- हे रक्षासूत्र! तुम मेरे यजमान की रक्षा करो, कभी भी इस वचन से नहीं फिरो। इसे ‘रक्षासूत्र-मंत्र’ भी कहते हैं। महर्षि वेदव्यासजी द्वारा रचित अध्यात्म रामायण के अनुसार वामन भगवान, राजा बली के सुतल लोक में द्वारपाल बन गए और सदैव बने रहेंगे। गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित रामचरितमानस में भी इस घटना का उल्लेख किया है।

बली की कथा में आए संदर्भों को लौकिक दृष्टि से देखने पर यह अनुमान लगाया जाता है कि दक्षिण भारत में रहने वाले दैत्यों ने हिमालय पर्वत के क्षेत्र में रहने वाले देवताओं के राज्य पर अधिकार कर लिया था जिसे स्वर्ग कहते थे। भगवान ने राजा बली से यह समस्त भूमि लेकर उसे पाताल लोक अर्थात् दक्षिण-पूर्व एशियाई द्वीपों में जाकर रहने का आदेश दिया जिन्हें अब जावा, सुमात्रा, बाली, मलाया आदि द्वीपों के रूप में देखा जा सकता है। बाली द्वीप का नामकरण दैत्यराज ‘बली’ के नाम माना जाता है।

इन्हीं दैत्यों में आगे चलकर सुमाली नामक दैत्य हुआ जो रावण का नाना था। माना जाता है कि रावण का जन्म इन्हीं द्वीपों में हुआ था। कुछ लोग रावण का जन्म आंध्रालय अर्थात् ऑस्ट्रेलिया में होना मानते हैं। यक्षराज कुबेर के पास इतना सोना था कि उन्होंने सोने की लंका बनाई थी। कुबेर को यह सोना संभवतः सुमात्रा नामक द्वीप से मिला था। इसे संस्कृत साहित्य में ‘स्वर्णद्वीप’ कहा गया है। इस द्वीप पर आज भी बहुत बड़ी मात्रा में सोने का उत्पादन होता है। इन समस्त द्वीपों पर आज भी राक्षस जैसी मुखाकृतियों वाली मूर्तियां और चित्र बड़ी संख्या में मिलते हैं।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source