Monday, August 25, 2025
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उत्तर वैदिक साहित्य

उत्तर वैदिक साहित्य का अर्थ उन ग्रंथों से हैं जो वेदों, ब्राह्मण ग्रंथों, आरण्यकों एवं उपनिषदों के बाद लिखे गए। इनमें सांख्य, योग आदि षड्दर्शन ग्रंथ, स्मृतियाँ पुराण, रामायण एवं महाभारत नामक महाकाव्य ग्रंथ आते हैं।

उत्तर वैदिक साहित्य का अर्थ उन ग्रंथों से हैं जो वेदों, ब्राह्मण ग्रंथों, आरण्यकों एवं उपनिषदों के बाद लिखे गए। इनमें सांख्य, योग आदि षड्दर्शन ग्रंथ, स्मृतियाँ पुराण, रामायण एवं महाभारत नामक महाकाव्य ग्रंथ आते हैं। उत्तर वैदिक साहित्य का रचनाकाल कई शताब्दियों में विस्तृत है।

उत्तर वैदिक साहित्य – दर्शन ग्रन्थ

आर्यों ने अन्य कई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की भी रचना की, जिनका विश्व संस्कृति पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। अनेक ऋषियों ने दर्शन-शास्त्र के ग्रंथों का निर्माण किया। प्रमुख भारतीय दर्शनों की संख्या छः है-

(1.) कपिल मुनि का सांख्य-दर्शन,

(2.) पतन्जलि का योग-दर्शन,

(3.)  कण्व का वैशेषिक दर्शन,

(4.) गौतम का न्याय-दर्शन,

(5.) जैमिनि का पूर्व मीमांसा दर्शन तथा

(6.) बादरायण का उत्तर-मीमांसा दर्शन।

हिन्दू-धर्म के अध्यात्मवाद का भवन षडदर्शन के इन्हीं छः स्तम्भों पर खड़ा है।

महाकाव्य

महाकाव्यों की रचना ई.पू.800 से ई.पू. 400 के बीच हुई। महाकाव्यों का आशय संस्कृत भाषा में लिखे दो महाकाव्यों से है-

(1.) रामायण- इस ग्रंथ की रचना महर्षि वाल्मिीकि ने की।

(2.) महाभारत- इस ग्रंथ की रचना महर्षि वेदव्यास ने की। महाभारत का एक अंश गीता कहलाता है जिसमें निष्काम कर्म करने का उपदेश दिया गया है। रामायण एवं महाभारत का हिन्दू-समाज पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है। धर्मशास्त्रों तथा पुराणों का भी भारतीय समाज पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है।

स्मृतियाँ

आर्यों ने स्मृतियों की भी रचना की। स्मृतियों में मनु स्मृति, याज्ञवलक्य स्मृति तथा नारद स्मृति प्रमुख हैं। मनुस्मृति की रचना शुंगकाल में ई.पू.200 से ई.पू.100 के बीच होनी अनुमानित है। याज्ञवलक्य स्मृति की रचना ईस्वी 100 से ईस्वी 300 के बीच होनी अनुमानित है। नारद स्मृति की रचना ई.100 से ई.400 के बीच होनी अनुमानित है। ई.400 से ई.600 की अवधि में कात्यायन स्मृति एवं वृहस्पति स्मृति की भी रचना हुई। ये दोनों ही स्मृतियां अब तक अप्राप्य हैं। कुछ स्मृतियां, यथा- पराशर स्मृति, शंख स्मृति, देवल स्मृति का रचना काल ई.600 से ई.900 के बीच का माना जाता है।

पुराण

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प्रमुख पुराणों की संख्या 18 है जिनमें विष्णु-पुराण, शिव पुराण, स्कन्द पुराण तथा भागवत पुराण अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। वायु पुराण, विष्णु-पुराण, मार्कण्डेय पुराण, मत्स्य पुराण, कूर्म पुराण आदि प्रमुख पुराणों की रचना ई.300 से ई.600 के बीच हुई। अग्नि पुराण तथा गरुड़ पुराण की रचना ई.600 से ई.900 के बीच मानी जाती है। महाकाव्यों तथा पुराणों में वैदिक आदर्शों का प्रतिपादन किया गया है। अन्तर यह है कि महाकाव्यों में इसे मनुष्य के मुख से और पुराणों मे देवताओं के मुख से प्रतिपादित बताया गया है। 18 प्रमुख पुराणों के बाद 18 उप-पुराणों की रचना हुई। इनमें- आदि, आदित्य, बृहन्नारदीय, नन्दीश्वर, बृहन्नन्दीश्वर, साम्ब, क्रियायोगसार, कालिका, धर्म, विष्णुधर्मोत्तर, शिवधर्म, विष्णु धर्म, वामन, वारुण, नारसिंह, भार्गव और बृहद्धर्म पुराण सम्मिलित हैं। महापुराणों में वायु पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, मार्कण्डेय पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण और भागवत पुराण सबसे पुराने हैं और इनमें उस काल तक की ऐतिहासिक जानकारी है जब गुप्त सम्राटों का राज्य मगध से लेकर अयोध्या और प्रयाग तक विस्तृत था। भारतीय पुराण भारत के अति प्राचीन इहिास एवं वैदिक संस्कृति की जानकारी उपलब्ध करवाते हैं।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मूल लेख – उत्तर वैदिक सभ्यता एवं समाज

उत्तरवैदिक राजनीतिक व्यवस्था

उत्तरवैदिक समाज

उत्तरवैदिक आर्यों की अर्थव्यवस्था

उत्तरवैदिक आर्यों का धर्म

उत्तरवैदिक साहित्य

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