कुमार गुप्त प्रथम गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय का कनिष्ठ पुत्र था। उसे महेन्द्रादित्य भी कहते हैं। गोविंद गुप्त बालादित्य के संक्षिप्त शासन काल के बाद कुमारगुप्त प्रथम गुप्तों के सिंहासन पर बैठा।
कुमार गुप्त प्रथम (415-455 ई.)
बिलसड़ अभिलेख के अनुसार कुमारगुप्त की आरम्भिक तिथि 415 ई. तथा उसके चांदी के सिक्कों पर उसकी अंतिम तिथि 455 ई. प्राप्त होती है। इससे अनुमान होता है कि 415 ई. में चन्द्रगुप्त (द्वितीय) का कनिष्ठ पुत्र कुमारगुप्त (प्रथम) गुप्तों के सिंहासन पर बैठा। उसे महेन्द्रादित्य भी कहते हैं।
साम्राज्य
कुमार गुप्त प्रथम के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि उसने अपने पूर्वजों के विशाल साम्राज्य को सुरक्षित तथा संगठित रखा। 436 ई. के एक अभिलेख में कहा गया है कि कुमारगुप्त का साम्राज्य उत्तर में सुमेरू और कैलाश पर्वत से दक्षिण में विन्ध्या वनों तक और पूर्व तथा पश्चिम में सागर के बीच फैला हुआ था।
प्रजा की स्थिति
कुमार गुप्त प्रथम का राज्य शांतिपूर्ण और समृद्धिशाली था। उसने अपने शासन के 40 वर्ष के शांतिकाल में भी अपनी सेना को बनाये रखा।
अश्वमेध यज्ञ
कुमारगुप्त की मुद्राओं से ज्ञात होता है कि उसने एक अश्वमेघ यज्ञ भी किया था।
पुष्यमित्रों पर विजय
कुमार गुप्त के शासनकाल के अन्तिम भाग में नर्मदा नदी के उद्गम के निकट निवास करने वाले पुष्यमित्र वंश के क्षत्रियों ने गुप्त-साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया। कुमारगुप्त के पुत्र स्कन्दगुप्त ने उनकी शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया।
धार्मिक सहिष्णुता
कुमारगुप्त ने अपने पिता की धर्मिक सहिष्णुता की नीति का अनुसरण किया। वह स्वयं कार्तिकेय का उपासक था तथा अन्य सम्प्रदाय वालों के साथ उदारता का व्यवहार करता था।
निधन
455 ई. में कुमारगुप्त का निधन हो गया।
मूल अध्याय – गुप्त साम्राज्य
कुमार गुप्त प्रथम