पूर्वमध्यकाल में नारी की स्थिति से आशय गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद के भारत में नारी की स्थिति से है। इस काल में नारी की स्थिति वैदिक काल, महाकाव्यकाल, स्मृतिकाल तथा गुप्तकाल की नारी से बिल्कुल अलग थी।
भारत के इतिहास में हर्ष की मृत्यु अर्थात् ई.648 से लेकर मुसलमानों के भारत में शासन की स्थापना होने तक अर्थात् 1196 तक के काल को पूर्व मध्यकाल कहते हैं। इसे राजपूत काल भी कहा जाता है। बहुत से इतिहासकार ई.600 से ई.1300 तक के काल को पूर्वमध्यकाल मानते हैं।
हर्ष की मृत्यु के साथ ही भारतीय इतिहास में प्राचीन काल की समाप्ति होती है एवं मध्य-काल का आरम्भ होता है तथा भारतीय राजनीति के पटल से प्राचीन क्षत्रिय लुप्त हो जाते हैं एवं राजपूत-युग आरम्भ होता है। इस कारण सातवीं शताब्दी ईस्वी से बारहवीं शताब्दी ईस्वी तक के काल को भारतीय इतिहास में पूर्व-मध्य-काल एवं राजपूत-काल कहा जाता है।
इस काल तक आते-आते स्त्री के बहुत से अधिकार सीमित कर दिए गए और स्त्री को अनेक बन्धनों से बाँध दिया गया। विज्ञानेश्वर ने शंख का उद्धरण देकर टिप्पणी की कि वह बिना किसी से कहे और बिना चादर ओढ़े घर से बाहर न जाए, शीघ्रतापूर्वक न चले, बनिये, सन्यासी, वृद्ध वैद्य के अतिरिक्त किसी पर पुरुष से बात न करे, अपनी नाभि खुली न रखे, एड़ी तक वस्त्र पहने, अपने स्तनों पर से कपड़ा न हटाए, मुँह ढके बिना न हँसे, पति या सम्बन्धियों से घृणा न करे।
वह धूर्त, वेश्या, अभिसारिणी, सन्यासिनी, भाग्य बताने वाली, जादू-टोना या गुप्त विधियाँ करने वाली दुःशील स्त्रियों के साथ न रहे। इनकी संगति से कुलीन स्त्रियों का चरित्र भ्रष्ट हो जाता है। इस प्रकार स्त्री पर अनेक नियन्त्रण लग गए तथा वह सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक रूप से पुरुष के अधीन हो गई।
पूर्वमध्यकाल में नारी की शिक्षा
इस युग में अनेक प्रज्ञा-सम्पन्न स्त्रियाँ र्हुईं जिन्होंने काव्य, साहित्य एवं ललित कलाओं में विपुल योगदान किया। नौवीं शताब्दी ईस्वी के प्रारम्भ में मंडन मिश्र और शंकर के बीच हुए शास्त्रार्थ की निर्णायिका मंडन मिश्र की पत्नी ‘भारती’ थी, वह तर्क, मीमांसा, वेदान्त, साहित्य एवं शास्त्रार्थ विद्या में पारंगत थी।
नौवीं शताब्दी ईस्वी के अंत में कवि राजशेखर की पत्नी ‘अवन्ति सुन्दरी’ उत्कृष्ट कवयित्री और टीकाकार थी। इस युग में ऐसी स्त्रियाँ भी हुईं जो शासन-व्यवस्था और राज्य-प्रबन्ध में दक्ष होती थीं तथा शासक अथवा अभिभावक के अभाव में स्वयं शासन करती थीं।
पूर्वमध्यकाल में विवाह
पूर्व-मध्य कालीन समाज में अल्प-वय-विवाह का प्रचलन जोर पकड़ चुका था। इसका प्रमुख कारण भारत पर होने वाले विदेशी आक्रमण थे, विशेषकर इस्लाम के आक्रमण। विदेशियों ने भारतीय स्त्रियों से विवाह करने आरम्भ किए। धर्मशास्त्रकारों ने आर्य-रक्त की शुद्धता बनाए रखने तथा स्त्रियों के कौमार्य की रक्षा के उद्देश्य से बाल-विवाह का प्रावधान किया।
भारतीय नारी की युग-युगीन स्थिति
महाकाव्य काल में नारी की स्थिति
पौराणिक काल में नारी की स्थिति
पूर्वमध्यकाल में नारी की स्थिति