इतिहासकार मुहम्मद तुगलक का शासन सही नहीं मानते! वह अपने समय के अनुसार नहीं अपितु समय से आगे शासन कर रहा था। इस कारण उसका शासन विफलताओं के लिए याद किया जाता है।
मुहम्मद बिन तुगलक योग्य तथा प्रतिभावान् व्यक्ति था। उसने शासन में कई सुधार किये तथा कई नई व्यवस्थाएँ कीं।
मुहम्मद तुगलक का शासन
(1.) स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश शासन
मुहम्मद बिन तुगलक का शासन स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश था। सुल्तान शासन का प्रधान तथा समस्त अधिकारों का स्रोत था। यद्यपि सुल्तान की शक्ति अनियन्त्रित थी परन्तु महत्वपूर्ण विषयों में उसे परामर्श देने के लिए एक परिषद् बनाई गई थी। परिषद् के अतिरिक्त कुछ उच्च पदाधिकारी एवं अमीर भी सुल्तान को परामर्श देते थे। सुल्तान प्रायः उनके परामर्श को नहीं मानता था।
(2.) विदेशी अमीरों की नियुक्ति
जब मुहम्मद बिन तुगलक को देशी अमीरों की अयोग्यता का पता लग गया, तब उसने विदेशी अमीरों को उच्च पद देना आरम्भ किया। यह साम्राज्य के लिए हितकर सिद्ध नहीं हुआ, क्योंकि वे सच्चे राजभक्त सिद्ध नहीं हुए और अवसर पाकर विद्रोह करने लगे। विदेशी तथा देशी अमीरों में संघर्ष उत्पन्न हो गया।
(3.) योग्यता के आधार पर नियुक्तियाँ
मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने सम्पूर्ण राज्य को प्रान्तों में विभक्त किया तथा प्रत्येक प्रान्त के शासन के लिए एक ‘नायब वजीर’ नियुक्त किया जो सुल्तान के प्रति उत्तरदायी होता था। सुल्तान की सहायता के लिए एक नायब होता था जो सुल्तान की अनुपस्थिति में उसके कार्यों को करता था।
सुल्तान का एक वजीर, अर्थात् प्रधानमन्त्री भी होता था जिसकी सहायता के लिए चार शिकदार होते थे। वजीर के चार दबीर, अर्थात सेक्रेटरी होते थे। प्रत्येक दबीर के नीचे तीन सौ लिपिक होते थे। राज्य में कोई भी पद आनुवंशिक नहीं था। कर्मचारियों की नियुक्त योग्यता के आधार पर की जाती थी।
(4.) उलेमाओं के वर्चस्व की समाप्ति
दिल्ली सल्तनत इस्लामी सिद्धांतों पर आधारित थी। इस कारण शासन में उलेमाओं का बोलबाला था। बलबन तथा अलाउद्दीन खिलजी की तरह मुहम्मद बिन तुगलक ने भी राजनीति को धर्म से अलग रखने की नीति का अनुसरण किया। वह उलेमाओं से बहुत कम परामर्श लेता था। और उनके परामर्श के अनुसार काम नहीं करता था।
वह दोषी उलेमाओं को दण्ड देने में लेशमात्र संकोच नहीं करता था। उसने उन्हें न्याय करने के अधिकार से वंचित कर दिया जिसे वे अपना एकाधिकार समझते थे। इस कारण उलेमाओं का वर्चस्व समाप्त हो गया और वे सुल्तान से नाराज हो गये। सुल्तान ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति का अनुसरण किया। उसके शासन काल में हिन्दुओं को अनावश्यक रूप से दण्डित नहीं किया गया।
(5.) कठोर दण्ड विधान पर आधारित न्याय व्यवस्था
मुहम्मद बिन तुगलक न्यायप्रिय शासक था किंतु उसका दण्ड विधान बहुत कठोर था। न्याय का कार्य प्रायः काजी करते थे जिसकी सहायता के लिए मुफ्ती हुआ करते थे। न्याय विभाग का प्रधान ‘सद्र-जहान काजी उल-कुजात’ कहलाता था। उसके नीचे बहुत से काजी तथा नायब काजी होते थे। न्याय की दृष्टि में छोटे-बड़े सब समान थे। दोषियांे एवं अपराधियों को प्रायः मृत्यु दण्ड तथा अंग भंग करने का दण्ड दिया जाता था। छोटी अदालतों की अपील सुल्तान स्वयं सुनता था।
(6.) सेना पर आधारित शासन
मुहम्मद बिन तुगलक को विशाल सल्तनत संभालने के लिये विशाल सेना की व्यवस्था करनी पड़ी थी। उसकी सेना में तुर्क, फारसी तथा भारतीय समस्त प्रकार के सैनिक थे। विदेशियों को भी सेना में उच्च पद दिये गये थे। सेना के सबसे बड़े अफसर खान कहलाते थे। खान के नीचे मलिक, मलिक के नीचे अमीर, अमीर के नीचे सिपहसालार और सिपहसालार के नीचे जुन्द होते थे। सैनिकों को नकद वेतन मिलता था। उन्हें भोजन, वस्त्र तथा घोड़ों का चारा भी मिलता था। विद्रोहों को दबाने के लिये सेना हर समय सक्रिय रहती थी।
(7.) पुलिस तथा जेल
मुहम्मद बिन तुगलक ने अपराधों की रोकथाम के लिये पुलिस तथा जेल का अच्छा प्रबन्ध किया। पुलिस विभाग का प्रधान पदाधिकारी कोतवाल था। वह शान्ति तथा व्यवस्था के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी होता था। सुल्तान ने गुप्तचर विभाग की भी व्यवस्था की थी। जेलों की संख्या कम थी क्योंकि प्रायः मृत्यु दण्ड तथा अंग-भंग का दण्ड दिया जाता था। किले ही जेल का काम करते थे।
(8.) लगान वसूली की व्यवस्था
मुहम्मद बिन तुगलक ने लगान अथवा मालगुजारी वसूल करने का भी सुदृढ़ प्रबन्ध किया था। सारी भूमि शिकों में विभक्त कर दी गई थी। प्रत्येक शिक में एक शिकदार नियुक्त किया गया था जो मालगुजारी वसूल करता था। दोआब की भूमि एक सहस्र गाँवों में विभक्त थी जो हजारह कहलाती थी। कभी-कभी भूमि ठेकेदारों को दी जाती थी।
(9.) अकाल राहत की व्यवस्था
जब दो-आब में लम्बा दुर्भिक्ष पड़ा और किसानों की हालत खराब होने लगी तो मुहम्मद बिन तुगलक अपना दरबार सरगद्वारी ले गया और वहाँ पर ढाई वर्ष तक दुर्भिक्ष पीड़ितों की सहायता करता रहा। उसने किसानों को लगभग 70 लाख रुपये तकावी के रूप में बँटवाये। अकाल का प्रभाव कम करने के लिये सुल्तान ने बहुत से कुएँ खुदवाये और बेकार पड़ी भूमि को कृषि करने योग्य बनवाया। सुल्तान ने कृषि का एक अलग विभाग खोला और उसके प्रबन्धन के लिये अमीरकोह नामक अधिकारी नियुक्त किया।
(10.) डाक व्यवस्था
मुहम्मद बिन तुगलक ने डाक वितरण की अच्छी व्यवस्था करवाई। डाक घुड़सवारों तथा पैदल हरकारों द्वारा भेजी जाती थी। सरकार की ओर से सड़कों के दोनों किनारों पर वृक्ष लगवाये गये और थोड़ी-थोड़ी दूरी पर डाक-चौकियाँ बनवाई गईं। प्रत्येक चौकी पर दस धावक नियुक्त किये गये जो एक स्थान से दूसरे स्थान को पत्र तथा सूचनाएँ पहुँचाते थे।
(11.) दरबार का गौरव
मुहम्मद बिन तुगलक का दरबार बड़ा शानदार था। वह विद्वानों का आश्रयदाता था। उसके दरबार में बड़े-बड़े विद्वान रहते थे। विदेशों से लोग आकृष्ट होकर उसके दरबार में आते थे तथा पद और नाम पाते थे। सुल्तान दो प्रकार के दरबार करता था- दरबार ए आम तथा दरबार ए खास। इन दरबारों में सुल्तान प्रजा की शिकायतें सुनता था और राज्य की समस्याओं पर विचार करता था।
(12.) गुलामों की व्यवस्था
मुहम्मद बिन तुगलक के राज्य में गुलामों के साथ दुर्व्यवहार नहीं होता था और उनके आराम का ध्यान रखा जाता था। गुलाम स्त्री-पुरुष सुल्तान तथा अमीरों के महलों में काम करते थे। गुलाम स्त्रियाँ गुप्तचरों का भी काम करती थीं। गुलाम स्वतन्त्र भी कर दिये जाते थे और राज्य के ऊँचे-ऊँचे पदों पर भी पहुँच जाते थे।
(13.) हिन्दुओं के साथ अच्छा व्यवहार
मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में हिन्दुओं के साथ उतनी ज्यादती नहीं की गई जितनी उसके पूर्ववर्ती शासकों के काल में की गई थी। केवल उन्हीं हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया गया जो सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह करते थे। वह दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जो हिन्दुओं के होली त्यौहार में शामिल होता था। उसने योग्य हिन्दुओं को शासन में उच्च पद प्रदान किये।
(14.) प्रान्तीय शासन
प्रान्त का शासक नायब सुल्तान कहलाता था। उसे सैनिक तथा प्रशासकीय दोनों कार्य करने पड़ते थे। उसे न्याय का भी कार्य करना पड़ता था। प्रान्तीय खर्च करने के बाद जो धन बचता था, वह केन्द्रीय कोष में भेज दिया जाता था। प्रान्तपति अपने प्रान्तों में स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश होते थे। मुहम्मद बिन तुगलक के बहुत से प्रांतपतियों ने सुल्तान से विद्रोह करके स्वतंत्र होने का प्रयास किया।
मुहम्मद बिन तुगलक की विफलताएँ
मुहम्मद बिन तुगलक एक शासक के रूप में सर्वथा असफल ही रहा। उसने अपने पिता से एक विशाल साम्राज्य प्राप्त किया था जिसके अन्तर्गत सम्पूर्ण उत्तरी भारत तथा दक्षिणी भारत का बहुत बड़ा अंश सम्मिलित था परन्तु मुहम्मद बिन तुगलक के मरने से पहले ही उसका साम्राज्य बिखरने लगा था। जिन प्रान्तों पर उसका अधिकार था, उन प्रांतों के प्रांतपति एक-एक करके विद्रोह कर रहे थे। अपनी विजय योजनाओं में भी उसे पर्याप्त सफलता नहीं मिली। उसकी शासन सम्बन्धी अधिकांश योजनाओं को असफलता का आलिंगन करना पड़ा।
विफलताओं के कारण
मुहम्मद बिन तुगलक अपनी विफलता के लिए स्वयं उत्तरदायी नहीं था। उसकी परिस्थितियों तथा उसके दुर्भाग्य ने उसकी समस्त योजनाओं को विफल बनाया। उसकी विफलता के निम्नलिखित कारण थे-
(1.) योग्य अधिकारियों का अभाव
मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में योग्य मुसलमान अमीरों और सेनापतियों का अभाव था। यदि उसकी सेवा में योग्य अधिकारी होते तो वे उसकी महत्वाकांक्षी योजनाओं को सफल बनाने का मार्ग अवश्य ढूंढ लेते। कम से कम उसकी कुछ योजनाएं तो अवश्य ही सफल रही होतीं जो उसके राज्य को बिखरने से रोक लेतीं।
(2.) प्रकृति की प्रतिकूलता
प्रकृति भी मुहम्मद बिन तुगलक के विरुद्ध रही। उत्तर भारत में दीर्घकाल तक वर्षा के अभाव के कारण भयानक दुर्भिक्ष पड़ा जिसके कारण प्रजा को असह्य यातनाएँ भोगनी पड़ीं। सुल्तान के प्रयास करने पर भी प्रजा को कष्टों से मुक्ति नहीं मिली। प्रजा कर देने में असफल हो गई, इससे राजकोष पर बहुत बुरा असर पड़ा।
(3.) प्रजा का असहयोग
मुहम्मद बिन तुगलक प्रजा के सहयोग तथा सहानुभूति से वंचित रहा। प्रजा कर देने में उपेक्षा करती थी और विद्रोह करने को उद्यत रहती थी।
(4.) विदेशियों का शासन में समावेश
सुल्तान जिसके साथ उदारता तथा सहानुभूति दिखलाता था, वही उसका शत्रु हो जाता था और विद्रोह करने को उद्यत हो जाता था। सुल्तान ने विदेशी अमीरों को अपने यहाँ शरण दी और उन्हें ऊँचे पदों पर नियुक्त किया परन्तु अवसर मिलने पर वे भी सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह करने लगे।
(5.) कट्टरपन्थियों का असहयोग
उलेमा, मौलवी तथा शेख, मुहम्मद बिन तुगलक की उदार एवं स्वतंत्र नीतियों से बड़े असन्तुष्ट थे और उसकी हर नीति की आलोचना करके जनता में असंतोष फैलाया करते थे।
(6.) साम्राज्य की विशालता
मुहम्मद बिन तुगलक का साम्राज्य इतना विस्तृत था कि विद्रोहों का दमन करना उसके लिए असंभव सा हो गया। जब सुल्तान एक स्थान पर विद्रोह शांत करता था, तब दूसरे स्थान में विद्रोह आरम्भ हो जाता था।
(7.) प्रान्तपतियों के विद्रोह
प्रजा के असंतोष से प्रान्तपतियों ने लाभ उठाने का प्रयत्न किया और विद्रोह करके अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित करने लगे।
(8.) सुल्तान की योजनायें समय से आगे थीं
मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाएँ अपने समय से बहुत आगे थीं। उसके अधिकारियों, उलेमाओं एवं जन सामान्य में उन योजनाओं को समझने की क्षमता नहीं थी। इसलिये वे लोग उन योजनाओं को विफल बना देते थे। ऐसी दशा में सुल्तान के क्रोध की सीमा नहीं रह जाती थी और वह कठोर दण्ड देता था। इससे अधिकारियों, उलेमाओं एवं जन सामान्य में सुल्तान के प्रति और भी अधिक नाराजगी हो जाती थी।
(9.) धन का अपार व्यय
मुहम्मद बिन तुगलक को अपनी विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन में अपार धन व्यय करना पड़ता था। इसलिये उसे करों में वृद्धि करनी पड़ी थी। इस कर वृद्धि से जनता में सुल्तान के विरुद्ध बड़ा असंतोष फैला।
(10.) सुल्तान की त्रुटियाँ
कुछ विद्वानों के विचार में मुहम्मद बिन तुगलक की विफलता का मुख्य उत्तरदायित्व उसकी त्रुटियों पर था। इन विद्वानों का कहना है कि मुहम्मद बिन तुगलक में सामंजस्य, व्यावहारिक बुद्धि, मानवीय चरित्र की परख, अपने सहयोगियों के साथ अच्छे सम्बन्ध रखने, लोगों में विश्वास उत्पन्न करने तथा धैर्यपूर्वक कार्य करने की शक्ति का सर्वथा अभाव था।
इन दुर्बलताओं के कारण ही सुल्तान को असफलता प्राप्त हुई। हो सकता है कि इन दुर्बलताओं तथा त्रुटियों के कारण ही मुहम्मद बिन तुगलक असफल रहा हो परन्तु मूलतः परिस्थितियों के कारण ही सुल्तान को विफलताओं का सामना करना पड़ा था।
यह भी देखें-
मुहम्मद तुगलक का शासन एवं विफलताएँ



