फीरोज तुगलक शांत प्रकृति का सुल्तान था। इसलिये शासन सुधारों में उसकी विशेष रुचि थी। वह प्रजा के कल्याण की ओर विशेष रूप से ध्यान देता था परन्तु उलेमाओं के प्रभाव में होने के कारण धार्मिक संकीर्णता का शिकार था। इस कारण वह हिन्दुओं के साथ बड़ा अत्याचार करता था। फीरोज ने शासन सम्बन्धी निम्नलिखित सुधार किये-
(1.) स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश शासन
अन्य मध्यकालीन मुसलमान शासकों की भांति फीरोज का शासन भी स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश था। सुल्तान स्वयं राज्य का प्रधान था और वही प्रधान सेनापति था। सुल्तान के नीचे उसका प्रधानमन्त्री था जो सुल्तान को महत्वपूर्ण कार्यों में परामर्श देता था। फीरोज का प्रधानमंत्री खान-ए-जहाँ मकबूल योग्य व्यक्ति था। वह सुल्तान के साथ युद्ध स्थल में जाता था और कभी-कभी सुल्तान की अनुपस्थिति में दिल्ली के शासन का भार उसी के ऊपर रहता था। महत्वपूर्ण विषयों पर सलाह लेने के लिये सुल्तान दरबार का आयोजन करता था तथा अमीरों से परामर्श लेता था।
(2.) इस्लाम आधारित शासन: फीरोज में उच्च कोटि की धार्मिक कट्टरता थी। चूंकि उलेमाआंे के अनुरोध पर वह तख्त पर बैठा था, इसलिये वह समस्त कार्य उनकी सहायता तथा परामर्श से करता था। इस प्रकार फीरोज ने इस्लाम आधारित शासन की स्थापना की। वह कुरान के नियम के अनुसार शासन करता था। उसके शासन में हिन्दुओं को उतना लाभ नहीं हुआ जितना मुसलमानों को। श्रीराम शर्मा ने लिखा है- ‘फीरोज न तो अशोक था न अकबर जिन्होंने धार्मिक सहिष्णुता की नीति का अनुसरण किया था, वरन् वह औरंगजेब की भांति कट्टरपंथी था।’
(3.) सेना का प्रबन्ध: फीरोज में न तो उच्चकोटि के सैनिक गुण थे और न वह सामरिक प्रवृत्ति का सुल्तान था। इसलिये उसमें सैनिक संगठन की भी क्षमता नहीं थी। उसने साम्राज्य का सैनिक संगठन जाति-प्रथा के आधार पर किया था। स्थायी सैनिकों को जागीरें दी गई थीं। जो सैनिक अस्थायी रूप से काम करते थे, उन्हें सरकारी कोष से नकद वेतन दिया जाता था। कुछ ऐसे भी सैनिक थे जिन्हें किसी गांव की भूमि का एक भाग वेतन के रूप में मिलता था। घुड़सवारों को आदेश दिया गया कि वे उत्तम घोड़ों को सैनिक दफ्तर में लाकर रजिस्ट्री कराएं। घोड़ों के निरीक्षण के लिए नायब अर्जे मुमालिक की नियुक्ति की गई थी। मुसलमान सैनिकों के साथ दया दिखाई जाती थी। इस कारण वृद्ध, रुग्ण तथा अक्षम सैनिकों को भी सेना से अलग नहीं किया जाता था। फीरोज ने एक नया नियम बनवाया कि जब कोई सैनिक वृद्धावस्था के कारण असमर्थ हो जाए तो उसके स्थान पर उसके पुत्र अथवा दामाद या उसके गुलाम को रख लिया जाए। इस नियम का सेना की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ा। बहुत से योग्य सैनिकों का स्थान कमजोर सैनिकों ने ले लिया।
(4.) न्याय व्यवस्था: फीरोज कट्टर मुसलमान था। इसलिये उसने न्याय व्यवस्था कुरान के नियमों के आधार पर की थी। वह अपराधियों को दण्ड देने में संकोच नहीं करता था परन्तु उसने दण्ड विधान की कठोरता को हटा दिया। अंग-भंग करने के दण्ड पर रोक लगा दी गई। प्राणदण्ड भी बहुत कम दिया जाता था। सुल्तान की उदारता के कारण कई बार दण्ड के भागी लोग भी दण्ड पाने से बच जाते थे। शरीयत के नियमों के अनुसार न्याय किया जाता था। मुफ्ती कानून की व्याख्या करता था। फीरोज तुगलक के काल में न्याय उतना पक्षपात रहित तथा कठोर नहीं था जितना मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में।
(5.) मुद्रा की व्यवस्था: मुद्रा की समस्या के सुलझाने का कार्य मुहम्मद तुगलक के काल में ही आरम्भ हो गया था परन्तु पूरा नहीं हो सका था। फीरोज ने इस अधूरे कार्य को पूर्ण करने का प्रयत्न किया। उसने छोटे-छोटे मूल्य की मुद्राएं चलाईं जिनका प्रयोग छोटे व्यवसायों में हो सकता था। फीरोज धातु की शुद्धता पर विशेष रूप से ध्यान देता था परन्तु अधिकारियों की बेइमार्नी के कारण मुद्रा सम्बन्धी सुधार में विशेष सफलता नहीं मिली।
(6.) कर नीति: सल्तनत की आय का प्रमुख साधन भूमि कर था। भूमि कर के अतिरिक्त आय के अन्य साधन भी थे। चूंकि सुल्तान को सैनिक अभियानों पर धन व्यय नहीं करना था इसलिये उसे राजकोष भरने की उतनी चिन्ता नहीं थी जितनी प्रजा को सुखी बनाने की। उसने उन समस्त 23 करों को हटा लिया जिनसे प्रजा को कष्ट होता था। उसने कुरान के नियमानुसार जनता पर केवल चार कर- खिराज, जकात, जजिया तथा खाम को जारी रखे। युद्ध में मिला लूट का सामान सेना तथा राज्य में फिर उसी अनुपात में बंटने लगा जैसे कुरान द्वारा निश्चित किया गया है, अर्थात् पांचवां भाग राज्य को और शेष सेना को। सुल्तान की इस उदार नीति का अच्छा परिणाम हुआ। व्यापार तथा कृषि दोनों की उन्नति हुई। वस्तुओं का मूल्य कम हो गया और लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति होने लगी। सुल्तान की आय में वृद्धि हो गई और सुल्तान के पास इतना धन हो गया कि वह लोक सेवा के कार्यों को कर सके।
(7.) जागीर प्रथा: सम्पूर्ण दिल्ली सल्तनत फीफों में और प्रत्येक फीफ जिलों में विभक्त थी जिनके शासन के लिए विभिन्न अधिकारी नियुक्त किये जाते थे। इन अधिकारियों को सरकार की ओर से जागीरें मिलती थीं। अलाउद्दीन खिलजी ने जागीर प्रथा को समाप्त कर दिया था। वह अपने अफसरों को नकद वेतन देता था किंतु मुहम्मद बिन तुगलक को यह प्रथा फिर से चलानी पड़ी थी। फीरोज तुगलक ने जागीर प्रथा को नियमित रूप से स्थापित कर दिया। इसका परिणाम सरकार के लिए बहुत बुरा हुआ। जब तुगलक वंश डगमगाने लगा तब ये जागीरदार अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का प्रयत्न करने लगे।
(8.) कृषि व्यवस्था: फीरोज तुगलक ने कृषि की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने हिसामुद्दीन नामक व्यक्ति को लगान की जांच पड़ताल करने के लिए नियुक्त किया। हिसामुद्दीन ने 6 वर्ष तक राज्य के विभिन्न भागों का भ्रमण किया और किसानों की वास्तविक दशा का पता लगाया। कृषि की उन्नति के लिये हिसामुद्दीन की रिपोर्ट के आधार पर कई सुधार किये गये। इन सुधारों का ध्येय किसानों के कष्ट दूर करके उन्हें अधिक से अधिक सुविधायें देना था। फलतः जितने कष्टदायक कर थे, सब हटा दिये गए। फीरोज ने 23 करों को बन्द कर दिया। सरकारी मालगुजारी कम कर दी। किसानों का बोझ घटाने के लिए प्रान्तीय तथा स्थानीय अधिकारियों से धन के रूप में भेंट लेना बन्द कर दिया।
(9.) सिंचाई की व्यवस्था: वर्षा के अभाव के कारण प्रायः अकाल पड़ता था और प्रजा को कष्ट भोगना पड़ता था। इसलिये अनावृष्टि के समय सिंचाई करने के लिए फीरोज तुगलक ने चार नहरें बनवाईं। तारीखे मुबारकशाही के रचियता ने चार नहरों का उल्लेख किया है। इनमें से एक नहर सतलज से निकल कर घग्घर तक जाती थी। दूसरी नहर सिरमूर की पहाड़ियों के पास से निकल कर हांसी होती हुई हिसार फीरोजा तक जाती थी। तीसरी नहर घघ्घर से फीरोजाबाद तक और चौथी यमुना से निकलकर फीरोजाबाद के एक स्थान तक जाती थी। फीरोज तुगलक ने बहुत बड़ी संख्या में कुएं भी खुदवाये। सिंचाई की अच्छी व्यवस्था हो जाने से बेकार पड़ी भूमि पर भी खेती होने लगी। नहरों के निरीक्षण के लिए कुशल इंजीनीयर रखे गये। नदियों पर बांध भी बंधवाये गये। सिंचाई व्यवस्था अच्छी होने से किसानों की आय में वृद्धि हो गई। राज्य की ओर से सिंचाई सुविधा उलब्ध करवाये जाने के बदले में किसानों से उपज का दसवां भाग लिया जाता था।
(10.) बेकारी की समस्या: उन दिनों मध्यम श्रेणी के लोगों में बेकारी की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया। नगरों में बेकार लोगों की संख्या इतनी बढ़ गई कि उनकी समस्या सुलझाने के लिये सुल्तान ने बेकारी उन्मूलन का अलग विभाग खोला। कोतवाल को आदेश दिया गया कि वह बेकार लोगों की सूची बनाये। बेकार लोगों को दीवान के पास आवेदन भेजना पड़ता था और योग्यतानुसार लोगों को काम दिया जाता था। शिक्षित व्यक्तियों को महल में नौकर रख लिया जाता था। जो लोग किसी अमीर का गुलाम बनना चाहते थे, उन्हें सिफारिशी चिट्ठियां दी जाती थीं।
(11.) औषधालय: फीरोज तुगलक को स्वयं औषधि विज्ञान का अच्छा ज्ञान था। उसने दिल्ली में एक ‘दारूलसफा’ (औषधालय) स्थापित करवाया जिसमें रोगियों को निःशुल्क औषधियां मिलती थीं। रोगियों के भोजन की व्यवस्था राज्य की ओर से की जाती थी और देख-भाल के लिये योग्य हकीमों को रखा जाता था।
(12.) यात्रियों की सहायता: मुस्लिम फकीरों तथा सुल्तानों की समाधियों के दर्शनार्थ जाने वाले यात्रियों को राज्य की ओर से दान देने की व्यवस्था की गई।
(13.) मुहम्मद के कार्यों का प्रायश्चित: फीरोज तुगलक को मुहम्मद बिन तुगलक के प्रति बड़ी श्रद्धा थी। उसने मुहम्मद बिन तुगलक के पापों का प्रायश्चित करना आरम्भ किया। जिन व्यक्तियों को मुहम्मद ने प्राण दण्ड दिया था, अथवा जिन्हें अंग-भंग की सजा दी थी, फीरोज ने उन्हें अथवा उनके परिवार वालों को धन देकर उनसे क्षमापत्र प्राप्त किये जिन्हें एक सन्दूक में बन्द करके मुहम्मद बिन तुगलक की समाधि के सिरहाने रखा गया। जिन लोगों के गांव अथवा भूमि छिन गई थी, वह वापस लौटा दी गई।
(14.) गुलाम प्रथा: फीरोज के शासन काल में गुलामों का बाहुल्य था। इन गुलामों की दशा बड़ी ही दयनीय थी। फीरोज तुगलक ने उनकी दशा सुधारने का प्रयत्न किया। ये गुलाम युद्ध सैनिक होने के कारण असभ्य तथा अशिक्षित थे। इसलिये ये राज्य के लिये सहायक सिद्ध होने के स्थान पर राज्य के लिए भार बन गये थे। फिरोज ने इनके लिए एक अलग विभाग खोला और उसका नाम ‘दीवाने बन्दगान’ रखा। इस विभाग का एक अलग कोष तथा अलग दीवान होता था। सुल्तान ने 40,000 गुलामों को केन्द्र में रखा और उन्हें योग्यतानुसार विभिन्न विभागों में नियुक्त कर दिया। कुछ गुलामांे की शिक्षा की व्यवस्था की गई और कुछ को सुल्तान के अंग-रक्षकों में भर्ती कर लिया गया। शेष 1,60,000 गुलाम साम्राज्य के भिन्न-भिन्न भागों में भेज दिये गये और प्रांतीय गवर्नरों तथा अधिकारियों के संरक्षण में रखे गये।
(15.) शिक्षा तथा साहित्य: यद्यपि फीरोज स्वयं बहुत बड़ा विद्वान नहीं था परन्तु वह शिक्षा तथा साहित्य का पोषक था। उसने शिक्षा के प्रसार के लिए बहुत से मदरसे तथा मकतब खुलवाये। इन संस्थाओं को राज्य से सहायता मिलती थी। विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति तथा अध्यापकों को पेंशन दी जाती थी। मकतबों को राज्य की ओर से भूमि मिलती थी। सुल्तान ने साहित्य सृजन को संरक्षण तथा सहायता प्रदान की। सुप्रसिद्ध इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने अपनी पुस्तक तारीखे फीरोजशाही की रचना फीरोज तुगलक के शासन काल के प्रारंभिक भाग में की थी। शम्से सिराज अफीफ ने अपनी इतिहास की पुस्तक इसी काल में लिखी थी। धर्म तथा नीति पर इस काल में कई ग्रंथ लिखे गये। फीरोज ने बहुत से संस्कृत ग्रन्थों का अनुवाद कराया। मौलाना जलालुद्दीन रूमी इस काल का बहुत बड़ा तत्त्ववेत्ता था।
(16.) लोक सेवा के कार्य: फीरोज तुगलक के शासन काल में लोक सेवा के अनेक कार्य किये गये। निर्माण कार्य में सुल्तान की विशेष रुचि थी। उसने 1350 ई. में दिल्ली के निकट फीरोजाबाद नामक नगर स्थापित किया। उसके गौरव को बढ़ाने के लिए उसने अम्बाला तथा मेरठ जिले से लाकर अशोक के दो स्तम्भ लगवाये। फीरोज ने जौनपुर, फतेहाबाद तथा हिसार नामक नगरों का निर्माण करवाया। बरनी के अनुसार फीरोज ने 50 बांधों, 40 मस्जिदों, 30 कॉलेजों, 20 महलों, 100 सरायों, 200 नगरों, 30 झीलों, 100 औषधालयों, 5 मकबरों, 100 स्नानागारों, 10 स्तंभों, 40 सार्वजनिक कुओं तथा 150 पुलों का निर्माण करवाया। फीरोज को उपवन लगवाने का भी बड़ा शौक था। उसने दिल्ली के निकट 1,200 बाग लगवाये। अन्य कई स्थानों पर भी उसने बाग लगवाये। उसने अलाउद्दीन द्वारा बनवाये गये 30 उपवनों का जीर्णोद्धार करवाया।
(17.) राज दरबार तथा राज परिवार की व्यवस्था: फीरोज तुगलक का स्वभाव सरल एवं जीवन सादा था। उसके दरबार में अधिक तड़क-भड़क नहीं थी। ईद तथा शबेरात के अवसर पर अमीर लोग सज-धज कर आते थे। उनका बड़ा सम्मान होता था। इस आमोद-प्रमोद में धनी-गरीब, समस्त भाग लेते थे। राज्य परिवार की व्यवस्था को ‘कारखाना’ कहते थे। इसके अलग-अलग विभाग थे और इसके अलग-अलग पदाधिकारी तथा कर्मचारी होते थे। प्रत्येक कारखाने का अलग राजस्व विभाग होता था।
निष्कर्ष
फीरोजशाह तुगलक के समय दिल्ली सल्तनत की शासन व्यवस्था ठीक तरह से चलती रही। न तो उसके समय में कोई बड़ा विद्रोह हुआ और न उसके समय में कोई भयानक अकाल पड़ा किंतु उसकी उदार नीतियों के कारण सल्तनत की शासन-व्यवस्था शिथिल पड़ गई। मुसलमान सैनिकों का नैतिक पतन आरम्भ हो गया और उनकी आकांक्षा तथा उत्साह मन्द पड़ गये।