समुद्रगुप्त के बाद उसका बड़ा पुत्र रामगुप्त पाटलिपुत्र का राजा हुआ। उसे अपने पिता का विशाल साम्राज्य पैतृक अधिकार में प्राप्त हुआ किंतु वह इतने बड़े साम्राज्य के शासक के रूप में अयोग्य सिद्ध हुआ।
रामगुप्त (375 ई.)
समुद्रगुप्त के कई पुत्र तथा पौत्र थे। उसके ज्येष्ठ पुत्र का नाम राम गुप्त था जो उसके बाद मगध के सिंहासन पर बैठा। कतिपय साहित्यिक उल्लेखों तथा पूर्वी मालवा से प्राप्त राम गुप्त के नाम से अंकित तथा गरुड़ चिह्नांकित सिक्कों के आधार पर राम गुप्त की ऐतिहासिकता स्वीकार की गई है। उसके शासन काल के सम्बन्ध में अधिक जानकारी नहीं मिलती है।
सम्भवतः उसके सिंहासन पर बैठते ही शकों ने गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया। राम गुप्त परास्त हो गया और शकों ने उसे बंदी बना लिया। विवश होकर रामगुप्त को शकों से सन्धि करनी पड़ी जिसमें उसे अपनी रानी ध्रुवदेवी, शकों को समर्पित करने की शर्त स्वीकार करनी पड़ी।
रामगुप्त का छोटा भाई चन्द्रगुप्त बड़ा ही वीर, साहसी तथा स्वाभिमानी राजकुमार था। अपने भ्राता की कायरता से खिन्न होकर चंद्रगुप्त, ध्रुवदेवी के वेश में स्त्री-वेशधारी योद्धाओं के साथ शकों की सैन्य छावनी में गया। जब शक राजा ध्रुवदेवी का आलिंगन करने के लिए आगे बढ़ा तब चन्द्रगुप्त ने उसका वध कर दिया और अपने सैनिकों की सहायता से शकों को गुप्त साम्राज्य से मार भगाया।
सम्राट रामगुप्त की कायरता तथा कापुरुषता से ध्रुवदेवी को बड़ा क्षोभ हुआ। उसने अपने देवर के वीरोचित गुणों का सम्मान करते हुए तथा साम्राज्य के लिये उसका मूल्य एवं उसकी आवश्यकता समझते हुए, चंद्रगुप्त के साथ मिलकर रामगुप्त की हत्या का षड़यंत्र रचा। ध्रुवदेवी के सहयोग से चन्द्रगुप्त ने अपने भाई रामगुप्त का वध कर दिया औरध्रुवदेवी के साथ विवाह करके गुप्त साम्राज्य का सम्राट बन गया।
मूल अध्याय – गुप्त साम्राज्य
रामगुप्त