इतिहासकारों ने लिखा है कि मुहम्मदशाह रंगीला की मौत अधिक शराब पीने से हुई थी किंतु वास्तव में उसकी मौत उसके प्यारे दोस्त चिनकुलीच खाँ की मौत के गम में हुई थी। बादशाह का प्यारा दोस्त चिनकुलीच खाँ सतलज के किनारे हुए एक युद्ध में मारा गया !
नादिरशाह के ईरान लौट जाने के बाद लाल किले में जिंदगी धीरे-धीरे सामान्य होने लगी। एक-दो वर्ष में ही वे भूलने लगे कि नादिरशाह नाम का कोई आक्रांता लाल किले में आया था। इस कारण लाल किले के भीतर रह रहे लोगों के स्वभाव एवं आदतों में कोई अंतर नहीं आया। यद्यपि बादशाह अब भी भोग-विलास में डूबा हुआ था किंतु उसके स्वभाव में कुछ परिवर्तन आए थे।
मुहम्मदशाह रंगीला किशोर अवस्था से ही शराब पीने का आदी था किंतु नादिरशाह के लौट जाने के बाद वह बेतहाशा शराब पीने लगा। कुछ स्रोतों के अनुसार वह अफ़ीम भी खाने लगा जिससे कारण उसका शरीर उसकी सल्तनत की ही तरह अंदर से खोखला हो गया। अब वह पहले की तरह औरतों के कपड़े नहीं पहनता था, केवल सफेद रंग के मर्दाना कपड़ों में दिखाई देता था।
मुगल दरबार अब भी गुटों में बंटा हुआ था। फिर भी विशाल भारत के किसानों द्वारा उगाई जा रही फसलों से मिलने वाले लगान से लाल किले का व्यय मजे से चलता रहा। बादशाहत बनी रही और सेनाओं को वेतन भी दिया जाता रहा।
हालांकि अब बादशाह की अपनी सेना बहुत छोटी रह गई थी किंतु बंगाल, अवध और हैदराबाद के सूबेदारों के पास अपनी-अपनी विशाल सेनाएं थीं। इन सूबों के सूबेदार वास्तव में तो स्वतंत्र थे किंतु अब भी मुगल बादशाह के अधीन होने का दिखावा करते थे।
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अचानक ईस्वी 1748 में लाहौर से चिंताजनक समाचार मिलने लगे जिनके कारण इन सूबेदारों को एक बार फिर से मुगल बादशाह की छतरी के नीचे एकत्रित होने पर विवश होना पड़ा।
हुआ यह कि ईस्वी 1748 में लाहौर का सूबेदार जकियार खाँ बहादुर मर गया और उसके दो पुत्रों यहिया खाँ बहादुर एवं मियां शाह नवाज खाँ में सूबेदार के पद के लिए युद्ध हुआ। जकियार खाँ का बड़ा पुत्र चिनकुलीच खाँ का जंवाई था। इसलिए उसका पलड़ा भारी था किंतु छोटे पुत्र मियां शाह नवाज खाँ ने अपनी सहायता के लिए अफगानिस्तान के शासक अहमदशाह दुर्रानी को आमिंत्रत किया।
अहमदशाह दुर्रानी अपनी सेनाएं लेकर लाहौर आ गया। भारत के इतिहास में उसे अहमदशाह अब्दाली भी कहा जाता है। किसी समय वह नादिरशाह का सेनापति हुआ करता था तथा ईरान के अधीन अफगानिस्तानी क्षेत्र का सूबेदार था किंतु जब नादिरशाह मर गया तो अहमदशाह अब्दाली ने ईरानी सल्तनत के अफगानिस्तान की तरफ वाले हिस्से पर अधिकार जमा लिया था। वह भारत पर आक्रमण करने का अवसर ढूंढ ही रहा था कि उसे लाहौर के मृृत सूबेदार के पुत्रों के झगड़े में कूदने का अवसर मिल गया।
जब अहमदशाह अब्दाली ने सिंधु नदी पार करके पंजाब की तरफ बढ़ना आरम्भ किया तो मुहम्मदशाह रंगीला ने अपने पुराने वजीर चिनकुलीच खाँ को अहमदशाह अब्दाली से लड़ने के लिए आमंत्रित किया। चिनकुलीच खाँ के लिए इस युद्ध में आना वैसे भी आवश्यक था क्योंकि वह इस युद्ध में अपने जवाईं यहिया खाँ बहादुर की सहायता करना चाहता था। इसलिए चिनकुलीच खाँ विशाल सेना लेकर हैदराबाद से पंजाब आ पहुंचा।
इसी प्रकार अवध का नवाब सफदरजंग भी अपनी विशाल सेना लेकर मुगल बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला की सहायता के लिए पहुंचा। क्योंकि उसे भय था कि यदि अहमदशाह अब्दाली दिल्ली तक पहुंचने में सफल हो गया तो वह सफदरजंग से बीस करोड़ रुपए की मांग करेगा। ये बीस करोड़ रुपए वही थे जो ईस्वी 1739 में सफदरजंग के पिता सआदत खाँ ने नादिरशाह को देने का वचन दिया था किंतु रुपयों का प्रबंध नहीं होने के कारण उसने आत्महत्या कर ली थी। मुहम्मदशाह रंगीला ने अपने पुत्र अहमदशाह के नेतृत्व में शाही सेना भी पंजाब की ओर रवाना कर दी।
इस प्रकार चिनकुलीच खाँ, सफदरजंग एवं शहजादे अहमदशाह के सैनिकों की संख्या 75 हजार हो गई। पंजाब में मनिपुर नामक स्थान पर दोनों पक्षों में भारी युद्ध हुआ जिसमें मुगल सेना ने भारी क्षति उठाकर भी विजय प्राप्त कर ली। चिनकुलीच खाँ इस युद्ध में मारा गया तथा अहमदशाह अब्दाली वापस ईरान भाग गया। चिनकुलीच खाँ के दूसरे पुत्र मुइन-उल-मुल्क को लाहौर का सूबेदार नियुक्त कर दिया गया।
जब मुहम्मदशाह रंगीला को मनिपुर युद्ध के समचार मिले तो उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि बादशाह का सबसे विश्वसनीय और सबसे प्यारा दोस्त चिनकुलीच खाँ अब इस दुनिया में नहीं है। बादशाह को रह-रहकर उस चिनकुलीच खाँ की याद आती थी जिसने नीचे गिरती हुई मुगल सल्तनत को संभालने का भरसक प्रयास किया था किंतु स्वयं मुहम्मदशाह रंगीला ने उसे तरह-तरह से अपमानित करके मुगल दरबार से दूर चले जाने को विवश कर दिया था।
बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला अपने अंतिम दिनों में चिनकुलीच खाँ को याद करके जोर-जोर से रोया करता था। उसे चिनकुलीच खाँ की मृत्यु का ऐसा दुख पहुंचा कि वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। एक दिन उसे दुःख और क्रोध का भयानक दौरा पड़ा जिसके कारण उसने अत्यधिक शराब पी ली।
बादशाह को उसी शाम हयात बख्श बाग़ ले जाया गया जहाँ वह सारी रात बेहोश रहा और अगले दिन अर्थात् 26 अप्रेल 1748 को चल बसा। उस सयम वह केवल 46 वर्ष का था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार मुहम्मदशाह रंगीला की मौत अत्यधिक शराब पीने से हुई। उसे दिल्ली में निज़ामुद्दीन औलिया की मज़ार में अमीर ख़ुसरो के बराबर में दफ़नाया गया।
नसीरुद्दीन मुहम्मद शाह रंगीला की मौत के साथ ही मुगलों के इतिहास में एक लम्बा युग बीत गया। मुहम्मद शाह ने ईस्वी 1719 से 1748 तक शासन किया। अकबर एवं औरंगजेब के बाद मुहम्मदशाह भारत के मुगलों में सर्वाधिक दीर्घ अवधि तक शासन कर सका था। अकबर तथा औरंगजेब ने 49-49 वर्ष और मुहम्मदशाह रंगीला ने 29 वर्ष शासन किया था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता



 
                                    
