फीरोजशाह की धार्मिक नीति मजहबी कट्टरता पर आधारित थी। फीरोजशाह तुगलक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। इस्लाम तथा कुरान में विश्वास होने के कारण उसने इस्लाम आधारित शासन का संचालन किया।
फीरोजशाह की धार्मिक नीति
फीरोजशाह की धार्मिक नीति का परिचय उसकी पुस्तक फतुहाते फिरोजशाही से मिलता है-
(1.) अमीरों तथा उलेमाओं की सलाह से शासन
फीरोजशाह तुगलक ने उलेमाओं के समर्थन से राज्य प्राप्त किया था इसलिये उसने उलेमाओं को संतुष्ट रखने की नीति अपनाई तथा उलेमाओं के हाथ की कठपुतली बन गया। वह उलेमाओं से परामर्श लिये बिना कोई कार्य नहीं करता था।
(2.) स्वयं को खलीफा का नायब घोषित करना
वह दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसने स्वयं को खलीफा का नायब घोषित किया।
(3.) कुरान के अनुसार लूट का बंटवारा
फीरोज तुगलक ने युद्ध में मिला लूट का सामान सेना तथा राज्य में उसी अनुपात में बांटने की व्यवस्था लागू की जैसे कुरान द्वारा निश्चित किया गया है, अर्थात् पांचवां भाग राज्य को और शेष सेना को।
(4.) धार्मिक असहिष्णुता की नीति
फीरोजशाह तुगलक ने धार्मिक असहिष्णुता की नीति का अनुसरण किया। उसके शासन काल में हिन्दुओं के साथ बड़ा दुर्व्यवहार होता था। एक ब्राह्मण को सुल्तान के महल के सामने जिन्दा जलवा दिया गया। उस पर यह आरोप लगाया गया कि वह मुसलमानों को इस्लाम त्यागने के लिए उकसाता है।
(5.) हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन
फीरोजशाह तुगलक अपनी हिन्दू प्रजा को मुसलमान बनने के लिए प्रोत्साहित करता था और जो हिन्दू मुसलमान हो जाते थे उन्हें जजिया कर से मुक्त कर देता था। फतुहाते फिरोजशाही में वह लिखता है- मैंने अपनी काफिर प्रजा को पैगम्बर का धर्म स्वीकार करने के लिये उत्साहित किया और मैंने यह घोषित किया कि जो मुसलमान हो जावेगा उसे जजिया से मुक्त कर दिया जावेगा।
(6.) मंदिरों को तोड़ने एवं लूटने की नीति
फीरोज तुगलक ने मध्यकालीन मुस्लिम सुल्तानों की तरह हिन्दू मंदिरों एवं मूर्तियों को तोड़ने एवं लूटने की नीति जारी रखी। उसने जाजनगर में जगन्नाथपुरी तथा नगरकोट में ज्वाला देवी मंदिर के आक्रमण के समय हिन्दुओं के साथ बड़ा दुर्व्यवहार किया। उसने पुरी के जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियां तुड़वाकर समुद्र में फिंकवा दीं। उसने नगर ज्वालादेवी मंदिर की सम्पदा लूटने के लिये नगर कोट पर आक्रमण किया तथा मंदिर को नष्ट करके वहाँ से भारी सम्पदा प्राप्त की।
(7.) ध्वस्त मंदिरों के पुनर्निर्माण पर रोक
फीरोज तुगलक के शासन में जो मंदिर तोड़ दिये जाते थे उनके पुनर्निर्माण पर रोक लगा दी गई थी।
(8.) हिन्दू मेलों पर प्रतिबंध
फीरोजशाह तुगलक ने हिन्दू मेलों पर प्रतिबंध लगा दिया।
(9.) मस्जिदों का निर्माण
फीरोजशाह ने इस्लाम के उन्नयन के लिये मस्जिदों का निर्माण करवाया। बरनी के अनुसार फीरोजशाह ने 40 मस्जिदों का निर्माण करवाया।
(10.) दीवाने खैरात का गठन
फीरोजशाह ने मुसलमानों की पुत्रियों के विवाह में सहायता देने के लिए ‘दीवाने खैरात’ खोला। कोई भी मुसलमान इस कार्यालय में अर्जी देकर पुत्री के विवाह के लिये आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकता था। प्रथम श्रेणी के लोगों को 50 टंक, द्वितीय श्रेणी के लोगों को 30 टंक और तृतीय श्रेणी के लोगों को 20 टंक दिया जाता था। मुस्लिम विधवाओं तथा अनाथों को भी इस विभाग से आर्थिक सहायता मिलती थी।
(11.) मदरसों एवं मकतबों का निर्माण
फीरोजशाह तुगलक ने इस्लाम की शिक्षा के प्रसार के लिए कई मदरसे तथा मकतब खुलवाये। वह इस्लामिक शिक्षा पर विशेष ध्यान देता था। प्रत्येक विद्यालय में मस्जिद की व्यवस्था की गई थी। इन संस्थाओं को राज्य से सहायता मिलती थी। विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति तथा अध्यापकों को पेंशन दी जाती थी। मकतबों को राज्य की ओर से भूमि भी मिलती थी।
(12.) हिन्दू जनता पर धार्मिक कर
उसने कुरान के नियमानुसार जनता पर केवल चार कर- खिराज, जकात, जजिया तथा खाम को जारी रखे। शेष समस्त कर हटा दिये गये।
(13.) ब्राह्मणों पर जजिया कर
अरब आक्रमण के समय से ही ब्राह्मण जजिया कर से मुक्त थे किंतु फीरोज ने उलेमाओं के कहने पर ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगा दिया। शाक्त सम्प्रदाय के हिन्दुओं का उसने विशेष रूप से दमन किया।
(14.) शियाओं के साथ दुर्व्यवहार
न केवल हिन्दुओं, वरन् शिया सम्प्रदाय के मुसलमानों के साथ भी फीरोज का व्यवहार अच्छा नहीं था। शिया मुसलमानों के सम्बन्ध में वह लिखता है- मैंने उन समस्त को पकड़ा और उन पर गुमराही का दोष लगाया। जो बहुत उत्साही थे, उन्हें मैंने प्राणदण्ड दिया। मैंने उनकी पुस्तकों को आम जनता के बीच जला दिया। अल्लाह की मेहरबानी से शिया सम्प्रदाय का प्रभाव दब गया।
(15.) सूफियों के प्रति घृणा
फीरोजशाह तुगलक सूफियों को भी घृणा की दृष्टि से देखता था क्योंकि सूफियों के विचार वेदान्त दर्शन से साम्य रखते थे।
निष्कर्ष
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि फीरोज ने एक कट्टर सुन्नी मुसलमान की भांति शासन किया। उसकी धार्मिक नीतियों के कारण उसके राज्य में हिन्दुओं का जीवन बहुत कष्टमय हो गया था। शियाओं एवं सूफियों के लिये भी सल्तनत की ओर से कोई संरक्षण उपलब्ध नहीं था। इसी कारण बरनी तथा अफीफ ने उसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा की है।
डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है- ‘फीरोज में उस विशाल हृदय तथा व्यापक दृष्टिकोण वाले बादशाह (अकबर) की प्रतिभा का शतांश भी नहीं था जिसने सार्वजनिक हितों का उच्च मंच से समस्त सम्प्रदायों तथा धर्मों के प्रति शान्ति, सद्भावना तथा सहिष्णुता का सन्देश दिया।’
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फीरोजशाह तुगलक की धार्मिक नीति