Monday, October 7, 2024
spot_img

मलिका उज्मानी

मलिका उज्मानी मरहूम बादशाह फर्रूखसीयर की बेटी तथा मरहूम बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला की बेगम थी किंतु उसने अपने खानदान से बदला लेने के लिए लाल किले की शहजादियों एवं बेगमों से बलात्कार करवाए तथा बादशाह शाहआलम (द्वितीय) की आंखें फुड़वा दीं।

बादशाह फर्रूखसियर की बेटी मलिका उज्मानी बाबर के वंशजों के लिए वंश-घातिनी सिद्ध हुई। वह शहंशाह औरंगजेब की परपौत्री, शहजादे अजीमुश्शान की पौत्री तथा शहंशाह फर्रूखसियर की बेटी होने के साथ-साथ अपने चचेरे भाई बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला की मुख्य बेगम थी। उससे अपेक्षा की जाती थी कि वह मुगलिया खानदान की हिफाजत करेगी तथा उसे सभी खतरों से बचाएगी।

शाही हरम की समस्त औरतें या तो उसकी बुआएं, बहनें, भतीजियां और प्रपौत्रियां लगती थीं या फिर उसकी बहुएं किंतु बदले की आग में झुलस रही मलिका उज्मानी ने मुगलिया खानदान को जहरीली नागिन की तरह डस लिया। मुगलिया हरम के शहजादे भी मलिका उज्मानी के चाचा, भाई, भतीजे या पौत्र लगते थे किंतु मलिका उज्मानी ने किसी भी रिश्ते की परवाह नहीं की थी।

मलिका उज्मानी ने रूहेला अमीर गुलाम कादिर को लाल किले पर चढ़ाई करवाकर बाबरी खानदान के शहजादों एवं शहजादियों के साथ जो वीभत्स बलात्कार और हत्या काण्ड करवाया उसे देखकर सम्पूर्ण मानवता को अपने होने पर शर्म आ जाए किंतु मलिका उज्मानी को नहीं आई।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

आती भी कैसे! आखिर तो उसकी नसों में तैमूरी और चंगेजी खून जोर मार रहे थे। मध्य एशिया के दो बर्बर राजाओं के रक्त मिश्रण से उत्पन्न बाबरी खानदान अपने ही वंश के शहजादों को मारने और जेलों में बंद करके रखने के लिए कुख्यात था। इसलिए मलिका उज्मानी ने जो कुछ भी किया, वह मुगलिया खानदान के खून की तासीर का ही असर था।

तत्कालीन इतिहासकारों ने लिखा है कि गुलाम कादिर ने अपदस्थ बादशाह शाहआलम (द्वितीय) के 19 बेटों को जेल में बंद करके भयानक यातनाएं दीं। कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि लाल किले पर ढाई माह के अधिकार के दौरान गुलाम कादिर ने शाहआलम के 22 पुत्र-पुत्रियों को मार डाला। कुछ स्रोतों के अनुसार शाहआलम के 16 पुत्र तथा 2 पुत्रियां थीं। अतः अनुमान किया जा सकता है कि मारे जाने वालों में शाहआलम के पोते-पोती भी रहे होंगे।

जब महादजी सिंधिया को लाल किले में हुए इस घटनाक्रम की जानकारी मिली तो वह सन्न रह गया। बादशाह शाहआलम ने समय रहते ही महादजी सिंधिया को गुलाम कादिर के हमले की जानकारी दी थी किंत महादजी सिंधिया मध्य भारत के अभियान में व्यस्त होने के कारण न तो स्वयं दिल्ली पहुंच सका था और न अपनी सेना को भेज सका था।

लाल किले की दर्दभरी दास्तान - bharatkaitihas.com
TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

पश्चाताप और ग्लानि बोध से भरा हुआ महादजी सिंधिया अपनी सेना लेकर दिल्ली पहुंचा। पाठकों को महादजी सिंधिया के बारे में कुछ बताना समीचीन होगा। महादजी सिंधिया ग्वालियर राज्य के संस्थापक रानोजी सिंधिया का पुत्र था एवं इस समय ग्वालियर का शासक था। अठारहवीं सदी के भारत में महादजी सिंधिया एक महान योद्धा हो गया है। वह पेशवा के तीन प्रमुख सेनापतियों में से एक था। पानीपत के युद्ध में मराठा शक्ति को हुई क्षति के बाद मध्य भारत एवं दिल्ली की राजनीति में मराठों को पुनर्स्थापित करने में महादजी सिंधिया की बड़ी भूमिका थी।

जब मुगल बादशाह शाहआलम (द्वितीय) ई.1665 से ई.16671 तक अवध में रहकर निर्वासन काट रहा था, तब महादजी सिंधिया ही बादशाह को अंग्रेजों की दाढ़ में से निकालकर फिर से लाल किले में लाया था और उसे लाल किले एवं दिल्ली पर अधिकार दिलवाया था। महादजी सिंधिया ने ही रूहेलों की गतिविधियों पर विराम लगाकर दिल्ली में शांति स्थापित की थी तथा रूेहलखण्ड को लूटकर गुलाम कादिर के पिता जाबिता खाँ को दण्डित किया था।

जब शाहआलम फिर से लाल किले में लौटा था, तब उसने महादजी सिंधिया को अपना वकीले मुतलक अर्थात् मुख्य वजीर नियुक्त किया था तथा उसे अमीर-उल उमरा की उपाधि दी थी जिसका अर्थ होता है, सभी अमीरों का मुखिया।

इस काल में बादशाह द्वारा दी जाने वाली ये उपाधियां केवल पाखण्ड बन कर रह गई थीं। वास्तविकता यह थी कि इस काल में शाहआलम महादजी सिंधिया का संरक्षित बादशाह था। इसलिए महादजी सिंधिया के रहते यह संभव नहीं था कि दिल्ली पर उसकी मर्जी के खिलाफ कोई मुगल शहजादा या अन्य शक्ति शासन कर सके। यही कारण था कि जैसे ही महादजी को यह समाचार मिला कि शाहआलम को दिल्ली के तख्त से उतार कर बीदर बख्त को बादशाह बना दिया गया है तो महादजी विशाल सेना लेकर दिल्ली आया।

महादजी सिंधिया ने पूरी दिल्ली में रूहेलों का कत्लेआम मचाया तथा अंत में गुलाम कादिर को भी मार डाला। रूहलों द्वारा दिल्ली के तख्त पर बैठाए गए बादशाह बीदरबख्त को पकड़ कर कैद कर लिया गया तथा शाहआलम को फिर से बादशाह बना दिया गया।

इस प्रकार 18 जुलाई 1788 से 2 अक्टूबर 1788 तक बीदरबख्त उर्फ जहानशाह मुगलों का बादशाह हुआ। तख्त से उतारे जाने के बाद बीदरबख्त ई.1790 तक जेल में पड़ा सड़ता रहा और अंत में बादशाह शाहआलम (द्वितीय) के आदेशों से मार दिया गया। उसकी मृत्यु से लगभग एक वर्ष पूर्व ही ई.1789 में मलिका-उज्मानी भी मर गई। उस समय मलिका 86 वर्ष की वृद्धा हो चुकी थी।

इस प्रकार ई.1788 में मराठों ने दिल्ली को अपने नियंत्रण में ले लिया। 11 सितम्बर 1803 को ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सेनापति जनरल गेरार्ड लेक ने दिल्ली पर आक्रमण किया। इस समय दिल्ली पर महादजी सिंधिया के उत्तराधिकारी दौलतराव शिंदे का अधिकार था। जब कम्पनी की सेना पटपड़गंज तक आ गई तो दौलतराव तथा उसके फ्रैंच सेनापति लुई बोरकिन ने मोर्चो संभाला।

हुमायूँ के मकबरे से थोड़ी दूर पटपड़गंज में दोनों तरफ की सेनाओं में भारी मुकाबला हुआ। यमुना के जिस तरफ लाल किला मौजूद है, उस तरफ मराठों की स्थिति काफी मजबूत थी किंतु जनरल लेक ने यमुनाजी को पार करके शीघ्र ही मराठों को पीछे धकेल दिया।

इस युद्ध में जनरल लेक के लगभग 4500 सिपाहियों ने भाग लिया था जबकि मराठों के पास 17 हजार सैनिक थे, फिर भी जनरल लेक की रणनीति के आगे मराठों की भारी पराजय हुई। तीन दिन की लड़ाई के बाद दिल्ली पर अंग्रेजी सेनाओं का अधिकार हो गया और मराठे दिल्ली छोड़कर भाग गए।

इस युद्ध में अंग्रेजी सेना के लगभग 485 सैनिक मारे गए या घायल हुए जबकि मराठों के लगभग 3000 सैनिक मारे गए या घायल हुए। युद्ध की समाप्ति के बाद अंग्रेजों ने पटपड़गंज में उन अंग्रेज सैनिकों की स्मृति में एक स्मारक बनवाया जो इस युद्ध में काम आए थे।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source