Sunday, March 23, 2025
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सोहनप्रसाद मुदर्रिस का मुकदमा

जब अंग्रेजी न्यायालय में सोहनप्रसाद मुदर्रिस का मुकदमा चला तो इस मुकदमे का खर्च जुटाने के लिए भारत की जनता से चंदा मांगा गया। भारत के समस्त राजाओं, सेठों एवं जनसामान्य से अपील की गई कि वे हिन्दी भाषा की रक्षा के लिए आगे आएं तथा मुक्त हृदय से चंदा उपलब्ध करवाएं ताकि इस मुकदमे को अंतिम क्षण तक लड़ा जा सके।

सोहनप्रसाद मुदर्रिस की पुकार हिन्दूधर्म की पुकार बन गयी। सोहनप्रसाद मुदर्रिस का मुकदमा हिन्दू जाति की अस्मिता का प्रश्न बन गया। मुकदमे में सहायता के लिए चन्दा भेजने और समर्थन में पत्र लिखने का तांता बंध गया। दाउदनगर से चन्दा देने वालों की एक पूरी सूची भेजने वाले ‘सत्यवक्ता’ ने अपने पत्र में खेद व्यक्त करते हुए लिखा कि उनके नगर के कई धनवानों ने बहुत थोड़ा चन्दा दिया, कइयों ने तो कुछ भी नहीं दिया, हाय! हाय! हमारे आर्यधर्म की ऐसी दशा?’ 

बनारस जिले के बड़गाँव के मास्टर मुंशी लक्ष्मणप्रसाद ने सोहन प्रसाद का हौसला बढ़ाते हुए लिखा- ‘भैया, मैं भी आपकी विपत्ति का साथी हूँ. यदि हम लोग आपकी सहायता नहीं करेंगे तो क्या मलेच्छ और ईसाई आपको उबारेंगे?’

कामठी (नागपुर) के डी. एम. वी. स्कूल के हैडमास्टर अम्बाप्रसाद पांडे ने सेठ-साहूकारों, वकीलों और अध्यापकों का आह्वान किया कि वे इस धर्मकार्य में आगे बढ़कर हिस्सा लें क्योंकि यदि सोहन प्रसाद द्वारा लिखित पुस्तकें जला दी गयीं तो हिन्दू बंधुओं को महाशोक और लज्जा का कारण होगा। 

इस काल में गौरक्षा और रामनवमी के जुलूस के मार्ग को लेकर होने वाले विवादों की तरह हिन्दू प्रतिष्ठा का महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन चुके इस मुकदमे में सोहन प्रसाद के समर्थन में छपने वाले पत्रों में मुसलमानों को यवन, मलेच्छ, मियांभाई, मुसल्ले और मलेच्छ मंडली कहकर सम्बोधित किया जाता था और हिन्दुओं को आर्य। इन पत्रों में सोहन प्रसाद परम देशहितैषी बन गये और उनकी सहायता में आगे आने वाले लोग उदार चरित वाले महाशय कहलाने लगे।

दूर और पास, सभी स्थानों से चन्दा भेजा जाने लगा। चन्दा सीधे सोहन प्रसाद को भेजा जाता था या फिर ‘भारत जीवन’ के पते पर। भारत जीवन ने इसके लिए बनारस बैंक में एक अलग खाता खोल लिया। अब ऐसा लगने लगा कि पूरा देश सोहनप्रसाद मुदर्रिस का मुकदमा लड़ रहा था।

एक पत्र-लेखक ने लिखा कि चन्दे के जमा-खर्च का हिसाब भारत जीवन में होना मुनासिब है। उसने ध्यान दिलाया कि मुंशी इन्द्रमणी मुरादाबादी के केस में बहुत सा चन्दा ‘भारत जीवन’ से होकर मिला था। जब आर्यसमाज ने मुंशीजी से हिसाब माँगा तो उन्होंने नहीं दिया।  सोहन प्रसाद ने अपील निकाली कि चन्दा सीधे उनके वकील बाबू गोरखप्रसाद को भेजा जाये।

विभिन्न शहरों में स्थानीय संस्थाओं और नागरिकों ने अपनी बैठकों में सोहन प्रसाद के लिए चन्दा जमा करने के प्रस्ताव पारित किये। दाउदनगर सुजन समाज ने बाबू लालजी प्रसाद कोठीवाल के कहने पर प्रस्ताव पास किया कि जो मनुष्य अपने धर्म का पक्ष करके दुःख में पड़े, उसकी सहायता अवश्य कर्त्तव्य है। सोहनप्रसाद मुदर्रिस का मुकदमा हम सबका मुकदमा है।

आर्यसमाज के गढ़ अजमेर में कॉलेज के अध्यापकों और सरकारी पाठशाला के छात्रों की सभा हुई जिसमें परम देशहितैषी एक आर्य भाई पर अकारण विपत्ति आते देखकर द्रव्य इकट्ठा करने का उद्योग किया गया।  सबसे उत्तेजक पत्र पं. विजयानन्द का छपा। बनारस में सनातनी ब्राह्मणों के गढ़ भदैनी मुहल्ले के निवासी पं. विजयानन्द उस काल में गोरक्षा और हिन्दी आन्दोलन की सबसे अगली कतार में थे।

न्यायिक अभियोजन में सोहन प्रसाद के बचाव और समर्थन में उठे आन्दोलन को और तेज करने के लिए पं. विजयानन्द ने 14 सितम्बर 1885 के भारत जीवन में एक अपील छपवायी। ‘सात पाँच की लाठी, एक जने का बोझ’ शीर्षक से छपी इस अपील में उन्होंने लिखा-

‘हमारे निर्मम बैरी मुसलमान भाइयों ने गोरखपुर के मजिस्ट्रेट साहब की इजलास में हिन्दुओं पर चढ़ाई की है। इन मुसल्लों की चढ़ाई सोहन प्रसाद के नाम से हिन्दू जाति मात्र पर है न कि एक उन्हीं पर….। आप लोग जानते ही हैं कि इस भारत में मुसलमान भाई केवल तेरहवाँ हिस्सा हैं। यदि हिन्दू सभी एक मन और एक जन होकर लड़ाई को तैयार हों तो एक-एक मुसल्लों की छाती पर तेरह-तेरह हिन्दू भूत सवार हो जायेंगे….।’

पं. विजयानन्द का यह पत्र इस बात का प्रमाण है कि उस काल में भारत में मुसलमानों की जनसंख्या केवल साढ़े सात प्रतिशत थी। फिर भी उस काल के हिन्दू मुसलमानों के उभार से परेशान थे।

इस अपील में पं. विजयानन्द ने लिखा- ‘हिन्दुओं की संख्या ज्यादा होने पर भी मुसलमान निडर बने हुए हैं तो इसकी वजह उनको यह गुमान है कि उनमें एका बहुत है, इसलिए हिन्दू ज्यादा होकर भी क्या कर लेंगे? उनके इस भ्रम को दूर कर देना होगा। अब तो ईश्वर की कृपा से हम लोगों का तिरोहित जातीय बल दिन दूना, रात चौगुना बढ़ रहा है। अब इनके नाने-मामे का राज नहीं है कि हम लोग उचित कहते हुए भी हलाल किये जायेंगे। अब तो यह राज्य न्यायप्रिय गवर्नमेंट का है।’

विजयानन्द ने लोगों से चंदा देने की अपील करते हुए लिखा कि मुसलमान भाई आपस में चन्दा करके जहाँ तक धन बटोरेंगे, उतने ही में हम हिन्दू तेरह गुना बटोर सकते हैं…. हम लोग एक-एक कंकरी उठाकर फेंक दें तो उतने ही में एक-एक मलेच्छ की छाती में तेरह-तेरह छेद हो सकते हैं….. फिर ऐसे बल के रहते भी यदि हम लोग एकमत नहीं होते तो हिन्दू कहलाने को धिक्कार है।’

विजयानन्द ने हिन्दी की सभी पत्र-पत्रिकाओं के ग्राहकों को ‘हिन्दू’ मानते हुए उन्हें एक-एक या आधा-आधा आना चन्दा भारत जीवन कार्यालय में भेज देने को कहा ताकि बड़ी विपत्ति से जातीय गौरव की रक्षा हो सके। विजयानन्द की दृष्टि में मुकदमे की हार-जीत से भी बड़ा प्रश्न जातीय गौरव की रक्षा का था- ‘हमें इस समय मुकदमे की हार-जीत पर उतना खेद अथवा हर्ष नहीं है, जितना भावी दुःख का खेद है। बुड्ढे के मरने का भय नहीं, किन्तु यमदूतों के घर देख जाने का डर है।’

अंत में एक आना चन्दे को ‘जातीय प्रतिष्ठा की रक्षार्थ भिक्षा’ कहते हुए विजयानन्द ने हिन्दुओं को ललकारकर कहा- ‘देखें, आप लोगों में कहाँ तक हिन्दूपन की ममता है।’

इतनी ही प्रभावशाली एक दूसरी अपील चम्पारन में बगहा की विद्याधर्म्मवर्धिनी सभा के प्रधान मंत्री चन्द्रशेखर मिश्र ने निकाली- ‘सोहन प्रसाद का मुकदमा और आर्यों का कर्त्तव्य’। यह अपील ‘भारत जीवन’ में 14 सितम्बर 1885 को छपी।

विजयानन्द तथा चन्द्रशेखर मिश्र की अपीलों में अंतर यह था कि जहाँ पं. विजयानन्द ब्रिटिश गवर्नमेंट को ‘न्यायप्रिय’ मानकर सन्तुष्ट थे, वहीं चन्द्रशेखर मिश्र ने ब्रिटिश शासन की आलोचना भी की।

चन्द्रशेखर ने सबसे पहले सोहन प्रसाद पर हुए मुकदमे से आर्यों को पहुँचे कष्ट का उल्लेख किया। इसके बाद मुस्लिम देशों की एकता और उनकी तुलना में हिन्दुओं की निरीहता सम्बन्धी प्रचलित धारणा को दोहराया।

मुसलमानों का सामना करने के लिए उन्होंने सरकार से न्याय पाने के भरोसे रहने की बजाय, न्याय के लिए आन्दोलन खड़ा करने पर बल दिया। चन्द्रशेखर ने लिखा कि जो लोग यह आस लगाये बैठे हैं कि सरकार पूरा न्याय करेगी ही, हम लोगों के आन्दोलन की क्या आवश्यकता, उनकी यह आस निर्मूल है- ‘टेढ़ जानि सब बंदइ काहू, वक्र चन्द्रमा ग्रसै न राहू।’

उनके कहने का आशय यह था कि सरल व्यक्ति की कोई पूछ नहीं होती। सब लोग टेढ़े चंद्रमा की पूजा करते हैं। टेढ़े चंद्रमा को तो राहू भी नहीं ग्रसता। अतः हमें अपनी सरलता त्यागकर कठोरता धारण करनी होगी।

हिन्दुओं को क्यों राजनीतिक रूप से एकजुट हो जाना चाहिए, इसे समझाते हुए चन्द्रशेखर ने लिखा- ‘मुसलमान जाति जबर्दस्त और कट्टर है, उसकी सहायता में अरब, रूस, मिस्र, फारस और अफगानिस्तान आदि देशों तथा हिन्दुस्तान में भी हैदराबाद आदि के महाशय हैं, और इधर हिन्दू जाति के बाहर के तो किसी प्रकार के सहायक हैं ही नहीं। भारतवर्ष में दशांश में भी एकता नहीं है, अव्वल निरीह, दरिद्र अलग ही ठहरे।’

चन्द्रशेखर ने ब्रिटिश शासन को मुसलमानों का पक्षपाती ठहराते हुए, अंग्रेजी शासन में हिन्दुओं के साथ हुए धार्मिक अन्याय के कई उदाहरणों की याद दिलायी, जैसे भारत में क्रिस्तानों का बढ़ना, शिक्षा विभागों का धर्मनाशक प्रबन्ध, हाईकोर्ट में शालिग्राम की मूर्ति लाने की आलोचना करने पर सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी पर मुकदमा और मुंशी इन्द्रमणी की पुस्तकों के विरुद्ध अभियोग (मुकदमा)। अतएव यह कभी नहीं कह सकते कि सरकार से केवल न्याय ही मिल जायेगा, कुछ विशेष आन्दोलन की आवश्यकता नहीं।’

सोहन प्रसाद के अभियोग को आर्यों की धार्मिक निष्ठा जाँचने की कसौटी बनाते हुए चन्द्रशेखर ने हिन्दूओं का आह्वान किया- ‘यदि अपने पवित्र धर्म पर विश्वास हो, यदि असम्भव और अपवित्र अधर्मों से घृणा (नफरत) हो, हाँ, यदि स्वप्न में भी आर्य (हिन्दू) बनना चाहते हों, यदि किसी एक शिरा (रग) में एक बूँद भी आर्य (हिन्दू) रक्त प्रवाहित हो, तो आर्यों के लिए कोमल वाणी से हित कहने वाले (सोहन प्रसाद मुदर्रिस) की तन-मन-धन से सहायता करने में न चूकिये।’

नफरत, हिन्दू और रग जैसे शब्द जनसाधारण द्वारा बोलचाल में अधिक प्रयुक्त होने पर भी, चन्द्रशेखर मिश्र ने इन्हें उर्दू के शब्द होने के कारण उनके स्थान पर संस्कृत पर्याय दिए तथा उर्दू के शब्दों को कोष्ठक में लिखा। उन्होंने खेद प्रकट किया कि एक निरपराध को फँसाने के लिए मलेच्छ मंडली सक्रिय हो गयी है और हिन्दू अपनी जाति को अधःपतन, पददलित एवं दुर्दशाग्रस्त होते जाने से बचाने का कोई प्रयत्न नहीं कर रहे। अपील का अन्त इस वाक्य से हुआ- ‘अपने धर्म, अपने मान की रक्षा हेतु धन दीजिए।’

विजयानन्द और चन्द्रशेखर मिश्र की अपीलों से सोहन प्रसाद के लिए चन्दा भेजने की गति कुछ तेज हुई। पश्चिमोत्तर प्रान्त के साथ-साथ बंगाल, पंजाब, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र तथा आसाम तक से चन्दा भेजा गया। कुल 479 व्यक्तियों ने चन्दा भेजा। भारत जीवन के पते पर भेजी गयी चन्दे की राशि लगभग पाँच सौ रुपये की हुई। अर्थात् औसतन प्रतिव्यक्ति एक रुपए चार पैसे चंदा भेजा गया।

यह राशि वाद (मुकदमे) को लड़ने के लिए पर्याप्त थी। चन्दा भेजने वालों में कई महत्त्वपूर्ण व्यक्ति थे, जैसे वृन्दावन के राधाचरण गोस्वामी, जबलपुर के ऑनरेरी मजिस्ट्रेट सेठ बागरमल रईस, बेतिया के महाराजाधिराज, रायपुर के महाराजा नरहरदेव बहादुर और महाराजा कालाकांकर। इटावा जिले में मलौसी की जमींदार ठकुरानी और एक विधवा ब्राह्मणी ने भी चन्दा भेजा।

जिन संस्थाओं ने प्रस्ताव पारित करके स्थानीय स्तर पर चन्दा जमा करके भेजा, उनमें दाउदनगर सुजन समाज, अजमेर गवर्नमेंट कॉलेज, फर्रुखाबाद आर्यसमाज, विद्याधर्मवर्धिनी सभा बगहा, विद्यावर्धिनी सभा बलुआ (गोरखपुर), आर्यसमाज कटनीमुखारा (जबलपुर), डिबेटिंग क्लब और एंग्लोवर्नाकुलर स्कूल कामठी (नागपुर) एवं देशहितैषी सभा, छपरा (बिहार) सम्मिलित थीं।

अनेक महत्त्वपूर्ण लोग ऐसे भी थे जिन्होंने ने चन्दा तो नहीं भेजा किंतु अपना समर्थन व्यक्त किया, जो कि सोहन प्रसाद मुदर्रिस के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण था। इनमें प्रयाग हिन्दू समाज के मन्त्री काशी प्रसाद, प्रयाग आर्यसमाज के मन्त्री पं. समर्थदान, बलिया आर्य देशोपकारिणी सभा के मन्त्री पं. इंदिरादत्त जू और खड़गविलास प्रेस (बांकीपुर) के मैनेजर बाबू साहिब प्रसाद सिंह सम्मिलित थे।

डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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