Sunday, December 8, 2024
spot_img

लॉर्ड डलहौजी का शिकंजा

देशी रियासतों पर लॉर्ड डलहौजी का शिकंजा बड़ी तेजी से कसता चला गया। लाल किला भी इससे अछूता नहीं रहा। इस कारण लाल किले का असंतोष अंग्रेजों की तरफ चिन्गारी बनकर बढ़ने लगा!

ई.1848 से 1855 तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी के गवर्नर जनरल रहे लॉर्ड डलहौजी ने भारत के उन्नीसवें मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को दिल्ली का लाल किला खाली करके महरौली में जाकर रहने के लिए कहा था। जब ई.1856 में लॉर्ड केनिंग गवर्नर जनरल हुआ तो उसने बादशाह की इच्छा के विरुद्ध, शहजादे मिर्जा कोयास को बादशाह का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

कम्पनी के अधिकारियों द्वारा मिर्जा कोयास से संधि की गई कि शहजादा अपने पिता बहादुरशाह की मृत्यु के बाद दिल्ली का लाल किला खाली कर देगा, स्वयं को बादशाह नहीं कहेगा तथा एक लाख रुपये के स्थान पर 15 हजार रुपये मासिक पेंशन स्वीकार करेगा। लॉर्ड डलहौजी तथा लॉर्ड केनिंग द्वारा की गई इन कार्यवाहियों से भारत के मुसलमानों में अँग्रेजों के विरुद्ध असन्तोष उत्पन्न हो गया।

ऐसा नहीं था कि अंग्रेजों द्वारा यह व्यवहार केवल मुगल बादशाह के साथ किया गया था, अंग्रेजों की यह छीना-झपटी पूरे देश में एक जैसी चल रही थी। पिछले सौ सालों में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सरकार ने भारत वर्ष की विशाल भूमि पर अपना शिकंजा कस लिया था। जिसके कारण रानी विक्टोरिया का भारतीय उपनिवेश उत्तर में हिमालय पर्वत से लेकर दक्षिण में हिंद महासागर तक और पश्चिम में हिन्दूकुश पर्वत से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी से आगे बर्मा तक विस्तृत हो गया था।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

इस समय तक भारत का लगभग आधा क्षेत्र ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रत्यक्ष शासन के अधीन था जबकि लगभग आधे भारत पर राजे-महाराजे नवाब एवं बेगमों के छोटे-बड़े लगभग 550 राज्य थे। इन देशी राज्यों को कम्पनी ने अधीनस्थ सहायता के समझौतों से अपने अधीन कर रखा था जिनके माध्यम से कम्पनी सरकार ने इन राज्यों पर शिकंजा कस लिया था।

लाल किले की दर्दभरी दास्तान - bharatkaitihas.com
TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

कम्पनी सरकार द्वारा समस्त देशी राज्यों की सेनाएं समाप्त कर दी गई थीं। उन राज्यों में कम्पनी सरकार अपनी सेनाएं रखती थी जिनका व्यय देशी राज्यों को उठाना होता था। कम्पनी ब्रिटिश अधिकारियों को इन राज्यों में अपना एजेण्ट बनाकर भेजती थी जो इन राज्यों में निरंकुश शासन करते थे। औरंगजेब की मृत्यु के बाद जो भारत बिखर कर अलग-अलग राज्यों में बंट गया था वह डलहौजी के षड़यंत्रों से फिर से एक राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत आ गया। भारत का यह एकीकरण मुगल काल में हुए एकीकरण की ही तरह बहुत दुःखदायी था।

भारत की आत्मा फिर से परतंत्रता की बेड़ियों में बंधकर सिसक उठी। भारतवासी अपने ही देश में एक बार फिर नए मालिकों के गुलाम हो गये। ई.1825 में सर जॉन स्टुअर्ट मिल ने इस बात की वकालात की थी कि देशी राज्यों को समाप्त कर दिया जाना चाहिए किंतु कम्पनी के पुराने प्रशासक इस बात से सहमति नहीं रखते थे। सर जॉन मैल्कम ने इस विचार का पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि देशी राज्य हमारी दया पर निर्भर हैं तथा वे ही भारत में हमारी वास्तविक शक्ति हैं। इस शक्ति का अनुमान हमें तब तक नहीं होगा जब तक कि हम उसे खो न देंगे।

फिर भी भारत में नियुक्त अंग्रेज अधिकारियों ने बड़ी तेजी से देशी राज्यों को हड़पना आरम्भ कर दिया। डलहौजी के आने से पहले ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने माण्डवी, कोलाबा, जालौन, सूरत, एंगुल, अरकोट, गुलेर, जैन्तिया, जैतपुर, जसवान, कचारी, कांगड़ा, कन्नूर, किट्टूर, कोडागू, कोझीकोड, कुल्लू, कुरनूल, कुटलेहार, मकराई, सम्बलपुर, सतारा, सीबा, तुलसीपुर, छत्तीसगढ़ की उदयपुर तथा मेरठ आदि राज्यों, जागीरों एवं नगरों को अंग्रेजी राज्य में सम्मिलित कर लिया था।

इन राज्यों को युद्धों में नहीं जीता गया था, अपितु इन राज्यों के राजाओं के मर जाने पर अथवा उसके उत्तराधिकारी के न रहने पर अंग्रेजों द्वारा हड़प लिया गया था।

डलहौजी ने डॉक्टराइन ऑफ लैप्स को कम्पनी सरकार का आधिकारिक दस्तावेज बना दिया। लॉर्ड डलहौजी का शिकंजा भारतीय राज्यों को नए सिरे से हड़पने और ब्रिटिश साम्राज्य के क्षेत्र को तेजी से बढ़ाने के लिए पूरे भारत पर कसा जाने लगा। डलहौजी ने कर्नाटक एवं तंजौर के शासकों की उपाधियाँ एवं पेंशनें बन्द कर दीं।

डलहौजी ने पेशवा नाना साहब (द्वितीय) की भी पेंशन बंद कर दी तथा बांदा, नारगुण्ड, रामगढ़ और झाँसी के राज्य हड़प लिए। लॉर्ड डलहौजी ने राजपूताना के करौली राज्य को भी हड़प लिया किंतु करौली किसी तरह अंग्रेजों के चंगुल से बच निकला। अवध अँग्रेजों का सर्वाधिक पुराना और घनिष्ठ मित्र राज्य था किन्तु ई.1856 में उसका भी अपहरण कर लिया गया।

जैसे-जैसे लॉर्ड डलहौजी का शिकंजा आगे बढ़ता गया, वैसे-वैसे समस्त देशी रजवाड़े ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राज्य को भारत से उखाड़ फैंकने के लिए तत्पर हो गए, विशेषकर वे जिनके राज्य ब्रिटिश क्षेत्रों में मिला लिये गये थे अथवा जिनकी पेंशनें जब्त कर ली गई थीं।

भारत के राजे-महाराजे और नवाब ईस्ट इण्डिया कम्पनी से जितने नाराज थे, उससे कहीं अधिक नाराज देशी राज्यों के छोटे जागीरदार थे। इस काल के देशी राज्यों में हजारों छोटी-छोटी जागीरें विद्यमान थीं। इन जागीरों के स्वामी जागीरदार, ठाकुर एवं सामंत कहलाते थे। ये जागीरदार अपने क्षेत्र के किसानों से भू-राजस्व वसूल करते थे तथा एक निश्चित राशि अपने राज्य के राजा, नवाब अथवा बेगम को चुकाते थे।

इनमें से बहुत से जागीरदार इतने मजबूत थे कि वे अपने राजा की अवहेलना करते थे। इसलिए लॉर्ड डलहौजी का शिकंजा जागीरदारों की उच्छृंखलता एवं मनमानी पर लगाम लगाकर उन पर बहुत कठोरता से नियंत्रण स्थापित करने लगा। बहुत से जमींदारों के पट्टों की जांच करके उनकी जमीनें छीन लीं।

बम्बई के इमाम कमीशन ने लगभग 20 हजार जागीरी भूमियों का अपहरण कर लिया। विलियम बैंटिक ने बहुत से लोगों से माफी की भूमियां छीन लीं। इस प्रकार भारत में उस काल के तथाकथित कुलीन वर्ग को अपनी सम्पत्ति एवं आमदनी से हाथ धोना पड़ा। इससे कुलीन वर्ग क्रुद्ध हो गया।

राजाओं एवं जागीरदारों से भी अधिक आक्रोश उन भारतीय सिपाहियों में था जो अंग्रेजों के दोहरे मानदण्डों से असंतुष्ट थे। एक साधारण भारतीय सैनिक का वेतन सात या आठ रुपये मासिक होता था। इस वेतन में से रसद एवं वर्दी के व्यय की कटौती होती थी।

भारतीय सूबेदार का वेतन 35 रुपये मासिक था, जबकि अँग्रेज सूबेदार को 195 रुपये मिलते थे। यद्यपि कम्पनी की सेना में भारतीय सैनिकों की संख्या अधिक थी किन्तु सैनिक खर्च का आधे से अधिक भाग अँग्रेज सैनिकों पर खर्च होता जाता था।

भारतीय सैनिकों के लिए पदोन्नति के अवसर नहीं के बराबर थे। जब भारतीय सैनिक की पदोन्नति का अवसर आता था तो उसे इनाम देकर सेना से अलग कर दिया जाता था। इस अंतर से दुखी होकर ई.1806 से 1855 तक भारतीय सैनिकों ने कई बार विद्रोह किये।

अंग्रेज अधिकारियों ने विद्रोही सैनिकों को भीषण यातनाएँ दीं, उन्हें गोली से उड़ा दिया तथा उनकी कम्पनियां भंग कर दीं। इससे सैनिकों के साथियों में असंतोष को हवा मिली तथा उनका कम्पनी सरकार पर से भरोसा उठने लगा।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source