Saturday, July 27, 2024
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बीबीघर का हत्याकाण्ड

बीबीघर का हत्याकाण्ड अठ्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के दौरान हुई एक बड़ी ही शर्मनाक घटना है जिसने भारतीय क्रांति के सैनिकों को कलंकित किया तथा अंग्रेजों को भारतीय सैनिकों का शत्रु बना दिया।

नाना साहब पेशवा ने अंग्रेजों से कानपुर मुक्त करवाकर अंग्रेज अधिकारियों को छूट दी थी कि वे अपने परिवारों को लेकर इलाहाबाद चले जाएं। इसके लिए नाना साहब ने 40 नावों का प्रबंध किया था। जब अंग्रेज अधिकारी एवं उनके परिवार नावों में बैठ रहे थे, तभी नील कॉलम नामक ब्रिटिश अधिकारी इलाहाबाद से नई सेना लेकर आ गया और पेशवा तथा अंग्रेज सेना में गोलीबारी आरम्भ हो गई।

इसके बाद पेशवा की सेना ने लगभग 450 अंग्रेज सैनिकों को मार डाला तथा कुछ अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिवारों की औरतों एवं बच्चों को पकड़कर सवादा महल में ले आई। अंग्रेज अधिकारियों को सवादा हाउस के प्रांगण में धरती पर बैठा दिया गया।

जब भारतीय सिपाही अंग्रेज अधिकारियों को मारने के लिए उद्धत हुए तो अंग्रेज औरतें उनके साथ लिपट गईं तथा जिद करने लगीं कि हमें भी हमारे पति के साथ मारा जाए। भारतीय सिपाहियों ने इन अंग्रेज औरतों को खींच कर अलग कर दिया।

ब्रिटिश अधिकारी चैपलेन मॉनस्रिफ ने नाना साहब से याचना की कि उन्हें मरने से पहले प्रार्थना करने दी जाए। नाना ने उन्हें प्रार्थना करने की अनुमति दे दी। इन ब्रिटिश अधिकारियों को बंदूकों एवं तलवारों से मार दिया गया।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

उसी रात को समस्त अंग्रेज महिलाओं और बच्चों को नाना साहब के बीबी घर में रहने के लिए भेज दिया गया तथा उन्हें नाना साहब की रखैल हुसैनी खाना के संरक्षण में रख दिया गया। हुसैनी खाना के अधीन नाना साहब के कुछ सैनिक भी नियुक्त किए गए।

रात्रि में व्हीलर्स की बोट से बचाए गए कुछ और अंग्रेज महिलाएं एवं बच्चे लाए गए। फतेहगढ़ से भी कुछ अंग्रेज महिलाएं एवं बच्चे पकड़ कर लाए गए। उन्हें भी कानपुर के बीबी घर में लाकर बंद कर दिया गया। नाना साहब इन अंग्रेज औरतों एवं बच्चों का उपयोग अंग्रेजों से संधि के समय अपनी शर्तें मनवाने में करना चाहता था।

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अंग्रेज महिलाओं के साथ अतिथियों की तरह व्यवहार किया गया उन्हें इलाहाबाद भेजने की तैयारी की जाने लगी। कुछ ही दिनों में जनरल हैवलॉक तथा नील इलहाबाद से अंग्रेजी सेनाओं के साथ आ धमके। मेजर रेनॉड एवं जेम्स नाइल भी अपनी सेनाएं लेकर आ गए। अंग्रेजी सेनाएं सती चौरा (अथवा सतीचूरा) घाट पर हुए गोलीकाण्ड का बदला लेने के लिए भारतीय सैनिकों एवं निरीह लोगों को मारने लगी। नाना साहब ने उन पर दबाव बनाना आरम्भ किया कि वे इलाहाबाद लौट जाएं किंतु अंग्रेजी सेनाएं कानपुर की तरफ बढ़ती रहीं। नाना साहब एवं अंग्रेज सेनाओं में कई स्थानों पर युद्ध हुआ जिनमें दोनों ओर के बहुत से सिपाही मारे गए।

हैवलॉक तथा नील की सेनाओं ने अपने मार्ग में पड़ने वाले गांवों पर भयानक अत्याचार करने आरम्भ कर दिए। 15 जुलाई को जनरल हैवलॉक की सेना ने नाना साहब के भाई बाला राव की सेना को परास्त कर दिया। 16 जुलाई को जनरल हैवलॉक की सेना कानपुर पहुंच गई। जब अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर किए जा रहे जुल्मों की सूचना बीबी घर में पहुंची तो अंग्रेज महिलाओं की रक्षा कर रही हुसैनी खानम ने क्रोध में भरकर 15 जुलाई 1857 को देर शाम को बीबी घर की अंग्रेज महिलाओं को मरवा कर कुएं में फिंकवा दिया।

कहा जा सकता है कि बीबीघर का हत्याकाण्ड जनरल हैवलॉक किए जा रहे भारतीय सैनिकों के हत्याकाण्ड की बदले की कार्यवाही थी किंतु यह भारतीय परम्परा के अनुरूप नहीं थी। निर्दोष स्त्रियों की हत्या करना किसी भी दशा में उचित नहीं ठहराया जा सकता।

कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि बीबीघर का हत्याकाण्ड अजीमुल्ला खाँ के कहने पर किया गया जबकि कुछ लोगों का मानना था कि इसके आदेश स्वयं नाना साहब ने दिए। कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि जब बीबी घर की भारतीय औरतों को ज्ञात हुआ कि अंग्रेज औरतों को मारा जाएगा तो भारतीय औरतों ने इस आदेश के विरुद्ध भूख हड़ताल कर दी।

जिन सिपाहियों को अंग्रेज औरतों एवं बच्चों को मारने के आदेश दिए गए उन्होंने भी आदेश मानने से मना कर दिया। इस पर बेगम हुसैनी खानम ने अपने मित्र सरवर खान से कहकर कसाइयों को बुलाया। कसाइयों ने छुरे भौंककर अंग्रेज औरतों एवं बच्चों को मार डाला। जिस समय यह हत्याकाण्ड किया गया, उस समय नाना साहब बीबी घर में नहीं था।

कुछ अंग्रेज स्त्रियों एवं बच्चों ने स्वयं को शवों के नीचे छिपा लिया। जब अगली सुबह सफाई कर्मचारियों को बुलाकर अंग्रेज महिलाओं एवं बच्चों के शव कुओं में फिंकवाए गए तब तीन औरतें और तीन बच्चे जीवित निकले। इन्हें भी लाशों के साथ कुओं में फैंक दिया गया, जहाँ उनकी मृत्यु हो गई।

सती चौरा की घटना के लिए अंग्रेजों ने नाना साहब को जिम्मेदार ठहराया तथा नाना पर आरोप लगाया कि उसने जानबूझ कर नावों को रेत में लगवाया ताकि अंग्रेजों को आसानी से घेरकर मारा जा सके। इसी प्रकार बीबीघर का हत्याकाण्ड के लिए भी नाना साहब को जिम्मेदार ठहराया गया। इस प्रकार पेशवा नाना साहब अंग्रेजी हुकूमत का सबसे बड़े खलनायक बन गया!

सती चौरा हत्याकाण्ड तथा बीबीघर का हत्याकाण्ड की गूंज इंग्लैण्ड में भी सुनाई दी। पूरा इंग्लैण्ड भारत के विरुद्ध क्रोध से उबलने लगा। वहाँ के अखबारों में भारतीय लोगों के विरुद्ध खूब जहर उगला गया। इंग्लैण्ड के शहरों में नुक्कड़ नाटक खेले जाने लगे जिनमें नाना साहब के पुतलों को चौराहों पर फांसी दी जाती थी।

इंग्लैण्ड के लोगों को शांत करने के लिए अंग्रेजी सेना ने कानपुर शहर में भयानक नरसंहार किया। सैंकड़ों भारतीय सिपाहियों को पकड़कर पेड़ों पर लटका दिया गया। बरगद के एक पेड़ पर 135 शव लटकाए गए।

जनरल नील ने कानपुर में जन-साधारण पर भयानक अत्याचार किए। उसने एक मुसलमान अधिकारी को बीबीघर में फर्श पर लगे खून को जीभ से साफ करने का आदेश दिया। उस अधिकारी द्वारा आदेश पालन किये जाने पर भी नील ने उसे मृत्यु-दण्ड दिया। जनरल नील ने मृत ब्राह्मणों को जमीन में दफनाया तथा मुसलमानों को चिता पर जलवाया।

19 जून को हैवलॉक ने बिठूर पर आक्रमण किया किंतु तब तक नाना साहब बिठूर से जा चुका था। ब्रिटिश सेनाओं ने बिठूर गांव के लोगों को बुरी तरह काटकर फैंक दिया। गांव के समस्त स्त्री, पुरुष, बच्चे, जवान एवं वृद्ध सभी की नृशंसता पूर्वक हत्या कर दी गई।

नाना साहब के महल पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। अंग्रेजों को यहाँ से बड़ी संख्या में गोला-बारूद, तोपें, हाथी, घोड़े एवं ऊँट प्राप्त हुए। अंग्रेजों ने इस महल में आग लगा दी। नाना साहब अंग्रेजों के हाथ नहीं आ सका। पेशवा के सेनापति तात्या टोपे का घर भी जला दिया गया।

अंग्रेज सिपाहियों द्वारा बिठुर में भयंकर लूटमार की गई तथा धन मिलने की आशा में महल की एक-एक ईंट उखाड़ दी गई। अँग्रेजों को बिठुर की लूट में इतना अधिक सोना-चाँदी प्राप्त हुआ कि वे पूरा उठाकर नहीं ला जा सके। जनवरी 1858 के बाद नाना के बारे में कोई पता नहीं चला। बाद में पता लगा कि वह नेपाल चला गया है किन्तु उसके बाद उसकी कोई निश्चित जानकारी नहीं मिल सकी।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि नाना साहब नेपाल चला गया जहाँ वह नेपाल के प्रधानमंत्री की सुरक्षा में रहा। लोगों का मानना है वह ईस्वी 1902 में नेपाल में नाना साहब की मृत्यु हुई परंतु कुछ लोग उसकी मृत्यु ईस्वी 1906 में सीहोर में होना मानते हैं।

पेशवा नाना साहब के सेनापति तात्या टोपे ने नवम्बर 1857 में कानपुर पर फिर से अधिकार करने का प्रयास किया। जब नाना साहब के गायब हो जाने के बाद भी देश भर में क्रांति की आग नहीं थमी तो अंग्रेज समझ गए कि जब तक पेशवा को नहीं पकड़ लिया जाता, तब तक क्रांति को नहीं दबाया जा सकता। अंग्रेज सरकार ने नाना साहब को पकड़वाने के लिए बड़े-बड़े इनाम घोषित किए किंतु नाना पकड़ में नहीं आया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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