Tuesday, October 7, 2025
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महाराष्ट्र में क्रांतिकारी गतिविधियाँ

महाराष्ट्र में क्रांतिकारी गतिविधियाँ ईस्वी 1857 की सशस्त्र क्रांति के विफल हो जाने के बाद से आरम्भ होने लगी थीं। महाराष्ट्र में क्रांतिकारी गतिविधियाों को चरम पर पहुंचाने का श्रेय विनायक दामोदर सावरकर को जाता है।

महाराष्ट्र में क्रांतिकारी गतिविधियाँ

महाराष्ट्र अँग्रेजों के आगमन के समय से ही राजनीतिक हलचलों का केन्द्र बना हुआ था। महाराष्ट्र की जनता में राजनीतिक जागृति भी दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक थी। माना जाता है कि 1857 की क्रांति असफल होने के बाद भारत में सशस्त्र क्रांति का मार्ग सर्वप्रथम महाराष्ट्र में ही अंगीकार किया गया। महाराष्ट्र में क्रांतिकारी गतिविधियाँ भारत को स्वतंत्रता मिलने तक चलती रहीं।

व्यायाम-मण्डल

1896-97 ई. में पूना में चापेकर बन्धुओं- दामोदर हरि चापेकर और बालकृष्ण हरि चापेकर ने व्यायाम-मण्डल की स्थापना की। वे कांग्रेस की नीतियों के घोर विरोधी थे। उनका मानना था कि कांग्रेस के अधिवेशनों में की जा रही भाषणबाजी से देश को कुछ भी प्राप्त नहीं होगा।

देश की भलाई के लिए करोड़ों लोगों को युद्ध क्षेत्र में प्राणों की बाजी लगानी होगी। उन्होंने ऐसे नौजवानों को शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया जो सशस्त्र क्रांति के मार्ग पर चलने को तैयार हों। 22 जून 1897 की रात को उन्होंने पूना के प्लेग कमिश्नर रैण्ड और उसके सहायक आयर्स्ट की हत्या कर दी।

दामोदर चापेकर पकड़ा गया। 18 अप्रैल 1898 को उसे फांसी दे दी गई। 8 फरवरी 1899 को व्यायाम मण्डल के सदस्यों ने उन द्रविड़ बन्धुओं को मौत के घाट उतार दिया जिन्होंने पुरस्कार के लालच में चापेकर बन्धुओं को पकड़वाया था। इस पर सरकार ने व्यायाम-मण्डल के अनेक सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया।

बालकृष्ण चापेकर तथा वासुदेव चापेकर को भी फांसी दे दी गई। पूना के नाटू बन्धुओं को देश-निकाला दिया गया। बाल गंगाधर तिलक को केसरी में भड़काऊ लेख लिखने के आरोप में 18 माह की जेल हुई।

अभिनव भारत

महाराष्ट्र के सर्वाधिक चर्चित क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर हुए। उनका जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र में नासिक के निकट एक गांव में चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ। 1901 ई. में उन्होंने पूना के फर्ग्यूसन कॉलेज में प्रवेश लिया और क्रांतिकारी विचारों का प्रसार करने के लिए अभिनव भारत नामक गुप्त संस्था स्थापित की।

उन्होंने दुर्गा की प्रतिमा के समक्ष, देश को अँग्रेजों से मुक्त कराने का संकल्प लिया। यह संस्था सारे पश्चिम तथा मध्य भारत में सक्रिय रही। सावरकर, तिलक के शिष्य थे। बम्बई विश्वविद्यालय से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद तिलक की अनुशंसा पर उन्हें सरदारसिंहजी राणा द्वारा संचालित छत्रपति शिवाजी छात्रवृत्ति मिली।

1906 ई. में वे बैरिस्ट्री पढ़ने लन्दन चले गये। लन्दन प्रवास में भी सावरकर ने क्रांतिकारी विचारों का प्रचार किया तथा भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम नामक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने यह सिद्ध किया कि 1857 की क्रांति, सैनिक विद्रोह न होकर भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। ब्रिटिश सरकार ने इस पुस्तक पर पाबन्दी लगा दी।

विनायक दामोदर सावरकर के लन्दन चले जाने के बाद भी अभिनव भारत संस्था काम करती रही। पूरे महाराष्ट्र में स्थान-स्थान पर उसकी शाखाएं स्थापित हो गईं। इस संस्था ने सार्वजनिक सभाओं, मुद्रित पुस्तिकाओं, गणपति पूजन और शिवाजी उत्सव, आदि का आयोजन करके लोगों को सशस्त्र क्रांति के लिये प्रेरित किया।

यह संस्था अपने सदस्यों को सैनिक प्रशिक्षण देकर ब्रिटिश शासकों से मोर्चा लेने को तैयार करती थी। सदस्यों को ड्रिल करना, लाठी चलाना, तलवार चलाना, घुड़सवारी करना, तैरना, पहाड़ों पर चढ़ना और लम्बी दूर तक दौड़ना आदि का प्रशिक्षण दिया जाता था। पूना और बम्बई के बहुत से कॉलेजों और स्कूलों में भी अभिनव भारत की शाखाएं थीं।

उसके अनेक सदस्य महत्त्वपूर्ण सरकारी पदों पर भी थे। वे अत्यधिक गोपनीय रूप से अभिनव भारत से सम्पर्क में थे। अभिनव भारत का वार्षिक सम्मेलन भी गुप्त रूप से आयोजित होता था। इस संस्था का सम्बन्ध बंगाल के क्रांतिकारियों के साथ भी था।

अभिनव भारत ने देश और विदेश से तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र एकत्र करने का प्रयास किया। सावरकर ने लन्दन से, विश्वस्त साथियों के माध्यम से कई पिस्तौलें भेजीं। पांडुरंग महादेव को रूसी क्रांतिकारियों से बम बनाने की कला सीखने के लिए पेरिस भेजा गया। अभिनव भारत के अतिरिक्त और भी बहुत सी गुप्त संस्थाएं बम्बई, पूना, नासिक, कोल्हापुर, सतारा, नागपुर आदि स्थानों में सक्रिय थीं। उनमें से कुछ संस्थाओं का अभिनव भारत से सम्पर्क था।

1908 ई. में तिलक की गिरफ्तारी और 6 साल के माण्डले निर्वासन से क्रांतिकारियों का आक्रोश अत्यधिक बढ़ गया। दामोदर जोशी ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर कोल्हापुर में बहुत बड़ी संख्या में बम बनाने के लिए एक कारखाना खोला। दुर्भाग्यवश एक बम के फट जाने से भेद खुल गया। बहुत से लोगों को गिरफ्तार करके उन्हें लम्बी सजाएं दी गईं। इसे कोल्हापुर बम केस कहा जाता है।

विनायक दामोदर सावरकर के बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर को क्रांतिकारी गीत लिखने के अपराध में 1909 ई. में आजीवन निर्वासन का दण्ड दिया गया। 1909-10 ई. में नासिक षड़यन्त्र केस चला। नासिक के जिस जिला मजिस्ट्रेट ने गणेश सावरकर के मुकदमे का फैसला सुनाया, उसे 21 दिसम्बर 1909 को गोली मार दी गई।

इस प्रकार, क्रांतिकारियों ने गणेश सावरकर के निर्वासन का बदला चुकाया। सावरकर को फंसाने में अँग्रेज अधिकारी जैक्सन ने विशेष भूमिका निभाई थी। इसलिये क्रांतिकारियों ने 21 दिसम्बर 1909 को उसे भी मार डाला। इस मुकदमे में 38 लोग बंदी बनाये गये। इनमें से 37 लोग महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण थे।

38 आरोपियों में से 27 को कठोर कारावास तथा 3 को कालेपानी की सजा हुई। अनन्त लक्ष्मण कन्हारे, कृष्णजी गोपाल कर्वे और विनायक नारायण देशपांडे को फांसी दी गई। भारत सरकार ने विनायक दामोदर सावरकर को समस्त उत्पात की जड़ मानकर उन्हें बंदी बनाने के आदेश जारी किये।

13 मार्च 19010 को सावरकर पेरिस से लंदन आये तथा विक्टोरिया स्टेशन पर उतरे। उसी समय लंदन की पुलिस ने उन्हें बंदी बना लिया तथा सैनिक जहाज में बैठाकर समुद्र के रास्ते, भारत के लिये रवाना कर दिया। जब यह जहाज फ्रांसीसी अधिकार वाले मार्सिली बंदरगाह के निकट पहुंचा तो सावरकर पुलिस को चकमा देकर पोटहोल से समुद्र में कूद गये तथा तैरकर फ्रांसीसी बंदरगाह पर पहुंच गये।

फ्रांसीसी तटरक्षकों ने समझा कि सावरकर जहाज पर से चोरी करके भाग रहे हैं, सावरकर को फ्रैंच भाषा नहीं आती थी और तटरक्षकों को अँग्रेजी भाषा नहीं आती थी इसलिये तटरक्षकों ने सावरकर की बात को समझे बिना ही, उन्हें अँग्रेज पुलिस के हवाले कर दिया।

सावरकर को नासिक लाया गया और जैक्सन हत्याकाण्ड के 37 आदमियों के साथ उन पर भी नासिक षड़यन्त्र केस चलाया गया। दिसम्बर 1910 में विनायक सावरकर को आजीवन निर्वासन का दण्ड दिया गया। उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली गई। उन्हें बैरिस्टर की मान्यता नहीं मिली और बी.ए. की डिग्री भी रद्द कर दी गई।

सावरकर को अण्डमान की जेल में भी भीषण यातनाएं दी गईं। 1921 ई. में उन्हें तथा उनके बड़े भाई को, अण्डमान से निकालकर रत्नागिरी जेल में रखा गया। भारत में उनकी रिहाई के लिए निरन्तर आन्दोलन चलता रहा। अन्ततः 27 वर्ष की जेल भगुतने के बाद 1937 ई. में उन्हें जेल से रिहा किया गया। 

नासिक षड़यंत्र केस में अनेक क्रांतिकारियों को जेल में डाला गया। इससे महाराष्ट्र के क्रांतिकारियों के मनोबल में कमी आई। फिर भी, उन्होंने कई घटनाओं को कार्यरूप दिया। गणेश सावरकर को देश-निर्वासन का दण्ड दिलवाने में भारत सचिव के मुख्य परामर्शदाता सर कर्जन वाइली का बड़ा हाथ था।

1 जुलाई 1909 को मदनलाल धींगरा ने लन्दन में वाइली को गोली से उड़ा दिया।  धींगरा को गिरफ्तार करके 16 अगस्त 1909 को फांसी दी गई। मुकदमे की कार्यवाही के समय धींगरा ने कहा- ‘मैं स्वीकार करता हूँ कि उस दिन मैंने एक अँग्रेज का खून बहाने का प्रयास किया था। देश-भक्त भारतीय नौजवानों को दी जाने वाली अमानुषिक फांसियों और निर्वासनों का थोड़ा-सा बदला लेने के लिए मैंने ऐसा किया था।’

क्रांतिकारियों को बड़ी संख्या में अस्त्र-शस्त्र प्राप्त करने तथा बम बनाने के लिए धन की आवश्यकता थी। कर्वे गुट ने छोटी-मोटी चोरियां करके धन एकत्रित करने का मार्ग अपनाया किंतु शीघ्र ही उन्होंने इस मार्ग को त्याग दिया क्योंकि अपने ही देशवासियों को लूटना उन्हें पसंद नहीं आया। इस प्रकार धन के अभाव में 1910 ई. तक महाराष्ट्र में क्रांतिकारियों का संगठन बिखरने लगा।

मि. एश की हत्या

वीर सावरकर के शिष्य तथा त्रावणकोर के जंगलात विभाग के कर्मचारी, वांची एयर ने टिनेवली के जिला अधिकारी मि. एश को गोली से उड़ा दिया जिसने टिनेवली में आतंक मचा रखा था। मजिस्ट्रेट की हत्या करने के बाद उन्होंने स्वयं को भी गोली मार ली। उनका साथी शंकर कृष्ण अय्यर पकड़ा गया। उसे चार साल की जेल हुई।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मूल अध्याय – भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन का इतिहास

भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन का उदय

बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियाँ

पंजाब में क्रांतिकारी गतिविधियाँ

उत्तर भारत में क्रांतिकारी गतिविधियाँ

महाराष्ट्र में क्रांतिकारी गतिविधियाँ

विदेशों में क्रांतिकारी आन्दोलन

क्रांतिकारी आंदोलन का मूल्यांकन

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