क्या गांधीजी राष्ट्रपिता हैं ? यह एक ऐसा उलझा हुआ प्रश्न है जिसका जवाब नहीं दिया जा सकता।
मोहनदास करमचंद गांधी निश्चित रूप से भारत की आजादी की लड़ाई का एक बड़ा चेहरा थे। वे बीसवीं सदी में दुनिया भर में जननेता और राजनीतिज्ञ के रूप में प्रसिद्ध हुए।
वे कुछ समय के लिए लंदन तथा दक्षिण अफ्रीका में बैरिस्टर रहे किंतु प्रिटोरिया सरकार के कर्मचारियों ने उन्हें चलती ट्रेन से फैंक दिया और वे भारत आ गए।
भारत में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन, खिलाफत आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन नामक कई आंदोलनों की शुरुआत की किंतु उनके द्वारा चलाए गए ये आंदोलन या तो बीच में ही बंद कर दिए गए या स्वयं असफल हो गए।
गांधीजी को कुशल वक्ता, लेखक और पत्रकार के रूप में भी जाना जाता है किंतु जब देश को आजादी मिली तो उनकी बात सुनने और मानने वाला कोई नहीं था। इसलिए वे 15 अगस्त 1947 को दिल्ली में नहीं थे, कलकत्ता के मियांबाग में उपवास कर रहे थे।
गांधीजी बड़े अर्थशास्त्री भी थे। उन्होंने भारत के लिए जो आर्थिक नीतियां सुझाईं थीं, उनकी प्रशंसा हर भारतीय करता है किंतु उन सिद्धांतों पर अमल कोई नहीं करता।
उन्हें महात्मा तथा राष्ट्रपिता जैसे महान शब्दों से सम्बोधित किया जाता है। इस बात पर भी कई लोगों को ऐतराज है।
हमारा ये वीडियो इसी बात की सत्यता जानने के लिए है कि क्या गांधीजी, वास्तव में भारत के राष्ट्रपिता हैं ? क्या दो रेडियो संदेशों ने उन्हें राष्ट्रपिता बनाया ?
गाँधीजी को राष्ट्रपिता की उपाधि किसने दी ?
इसकी कोई वैधानिकता है भी अथवा नहीं ?
वर्ष 2005 में केन्द्रीय सूचना का अधिकार अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद कुछ नागरिकों ने भारत सरकार से उन दस्तावेजों की मांग की जिनके आधार पर गांधीजी को राष्ट्रपिता घोषित किया गया या उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि दी गई!
भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने इस प्रार्थना पत्र के जवाब में संवैधानिक स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत सरकार ने गांधीजी को राष्ट्रपिता की उपाधि नहीं दी।
अर्थात् भारत सरकार ने उन्हें कभी भी राष्ट्रपिता घोषित नहीं किया।
प्रश्न उठता है कि जब उन्हें सरकार द्वारा जारी लाखों दस्तावेजों में राष्ट्रपिता कहा जाता रहा है तो उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि क्यों नहीं दी गई ?
इस प्रश्न का जवाब यह है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 8 (1) में सरकार को शैक्षिक और सैन्य खिताब के अतिरक्ति और कोई उपाधि देने की अनुमति नहीं है। राष्ट्रपिता न तो शैक्षिक उपाधि है और न सैनिक।
जब कानून गांधीजी भारत के राष्ट्रपिता नहीं हैं तो फिर किस अधिकार से हैं?
इस प्रश्न का जवाब यह है कि यह केवल एक राजनीतिक बयान है जो दो बड़े नेताओं द्वारा केवल दो बार रेडियो पर दोहराया गया और गांधीजी भारत के राष्ट्रपिता कहलाने लगे।
4 जून 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश में गांधीजी को ‘देश का पिता’ कहकर संबोधित किया। इस वक्तव्य में राष्ट्रपिता शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था। उन्हें ‘देश का पिता’ कहकर संबोधित किया गया था।
6 जुलाई 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से गांधीजी के लिए पहली बार ‘राष्ट्रपिता’ शब्द का प्रयोग किया।
दूसरी बार 30 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या होने के बाद देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारत की जनता के नाम रेडियो पर दिए गए संदेश में कहा कि राष्ट्रपिता अब नहीं रहे।
बस इन दो रेडियो संदेशों ने गांधीजी को भारत का राष्ट्रपिता बना दिया।
लगे हाथों गांधीजी के नाम के साथ जुड़े महात्मा शब्द पर भी विचार कर लिया जाए। सबसे पहले 12 अप्रैल 1919 को रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को लिखे एक पत्र में उन्हें ‘महात्मा’ शब्द से सम्बोधित किया। बस तभी से गांधीजी महात्मा हो गए।
इस प्रकार गांधीजी के नाम के साथ जुड़े ये दोनों विशेषण संवैधानिक स्थिति का नहीं अपितु भावनात्मक स्थिति का प्रदर्शन करते हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता