जिस समय पंजाब, महाराष्ट्र एवं बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधयाँ चल रही थीं, उस समय उत्तर उत्तर भारत में क्रांतिकारी गतिविधियाँ अपने चरम पर थीं। उत्तर भारत के दिल्ली, संयुक्त प्रदेश, आगरा एवं अवध, बिहार तथा उड़ीसा आदि प्रांतों के क्रांतिकारी भी अंग्रेज सरकार के लिए बड़ी चुनौती बने हुए थे।
उत्तर भारत में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
दिल्ली में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
दिल्ली षड़यन्त्र केस: 1912 ई. में भारत सरकार अपनी राजधानी, कलकत्ता से हटाकर दिल्ली ले आई। 23 दिसम्बर 1912 को जब वायसराय लॉर्ड हार्डिंग तथा उनकी पत्नी ने हाथी पर बैठकर नई राजधानी में प्रवेश किया तो चांदनी चौक में क्रांतिकारियों ने वायसराय के हाथी पर बम फेंक दिया।
वायसराय के पीछे बैठे अंगरक्षक की तत्काल मृत्यु हो गई। स्वयं वायसराय भी बम और हौदे के टुकड़ों से घायल हो गया तथा घबराहट में बेहोश हो गया। लेडी हार्डिंग ने तत्काल जुलूस स्थगित करवा दिया और वायसराय को चिकित्सा के लिये राजकीय आवास ले जाया गया।
पुलिस ने बम फेंकने के सन्देह में मास्टर अमीर चन्द, सुल्तान चन्द्र, दीनानाथ, अवध बिहारी, बाल मुकुन्द, बसन्त कुमार, हनुमन्त सहाय, चरनदास आदि 13 क्रांतिकारियों को पकड़ लिया। इन लोगों पर दो वर्ष तक मुकदमा चला। यह मुकदमा दिल्ली षड़यन्त्र केस के नाम से प्रसिद्ध है।
दीनानाथ सरकारी गवाह बन गया। मई 1915 में अमीरचन्द, अवधबिहारी और बालमुकुन्द को दिल्ली में तथा बसन्त कुमार विश्वास को अम्बाला में फांसी दी गई। चरणदास को आजीवन काला पानी की सजा दी गई। शेष अभियुक्तों को लम्बा कारावास हुआ।
इस प्रकरण में पुलिस ने कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की। क्रांतिकारियों द्वारा भी इसके बारे में अधिक नहीं लिखा गया। फिर भी प्राप्त तथ्यों के आधार पर माना जाता है कि वायसराय पर बम फेंकने की योजना रासबिहारी बोस ने बनाई थी। ठाकुर जोरवरसिंह बारहठ तथा उनके भतीजे प्रतापसिंह बारहठ बम लेकर दिल्ली पहुंचे थे।
जोरावरसिंह ने बुर्का ओढ़कर, वायसराय पर बम फंेका और फिर वे चुपचाप स्त्रियों की भीड़ में से खिसक कर मध्यप्रदेश के जंगलों में चले गये। प्रतापसिंह भी फरार हो गये किंतु बाद में एक सहपाठी की धोखे-बाजी से आसारानाडा स्टेशन पर पुलिस के हाथों पकड़े गये। उन्हें जेल में रखा गया जहां पुलिस ने उन पर बर्बर अत्याचार किये जिनके कारण जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई।
जोरावरसिंह आजीवन गिरफ्तार नहीं हुए किंतु जिस दिन समाचार पत्रों में यह छपा कि न्यायालय ने जोरावरसिंह को वायसराय पर बम फैंकने के आरोप से बरी कर दिया है, उसके अगले दिन ही जोरावरसिंह का निधन हो गया।
सरकार ने रासबिहारी बोस की गिरफ्तारी पर 7500 रुपये का पुरस्कार घोषित किया। रासबिहारी बोस भारत से जापान चले गये। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने जापानी सरकार की सहायता से आजाद हिन्द फौज का गठन किया जिसे बाद में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का नेतृत्व प्राप्त हुआ।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस बम को फेंकने वाले बसन्त विश्वास और मन्मथ विश्वास थे। इन दोनों बंगाली नवयुवकों ने महिलाओं का भेष धारण किया था और छत पर सवारी देखने को बैठी स्त्रियों के बीच में जा बैठे थे। वहीं से उन्होंने निशाना साधकर वायसराय के हाथी पर बम फेंका था। भाग्यवश वायसराय बच गया और अंगरक्षक मारा गया।
संयुक्त प्रदेश, आगरा एवं अवध में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
महाराष्ट्र, बंगाल और पंजाब की क्रांतिकारी गतिविधियों से संयुक्त प्रदेश , आगरा एवं अवध में भी उबाल आया। इस क्षेत्र के क्रांतिकारियों ने बनारस को अपना केन्द्र बनाया। वे बंगाल और महाराष्ट्र के क्रांतिकारियों से सम्पर्क में थे। 1907 ई. में बनारस में भी शिवाजी उत्सव मनाया गया और एक जुलूस निकाला गया जिसमें पं. सुन्दरलाल ने राजद्रोह से भरा जोशीला भाषण दिया।
संयुक्त प्रदेश में क्रांतिकारी आन्दोलन की भूमि तैयार करने में पं. सुन्दरलाल का बड़ा हाथ था। उन्होंने लाला लाजपतराय, तिलक और अरविन्द घोष के साथ भी काम किया। 1909 ई. में उन्होंने इलाहाबाद से कर्मयोगी नामक समाचार पत्र निकाला जिसमें महर्षि अरविन्द योगी और बाल गंगाधर तिलक के लेखों एवं भाषणों के अनुवाद प्रकाशित होते थे।
सुंदरलाल की प्रेरणा से इलाहाबाद से स्वराज्य नामक पत्र भी निकला गया जिसमें उग्र राष्ट्रवादी विचार प्रकाशित होते थे। बाद में सरकार ने इन दोनों समाचार पत्रों को बन्द करवा दिया। दिल्ली षड़यन्त्र केस में भी सुन्दरलाल का नाम जोड़ा गया परन्तु पुलिस उनके विरुद्ध साक्ष्य नहीं जुटा सकी।
1910 ई. में बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों के सहयोग से बनारस में युवक समिति स्थापित हुई जो बंगाल की अनुशीलन समिति की शाखा थी। प्रकट रूप से इस समिति में युवकों को शारीरिक, धार्मिक और साहित्यिक प्रशिक्षण दिया जाता था परन्तु गुप्त रूप से यह समिति क्रांतिकारी कार्य करती थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इस क्षेत्र के क्रांतिकारी भी व्यापक सशस्त्र क्रांति की योजना बनाने लगे किंतु वह कार्यरूप में परिणित नहीं हो सकी।
बिहार और उड़ीसा में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
सरकार की गुप्त रिपोर्टों से ज्ञात होता है कि बिहार के पटना, देवघर आदि शहरों में बंगाल से भागकर आये क्रांतिकारियों ने स्थानीय नवयुवकों को साथ लेकर, गुप्त समितियां गठित कीं और उनके माध्यम से बिहार की जनता में क्रांतिकारी विचारों को फैलाने का प्रयास किया। यहाँ के क्रांतिकारियों ने धन एकत्र करने के लिए कुछ डकैतियां भी कीं।
बिहारी नेशनल कॉलेज के अँग्रेजी के अध्यापक कामाख्या नाथ मित्र ने अपने भाषणों से अनेक बिहारी छात्रों में क्रांतिकारी भावना जागृत की। इस पर सरकार ने उन्हें कॉलेज छोड़ने को विवश कर दिया। कामाख्या बाबू के एक शिष्य सुधीर कुमार सिंह ने उनके काम को आगे बढ़ाया।
उन्होंने बांकीपुर के छात्रों के सहयोग से एक गुप्त समिति गठित की। इस समिति का बंगाल की अनुशीलन समिति के साथ सम्पर्क स्थापित हो गया। बंगाल से कई क्रांतिकारी विद्यार्थी, बिहार में आने-जाने लगे और बिहारी छात्रों को क्रांतिकारी भावना के साथ जोड़ने का काम करने लगे। बिहार में कोई महत्त्वपूर्ण क्रांतिकारी घटना नहीं घटी।
राष्ट्रीय स्तर पर क्रांति की योजना
रासबिहारी बोस, करतारसिंह, पिंगले और शचीन्द्र सान्याल ने ढाका से लाहौर तक एक साथ विद्रोह कराने की एक योजना तैयार की। 21 फरवरी 1915 को क्रांति का दिन निश्चित किया गया किन्तु कृपालसिंह नामक सैनिक ने यह योजना समय से पूर्व ही, ब्रिटिश अधिकारियों के सामने उजागर कर दी। इससे योजना बुरी तरह विफल हो गई।
मूल अध्याय – भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन का इतिहास
भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन का उदय
बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
पंजाब में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
उत्तर भारत में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
महाराष्ट्र में क्रांतिकारी गतिविधियाँ