पेशावर में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
पेशावर में पुलिस ने एक जुलूस पर गोली चलाई जिससे लोगों में आक्रोश फैल गया। लोगों को नियंत्रित करने के लिये सेना बुलाई गई। इस सेना में पंजाबियों की प्रधानता थी तथा क्रांतिकारियों के गुप्त संगठन भी सेना के भीतर सक्रिय थे। ऐसी स्थिति में ब्रिटिश सरकार ने 18वीं रॉयल गढ़वाली राइफल्स को बुलवाया परन्तु चन्द्रसिंह गढ़वाली की अपील पर गढ़वालियों ने पठानों पर गोली चलाने से इन्कार कर दिया और अपनी राइफलें भी उन्हें सौंप दी।
25 अप्रैल को जनता ने पेशावर पर कब्जा कर लिया जो 4 मई तक स्थापित रहा। बाद में अन्य सैनिकों की सहायता से पेशावर पर पुनः अधिकार किया गया। चनद्रसिंह गढ़वाली को आजीवन कालेपानी की और 16 अन्यों को 3 से लेकर 15 साल तक की कड़ी सजा दी गई। 1937 ई. में कांग्रेस सरकारों के दबाव से वे सब रिहा कर दिये गये।
उत्तर-पूर्वी सीमान्त क्षेत्र में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
उत्तर-पूर्वी सीमान्त क्षेत्र भी क्रांतिकारी गतिविधियों से अलग नहीं रहा। यहाँ के नागाओं ने ब्रिटिश शासन का अन्त कर नागा राज्य की स्थापना करने का प्रयास किया। उन्होंने यदुनाग के नेतृत्व में अँग्रेजों से लोहा लिया। अँग्रेजों ने यहाँ भी कठोर दमन का साहरा लिया। 1930 ई. में यदुनाग को गिरफ्तार करके फांसी दे दी गई।
उसके बाद संगठन का नेतृत्व उसकी सहायिका गाइडिलिउ ने संभाला। उसके नेतृत्व में 1931-32 ई. में विद्रोही नागाओं ने ब्रिटिश अधिकारियों को बहुत तंग किया। गाइडिलिउ को पकड़ने के लिए लोगों को तरह-तरह के पुरस्कारों का प्रलोभन दिया गया। जब इसमें सफलता नहीं मिली तो बड़े पैमाने पर सैनिक कार्रवाही की गई। अक्टूबर 1932 में उसे पकड़कर आजीवन कारावास की सजा दी गई। आजादी के बाद इस वीरांगना को रिहा किया गया।
सामान्यतः यह माना जाता है कि 1934 के आस-पास क्रांतिकारी आन्दोलन समाप्त हो गया परन्तु यह सत्य नहीं है। 1942 ई. के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान यह फिर सक्रिय हो उठा था।
जल सेना और वायु सेना में विद्रोह
जब आजाद हिन्द फौज के अधिकारियों पर लाल किले में मुकदमे चल रहे थे और जनता उनकी रिहाई के लिए आन्दोलन चला रही थी, उस समय भारतीय सेना में भी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आवाज उठी। अँग्रेज अधिकारियों के दुर्व्यवहार से तंग आकर 20 जनवरी 1946 को कराची में वायुसेना के सैनिकों ने हड़ताल कर दी जो बम्बई, लाहौर और दिल्ली स्थित वायुसेना मुख्यालयों पर भी फैल गई।
नौ-सेना ने भी वायु सेना का अनुसरण किया। 19 फरवरी 1946 को भारतीय नौ-सैनिकों ने भी हड़ताल कर दी। 21 फरवरी 1946 को यह हड़ताल क्रांति के रूप में बदलने लगी तथा बम्बई के साथ-साथ कलकत्ता, कराची और मद्रास में भी फैल गई। अँग्रेज अधिकारियों ने इस क्रांति का दमन करने के लिए गोलियां चलाईं।
क्रांतिकारी सैनिकों ने भी गोली का जवाब गोली से दिया। इससे ब्रिटिश सरकार घबरा गई। बड़ी कठिनाई से सरदार पटेल ने सरकार और नौ-सैनिकों के बीच समझौता करवाया। इस विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार को अनुमान हो गया कि अब उनके लिये भारत पर शासन करना संभव नहीं रह गया है।
मूल अध्याय – भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन का इतिहास
भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन का उदय
बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
पंजाब में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
उत्तर भारत में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
महाराष्ट्र में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
अन्य प्रांतों में क्रांतिकारी गतिविधियाँ