ब्रिटिश अधिकारियों ने भारत में अनेक विशाल भवन बनाए जिनमें भारतीय एवं मुस्लिम स्थापत्य शैलियों के साथ यूरोपीय स्थापत्य शैलियों का भी समावेश किया। इसे ब्रिटिश कालीन स्थापत्य कह सकते हैं।
सत्रहवीं शताब्दी ईस्वी में अंग्रेज, पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी आदि यूरोपीय जातियों ने भारत में प्रवेश किया। उन्होंने यूरोपियन शैली के कुछ चर्च, फोर्ट एवं चैपल बनवाए।
सत्रहवीं सदी का ब्रिटिश कालीन स्थापत्य
ई.1639 में सेण्ट जॉर्ज फोर्ट मद्रास का निर्माण प्रारम्भ हुआ। ई.1696 में कलकत्ता में फोर्ट विलियम का निर्माण हुआ। इसी दुर्ग में चर्च भी स्थापित किया गया था।
अठारहवीं सदी का ब्रिटिश कालीन स्थापत्य
कैप्टन जॉन ब्रोहिअर की डिजायन पर ई.1757 से 1773 तक फोर्ट विलियम का पुनर्निर्माण किया गया। ई.1787 में कलकत्ता में सेण्ट जॉन चर्च बना। इस चर्च का नक्शा लेफ्टिनेण्ट एजीजी ने तैयार किया था। पर्सी ब्राउन के अनुसार यह नक्शा बालबुक के सेण्ट स्टीफेंस चर्च के नक्शे के आधार पर बनाया गया था।
उन्नीसवीं सदी का ब्रिटिश कालीन स्थापत्य
उन्नीसवीं शताब्दी ईस्वी की ब्रिटिश-भारतीय स्थापत्य कला पर यूरोप की गोथिक शैली का प्रभाव है। यरोपीय शैली के आधार पर ई.1802 में कलकत्ता का गवर्नमेण्ट हाउस बनाया गया। चार्ल्स वायट ने इस भवन का नक्शा बनाया था जो कि डर्बीशायर के केडिल्सटन हॉल के नक्शे पर आधारित था। अंग्रेजों ने कलकत्ता सहित भारत के अन्य नगरों में भवन बनवाए। इनमें से बहुत से भवन भारतीय स्थापत्य कला पर आधारित थे।
ब्रिटिश शासन काल में कुछ भारतीय पूंजीपतियों ने बड़े-बड़े भवनों का निर्माण करवाया जिन पर यूरोपीय स्थापत्य कला का प्रभाव है। इन भवनों के सामने यूरोपीय पद्धति के लॉन एवं ऑर्चर्ड्स होते थे। परन्तु इन भवनों में गैलरी एवं खम्भे भारतीय स्थापत्य कला के आधार पर बनते थे।
इस प्रकार की अर्द्ध-यूरोपीय स्थापत्य कला अधिक लोकप्रिय नहीं हो सकी। भारतीय और पाश्चात्य स्थापत्य कला का समन्वय करने में मथुरा के तत्कालीन कलेक्टर एफ. एस. ग्राउज ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया। सर स्विनटन जैकब ने बीकानेर और जयपुर रियासतों की स्थापत्य कला का अध्ययन करके भारतीय और पाश्चात्य स्थापत्य कलाओं का श्रेष्ठ समन्वयन किया। आर. एल. चिशहोम तथा एच. इर्विन ने मद्रास में ऐसे भवन बनवाए जिनमें भारतीय और यूरोपीय स्थापत्य कला का मिश्रण किया गया था।
पंजाब में सरदार रामसिंह ने स्थापत्य कला का एक नया नमूना प्रस्तुत किया। लाहौर का सीनेट हॉल इसी आधार पर बनाया गया। संयुक्त प्रदेश (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में एफ. सी. ओर्टेल ने और बंगाल में ई. बी. हैवेल ने भारतीय और पाश्चात्य स्थापत्य कला का समन्वय प्रस्तुत करने वाले भवन बनवाए। बम्बई में जी. विटेट ने गेट वे ऑफ इण्डिया और प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम का निर्माण करवाया।
चर्चगेट रेलवे स्टेशन भवन
ई.1876 में अंग्रेजों ने बम्बई में चर्चगेट रेलवे स्टेशन भवन बनवाया। ई.1928 में इस रेल्वे स्टेशन भवन का पुनर्निर्माण किया गया। पहले इस स्थान पर सेंट जॉर्ज फोर्ट की तरफ जाने वाली सड़क पर चर्चगेट नामक एक द्वार बना हुआ था जो सेंट थॉमस कैथेड्रल चर्च की ओर जाता था। बम्बई नगर का आकार बढ़ाने के लिए ई.1860 में इस गेट को ध्वस्त कर दिया गया था। उसी गेट की स्मृति में इस स्टेशन का नाम चर्चगेट रखा गया।
इस भवन की स्थापत्य शैली को स्विस शैलेट शैली कहा जाता है। यह शैली मूलतः स्विट्जरलैण्ड और मध्य यूरोप की अल्पाइन पहाड़ियों में स्थित गांवों में बने शैलेटों पर आधारित है।
बीसवीं सदी का ब्रिटिश कालीन स्थापत्य
बीसवीं शताब्दी ईस्वी के आरम्भ में वायसराय एवं गवर्नर जनरल लॉर्ड कर्जन ने भारत में राजकीय भवनों के निर्माण के लिए जे. रेन्सम की अध्यक्षता में पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट स्थापित किया। इस विभाग ने कलकत्ता एवं दिल्ली सहित भारत के अनेक नगरों में बड़े एवं प्रसिद्ध भवन बनाए।
विक्टोरिया मेमोरियल हॉल
अंग्रेज सरकार ने ई.1906 में कलकत्ता में विक्टोरिया मेमोरियल हॉल बनवाना आरम्भ किया जो ई.1921 में पूरा हुआ। इस भवन का डिजायन विलियम इमर्सन ने तैयार किया था। विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में मकराना का सफेद संगमरमर लगाया गया। यह भवन यूरोपीय पुनरुद्धार कला का श्रेष्ठ उदाहरण है।
नई दिल्ली के भवन
जब ई.1911 में अंग्रेज अपनी राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले आए, तब उन्होंने दिल्ली में नए भवन बनवाने आरम्भ किए। ई.1930 में सर एडविन ल्यूटेन्स तथा सर एडवर्ड बेकर ने नई दिल्ली का नक्शा तैयार किया। इस काल में नई दिल्ली में निर्मित समस्त भवन यूरोपीय और भारतीय स्थापत्य कला की मिश्रित शैली पर बने थे। ये विशाल भवन चौड़ी सड़कों के दोनों ओर बने हैं तथा अत्यंत सादगी पूर्ण हैं। इन भवनों के बाहरी हिस्सों में खम्भे, आर्च एवं लॉन आदि बनाकर उन्हें प्रभावशाली बनाया गया है।
ई.1911 से 1947 तक की अवधि में अंग्रेजों ने नई दिल्ली में राजकीय कार्यालयों के भवनों के साथ-साथ अनेक गिरजाघर और ईसाई कब्रिस्तान बनवाए जिनमें यूरोपीय स्थापत्य की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इस काल में दिल्ली में बनवाए गए भवनों में वायसराय भवन, इण्डिया गेट तथा संसद भवन सबसे महत्वपूर्ण ब्रिटिश कालीन स्थापत्य हैं।
वायसराय भवन
भारत में कार्यरत अंग्रेज सरकार ने ने ई.1912 में नई दिल्ली में वायसराय भवन का निर्माण आरम्भ किया जिसे अब राष्ट्रपति भवन कहते हैं। वायसराय भवन में चार मंजिलें हैं जिनमें कुल 340 कमरे हैं। इस भवन का कारपेट एरिया दो लाख वर्ग फुट (19,000 वर्ग मीटर) है।
वायसरराय भवन के निर्माण में 70 करोड़ ईटें और दस लाख घन फुट (85,000 क्यूबिक मीटर) पत्थर लगा। इसके अतिरिक्त स्टील और लकड़ी का उपयोग भी बहुतायत से किया गया। वायसराय भवन की निर्माण सामग्री तैयार करने के लिए लुटियंस ने भारतीय कारीगरों का उपयोग किया तथा उनके लिए दिल्ली और लाहौर में कार्यशालाएँ स्थापित कीं।
वायसराय भवन का डिजाइन यूरोप के एडवर्डियन बारोक काल का है, उस काल में शासन की भव्यता प्रदर्शित करने के लिए भारी शास्त्रीय रूपांकनों का प्रयोग किया जाता था। लुटियंस के आरम्भिक डिजाइन पूर्णतः यूरोपियन क्लासिकल स्टाइल के थे। बाद में लुटियंस ने इस भवन के बाहरी डिजाइन में इंडो-सारसेनिक रूपांकनों (इण्डो-मुस्लिम शैली) को शामिल किया तथा इसमें विभिन्न भारतीय तत्वों को जोड़ा गया।
इनमें भवन के शीर्ष पर कई गोलाकार पत्थर के बेसिन शामिल थे। पारंपरिक भारतीय छज्जा भी सम्मिलित किया गया। यह एक पतला, फैला हुआ एलीमेंट था जो भवन से 8 फुट आगे तक बढ़ा हुआ था और गहरी छाया बनाता था। छज्जे के उपयोग से खिड़कियों पर गिरने वाली धूप एवं बरसात की सीधी बौछारों को रोकने में सहायता मिली। छत पर कई चुटरी थीं जो गुंबद से ढकी हुई नहीं थी। लुटियंस ने भारतीय डिजाइन तत्वों का पूरे भवन में संयम और प्रभावी ढंग से उपयोग किया।
स्तंभ के शीर्ष पर एक विशिष्ट रूप से अनोखा मुकुट है जिसमें कांस्य कमल के फूल से एक कांच का सितारा निकलता है। वायसराय भवन में राजस्थानी शैली की लाल बलुआ पत्थर की जालियां भी प्रयुक्त की गईं। महल के सामने पूर्व की ओर असमान रूप से फैले हुए 12 विशाल स्तंभ हैं। लुटियंस ने इस भवन में एक नॉन्स ऑर्डर भी लगाया जिसमें अशोक का लेख अंकित है। चार लटकन वाली भारतीय घंटियों के साथ अकेंथस के पत्तों का मिश्रण है। घंटियाँ भारतीय हिंदू और बौद्ध मंदिरों की शैली के समान हैं, यह अंकन कर्नाटक के मूदाबिद्री जैन मंदिर से प्रेरित है।
स्तंभ के शीर्ष पर प्रत्येक कोने पर एक घंटी है। ये शांत घंटियाँ इस बात की प्रतीक हैं कि भारत में ब्रिटिश राजवंश का अंत कभी नहीं होगा। वायसराय भवन से पहले के ब्रिटिश भवनों में इंडो-सरसेनिक रिवाइवल वास्तुकला का उपयोग किया गया था जिनमें मुगल वास्तुकला के तत्वों को अनिवार्य रूप से पश्चिमी ढांचे पर ग्राफ्ट किया गया था।
लुटियंस ने बहुत इस भवन के स्थापत्य में मौर्य कालीन बौद्ध कला से भी प्रेरणा ली। इसे देहली ऑर्डर और मुख्य गुंबद में देखा जा सकता है जहाँ नीचे के ड्रम की सजावट सांची बौद्ध स्तूप के चारों ओर की रेलिंग की याद दिलाती है। इसमें मुगल और यूरोपीय औपनिवेशिक स्थापत्य तत्वों की उपस्थिति है। यह संरचना अन्य समकालीन ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रतीकों से पूरी तरह अलग है।
लुटियंस ने वायसराय भवन में कई छोटे-छोटे अभिनव प्रयोग भी किए, जैसे कि उद्यान की दीवारों में एक क्षेत्र और स्टेटरूम में दो वेंटिलेटर खिड़कियाँ जो उनके चश्मे जैसी दिखती थीं। वाइसरीगल लॉज का अधिकांश भाग ई.1929 तक पूरा हो गया था। नई दिल्ली के अन्य भवनों के साथ ई.1931 में इस भवन का आधिकारिक उद्घाटन किया गया। ई.1932-33 में वायसराय भवन के बॉलरूम में महत्वपूर्ण सजावट जोड़ी गई जिसे इतालवी चित्रकार टॉमासो कर्नलो ने बनाया।
जयपुर स्तंभ में हाथियों की मूर्तियाँ और नागों की फव्वारा मूर्तियाँ भी लगाई गईं। साथ ही जयपुर स्तंभ के आधार के चारों ओर उभरी हुई आकृतियाँ भी थीं जिन्हें ब्रिटिश मूर्तिकार चार्ल्स सार्जेण्ट जैगर ने बनाया था।
भवन का लेआउट प्लान एक विशाल वर्गाकार भवन के चारों ओर डिजाइन किया गया है जिसके भीतर कई आँगन और खुले भीतरी क्षेत्र हैं। योजना में दो विंग बनाने का प्रस्ताव था; एक वायसराय के परिवार और उसके स्टाफ के लिए तथा दूसरा अतिथियों के लिए।
वायसराय भवन का रेजीडेंस विंग एक अलग चार मंजिला भवन है, जिसके भीतर इसका दरबार क्षेत्र भी है। यह विंग इतना बड़ा है कि भारत की आजादी के बाद प्रथम भारतीय गवर्नर-जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने छोटे अतिथि विंग में ही अपना निवास बनाया। बाद में भारत के समस्त राष्ट्रपतियों ने भी इसी विंग में अपना आवास बनाया। वायसराय के लिए बनी रेजीडेंस विंग का उपयोग अब राजकीय स्वागत समारोहों और राष्ट्राध्यक्षों के आगमन के समय गेस्ट विंग के रूप में किया जाता है।
वायसराय भवन में बने गणतंत्र मंडप का वास्तविक नाम दरबार हॉल था। यह मुख्य भवन के दोहरे गुंबद के ठीक नीचे स्थित है। आजादी से पहले इसे सिंहासन कक्ष के रूप में जाना जाता था। इसमें वायसराय और उसकी पत्नी के लिए दो अलग-अलग सिंहासन थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रपति की एक ऊंची कुर्सी, 33 मीटर की ऊंचाई से लटके बेल्जियम के कांच के झूमर के नीचे रखी जाती है।
हॉल का फर्श चॉकलेटी रंग के इटैलियन संगमरमर से बना है। गणतंत्र मंडप के स्तंभ दिल्ली ऑर्डर में बने हैं जिनमें खड़ी रेखाओं को घंटी की आकृति से जोड़ा गया है। स्तंभ की खड़ी रेखाओं का उपयोग कमरे के चारों ओर बनी फ्रिज में भी किया गया है जो कि स्तंभों के पारंपरिक ग्रीक ऑर्डर में नहीं किया जाता। स्तंभ पीले जैसलमेरी संगमरमर से बने हैं, जिनके बीच में एक मोटी रेखा चलती है। गणतंत्र मंडप में 500 मनुष्य बैठ सकते हैं। इसी भवन में जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त 1947 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।
वायसराय भवन में बने अशोक मंडप का वास्तविक नाम अशोक हॉल है। 32 मीटर गुणा 20 मीटर का एक आयताकार कमरा है। इसे लकड़ी के फर्श वाले नृत्य कक्ष के रूप में बनाया गया था। इसकी छत पर फारसी चित्रकला शैली का चित्रण है। यह चित्र मूलतः मेहर अली द्वारा कजर युग में बनाई गई एक ऑयल पेंटिंग की अनुकृति है। इसमें राजा फतह-अली शाह कजर के नेतृत्व में एक शाही शिकार अभियान को दर्शाया गया है। दीवारों पर इतालवी कलाकार टॉमासो कोलोनेलो द्वारा परिकल्पित भित्तिचित्र हैं जो फारसी लघुचित्र शैलियों से प्रेरित हैं।
वायसराय भवन के बीच में स्थित गुंबद में भारतीय और ब्रिटिश शैलियों का मिश्रण किया गया है। इनके बीच में एक ऊँचा ताँबे का मुख वाला गुंबद है जिसके कई हिस्सों में एक बहुत ऊँचे ढोल के ऊपर एक आकृति बनी हुई है जो भवन के बाकी हिस्सों से अलग दिखाई देती है। यह गुंबद वायसराय भवन के चारों कोनों के विकर्णों के ठीक बीच में है। यह भवन की ऊँचाई से दोगुने से भी अधिक ऊँचा है और शास्त्रीय और स्थानीय शैलियों का मिश्रण है। लुटियंस ने गुंबद को डिजाइन करते समय रोम के पैंथियन को एक मॉडल के रूप में लिया था, हालाँकि गुंबद के बाहरी हिस्से को भी आंशिक रूप से प्रारंभिक बौद्ध स्तूपों के अनुरूप बनाया गया।
मुगल गार्डन
मुगल गार्डन को अब अमृत उद्यान कहा जाता है। यह उद्यान राष्ट्रपति भवन के पीछे स्थित है। इस उद्यान में मुगल और अंग्रेजी भूनिर्माण शैलियों का मिश्रण किया गया है और इसमें फूलों एवं वृक्षों की एक विशाल विविधता है। समकोण पर एक-दूसरे को काटती हुई दो मुख्य धाराएँ इस उद्यान को वर्गों के एक जाल में विभाजित करती हैं इनके संगम पर कमलकार छः फव्वारे हैं जिनकी ऊँचाई 12 फुट है।
पक्षियों को दाना खिलाने के लिए पक्षी-मेजें भी रखी गई हैं। मुख्य उद्यान के दोनों ओर ऊँचे स्तर पर, उद्यान की दो अनुदैर्ध्य पट्टियाँ हैं, जो उत्तरी और दक्षिणी सीमाएँ बनाती हैं। यहाँ उगाए गए पौधे मुख्य उद्यान के समान ही हैं। दोनों पट्टियों के मध्य में एक फव्वारा है, जो अंदर की ओर गिरता है और एक कुआँ बनाता है। पश्चिमी सिरे पर दो गजेबो और पूर्वी सिरे पर दो अलंकृत संतरी चौकियाँ हैं।
मुगल गार्डन के पश्चिम में पर्दा उद्यान है जो केंद्रीय फुटपाथ के दोनों ओर फैला हुआ है। यह फुटपाथ गोलाकार उद्यान की ओर जाता है। लगभग 12 फुट ऊँची दीवारों से घिरा यह उद्यान मुख्यतः गुलाबों का उद्यान है। इसमें 16 वर्गाकार क्यारियाँ हैं जो कम ऊँचाई वाली बाड़ों से घिरी हैं। केंद्रीय फुटपाथ के ऊपर बीच में लाल बलुआ पत्थर का एक परगोला है जो विभिन्न प्रकार की लताओं से घिरा हुआ है।
इण्डिया गेट
1920 के दशक तक दिल्ली में केवल एक ही रेलवे स्टेशन था जिसे अब पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन कहते हैं। इस स्टेशन तक जाने वाली आगरा-दिल्ली रेलवे लाइन लुटियन्स दिल्ली और किंग्सवे अर्थात् राजाओं के गुजरने का रास्ता (आजादी के बाद राजपथ तथा अब कर्त्तव्य पथ) से होकर जाती थी। ई.1924 में अंग्रेज सरकार ने इस स्थान पर इण्डिया गेट बनाने का निश्चय किया। इसलिए यहाँ से निकलने वाली रेलवे लाइन को यमुना नदी के पास स्थानान्तरित किया गया।
ई.1931 में अंग्रेज सरकार ने किंग्सवे पर इण्डिया गेट का निर्माण करवाया। यह मूलतः युद्ध-स्मारक था जो प्रथम विश्वयुद्ध एवं अफगान युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए 90 हजार भारतीय सैनिकों को समर्पित किया गया था। इसकी ऊँचाई 43 मीटर है। इसका डिजाइन सर बालेन शाह ने तैयार किया था। यह स्मारक पेरिस के आर्क डे ट्रॉयम्फ़ से प्रेरित है। इसे सन् 1931 में बनाया गया था। यूनाइटेड किंगडम के कुछ सैनिकों और अधिकारियों सहित कुल 13,300 सैनिकों के नाम इण्डिया गेट पर उत्कीर्ण हैं। यह स्मारक लाल और पीले बलुआ पत्थरों से निर्मित है।
जब इण्डिया गेट बनकर तैयार हुआ था तब इसके सामने इंग्लैण्ड के राजा जार्ज पंचम की एक मूर्ति लगी हुई थी। उस मूर्ति को ब्रिटिश राज के समय की अन्य मूर्तियों के साथ कोरोनेशन पार्क में स्थापित कर दिया गया। अब जार्ज पंचम की मूर्ति की जगह प्रतीक के रूप में केवल एक छतरी रह गयी है। 625 मीटर के व्यास में स्थित इण्डिया गेट का षट्भुजीय क्षेत्र 306,000 वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में फैला है।
मंदिरों का ब्रिटिश कालीन स्थापत्य
अंग्रेजों के शासन काल में मंदिर-वास्तु भी नवीन स्वरूप के साथ विकसित हुआ। दिल्ली का लक्ष्मीनारायण मंदिर, बनारस के हिंदू विश्वविद्यालय के भवन, वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी का भारत माता मंदिर बीसवीं शती के मंदिर-वास्तु की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं।
कुशीनगर में बने निर्वाण बिहार, बुद्ध मंदिर और सरकारी विश्रामगृह में बौद्ध कला को पुनर्जीवन मिला है। दिल्ली में लक्ष्मीनारायण मंदिर के साथ भी एक बुद्ध मंदिर है। इस काल में राजाओं के महलों और विद्यालय भवनों ने भी वास्तु-कला को नवीन स्वरूप प्रदान किया तथा हिन्दू, जैन, बौद्ध, मुस्लिम एवं ईसाई स्थापत्य पद्धतियों के मेल से भारतीय स्थापत्य कला पूर्ण रूप से नवीन स्वरूप में ढल गई।



